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बुधवार, 5 अगस्त 2009

अटूट विश्वास का बन्धन है राखी

भारतीय परम्परा में विश्वास का बन्धन ही मूल है और रक्षाबन्धन इसी अटूट विश्वास के बन्धन की अभिव्यक्ति है। रक्षा-सूत्र के रूप में राखी बाँधकर सिर्फ रक्षा का वचन ही नहीं दिया जाता वरन् प्रेम, समर्पण, निष्ठा व संकल्प के जरिए यह पर्व हृदयों को बाँधने का भी वचन देता है। श्रावण मास की पूर्णिमा को मनाया जाने वाला रक्षाबन्धन भारतीय सभ्यता का एक प्रमुख त्यौहार है, जिस दिन बहनें अपनी रक्षा के लिए भाईयों की कलाई में राखी बाँधती हंै। गीता में कहा गया है कि जब संसार में नैतिक मूल्यों में कमी आने लगती है, तब ज्योर्तिलिंगम भगवान शिव प्रजापति ब्रह्मा द्वारा धरती पर पवित्र धागे भेजते हैं, जिन्हें बहनें मंगलकामना करते हुए भाइयों को बाँधती हैं और भगवान शिव उन्हें नकारात्मक विचारों से दूर रखते हुए दुख और पीड़ा से निजात दिलाते हैं।

पहले रक्षाबन्धन पर्व सिर्फ बहन-भाई के रिश्तों तक ही सीमित नहीं था, अपितु आपत्ति आने पर अपनी रक्षा के लिए अथवा किसी की आयु और आरोग्य की वृद्धि के लिये किसी को भी रक्षा-सूत्र (राखी) बांधा या भेजा जा सकता था। लोक परम्परा में रक्षाबन्धन के दिन परिवार के पुरोहित द्वारा राजाओं और अपने यजमानों के घर जाकर सभी सदस्यों की कलाई पर मौली बाँधकर तिलक लगाने की परम्परा रही है। पुरोहित द्वारा दरवाजों, खिड़कियों, तथा नये बर्तनों पर भी पवित्र धागा बाँधा जाता है और तिलक लगाया जाता है। यही नहीं बहन-भानजों द्वारा एवं गुरूओं द्वारा शिष्यों को रक्षा सूत्र बाँधने की भी परम्परा रही है। इतिहास गवाह है कि सिंकदर और पोरस ने युद्ध से पूर्व रक्षा-सूत्र की अदला-बदली की थी। युद्ध के दौरान पोरस ने जब सिकंदर पर घातक प्रहार हेतु अपना हाथ उठाया तो रक्षा-सूत्र को देखकर उसके हाथ रूक गए और वह बंदी बना लिया गया। सिकंदर ने भी पोरस के रक्षा-सूत्र की लाज रखते हुए और एक योद्धा की तरह व्यवहार करते हुए उसका राज्य वापस लौटा दिया। राखी ने स्वतंत्रता-आन्दोलन में भी प्रमुख भूमिका निभाई। कई बहनों ने अपने भाईयों की कलाई पर राखी बाँधकर देश की लाज रखने का वचन लिया। 1905 में बंग-भंग आंदोलन की शुरूआत लोगों द्वारा एक-दूसरे को रक्षा-सूत्र बाँधकर हुयी।

रक्षाबन्धन का उल्लेख पुराणों में मिलता है जिसके अनुसार असुरों के हाथ देवताओं की पराजय पश्चात अपनी रक्षा के निमित्त सभी देवता इंद्र के नेतृत्व में गुरू वृहस्पति के पास पहुँचे तो इन्द्र ने दुखी होकर कहा- ‘‘अच्छा होगा कि अब मैं अपना जीवन समाप्त कर दूँ।’’ इन्द्र के इस नैराश्य भाव को सुनकर गुरू वृहस्पति के दिशा-निर्देश पर रक्षा-विधान हेतु इंद्राणी ने श्रावण पूर्णिमा के दिन इन्द्र सहित समस्त देवताओं की कलाई पर रक्षा-सूत्र बाँधा और अंततः इंद्र ने युद्ध में विजय पाई। एक अन्य मान्यतानुसार राजा बालि को दिये गये वचनानुसार भगवान विष्णु बैकुण्ठ छोड़कर बालि के राज्य की रक्षा के लिये चले गये। तब लक्ष्मी जी ने ब्राह्मणी का रूप धारण कर श्रावण पूर्णिमा के दिन राजा बालि की कलाई पर पवित्र धागा बाँधा और उसके लिए मंगलकामना की। इससे प्रभावित हो राजा बालि ने लक्ष्मी जी को अपनी बहन मानते हुए उसकी रक्षा की कसम खायी। तत्पश्चात देवी लक्ष्मी अपने असली रूप में प्रकट हो गयीं और उनके कहने से बालि ने भगवान इन्द्र से बैकुण्ठ वापस लौटने की विनती की। महाभारत काल में भगवान कृष्ण के हाथ में एक बार चोट लगने व फिर खून की धारा फूट पड़ने पर द्रौपदी ने तत्काल अपनी कंचुकी का किनारा फाड़कर भगवान कृष्ण के घाव पर बाँध दिया। कालांतर में दुःशासन द्वारा द्रौपदी-हरण के प्रयास को विफल कर उन्होंने इस रक्षा-सूत्र की लाज बचायी। इसी प्रकार जब मुगल समा्रट हुमायूँ चितौड़ पर आक्रमण करने बढ़ा तो राणा सांगा की विधवा कर्मवती ने हुमायूँ को राखी भेजकर अपनी रक्षा का वचन लिया। हुमायँू ने इसे स्वीकार करके चितौड़ पर आक्रमण का ख़्याल दिल से निकाल दिया और कालांतर में राखी की लाज निभाने के लिए चितौड़ की रक्षा हेतु गुजरात के बादशाह से भी युद्ध किया। ऐसे ही न जाने कितने विश्वास के धागों से जुड़ा हुआ है राखी का पर्व।

देश के विभिन्न अंचलों में राखी पर्व को भाई-बहन के त्यौहार के अलावा भी भिन्न-भिन्न तरीकों से मनाया जाता है। मुम्बई के कई समुद्री इलाकों में इसे नारियल-पूर्णिमा या कोकोनट-फुलमून के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन विशेष रूप से समुद्र देवता पर नारियल चढ़ाकर उपासना की जाती है और नारियल की तीन आँखों को शिव के तीन नेत्रों की उपमा दी जाती है। बुन्देलखण्ड में राखी को कजरी-पूर्णिमा या कजरी-नवमी भी कहा जाता है। इस दिन कटोरे में जौ व धान बोया जाता है तथा सात दिन तक पानी देते हुए माँ भगवती की वन्दना की जाती है। उत्तरांचल के चम्पावत जिले के देवीधूरा में राखी-पर्व पर बाराही देवी को प्रसन्न करने के लिए पाषाणकाल से ही पत्थर युद्ध का आयोजन किया जाता रहा है, जिसे स्थानीय भाषा में ‘बग्वाल’ कहते हैं। सबसे आश्चर्यजनक तो यह है कि इस युद्ध में आज तक कोई भी गम्भीर रूप से घायल नहीं हुआ और न ही किसी की मृत्यु हुई। इस युद्ध में घायल होने वाला योद्धा सर्वाधिक भाग्यवान माना जाता है एवं युद्ध समाप्ति पश्चात पुरोहित पीले वस्त्र धारण कर रणक्षेत्र में आकर योद्धाओं पर पुष्प व अक्षत् की वर्षा कर आर्शीवाद देते हैं। इसके बाद युद्ध बन्द हो जाता है और योद्धाओं का मिलन समारोह होता है।

कोस-कोस पर बदले भाषा, कोस-कोस पर बदले बोली-वाले भारतीय समाज में रक्षाबन्धन सिर्फ भाई-बहन के रिश्तों तक ही सीमित नहीं वरन् हर रिश्ते की बुनियाद है। यहाँ त्यौहार सिर्फ एक अनुष्ठान मात्र नहीं, वरन् इनके साथ सामाजिक समरसता, सांस्कृतिक तारतम्य, सभ्यताओं की खोज एवं अपने अतीत से जुडे़ रहने का सुखद अहसास भी जुड़ा होता है। रक्षाबन्धन हमारे सामाजिक परिवेश एवं मानवीय रिश्तों का अंग है। आज जरुरत है कि आडम्बरता की बजाय इस त्यौहार के पीछे छुपे हुए संस्कारों और जीवन मूल्यों को अहमियत दी जाए तभी व्यक्ति, परिवार, समाज और राष्ट्र सभी का कल्याण सम्भव होगा।
पतिदेव कृष्ण कुमार जी के सहयोग से

22 टिप्‍पणियां:

Ram Shiv Murti Yadav ने कहा…

Nice Article on Raksha bandhan..Congts.

बेनामी ने कहा…

Bahut khub Akanksha Ji! Historical information ke sath vartman parivesh men rakhi par lajwab prastuti.

बेनामी ने कहा…

Bahut khub Akanksha Ji! Historical information ke sath vartman parivesh men rakhi par lajwab prastuti.

समयचक्र ने कहा…

राखी पर्व की हार्दिक शुभकामनाये और बधाई

हिंदी साहित्य संसार : Hindi Literature World ने कहा…

रक्षाबंधन पर्व की बधाई...पौराणिक, ऐतिहासिक एवं वर्तमान परिप्रेक्ष्य को सहेजता सुन्दर आलेख.. आभार.

Bhanwar Singh ने कहा…

सारगर्भित लेख. पर्व की प्रासंगिकता को खूबसूरती से बताता है.रक्षाबंधन की बधाई...

Bhanwar Singh ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
Dr. Brajesh Swaroop ने कहा…

त्यौहार भी मन गया, नई-नई जानकारियां भी मिलीं. सब शब्दशिखर पर आकांक्षा जी की माया है.

Amit Kumar Yadav ने कहा…

राखी त्यौहार के बारे में तमाम मान्यताएं पढ़ी थीं, पर आपने तो पूरा खजाना ही रख दिया. ऐसे आलेख युवा पीढी को त्योहारों से जोड़ते हैं.

दिनेशराय द्विवेदी ने कहा…

रक्षाबंधन पर शुभकामनाएँ! विश्व-भ्रातृत्व विजयी हो!

अजय कुमार झा ने कहा…

आकांक्षा जी..आपका संतुलित और विशिष्ट लेख ..नियमित रूप से समाचारपत्रों को आपके आलेख की चर्चा के लिए बाध्य कर रहा है ..ये निश्चित ही ब्लॉगजगत के लिए गर्व का विषय है ..इस पर्व की शुभकामनायें....

शरद कुमार ने कहा…

भाई-बहन के इस पवित्र त्यौहार पर ढेरों शुभकामनायें. स्नेह का बंधन यूँ ही बना रहे. आपका आलेख पढ़कर इस पर्व से जुडी तमाम अनकही बातों के बारे में भी विस्तृत जानकारी मिली...धन्यवाद.

मन-मयूर ने कहा…

रक्षाबन्धन हमारे सामाजिक परिवेश एवं मानवीय रिश्तों का अंग है। आज जरुरत है कि आडम्बर की बजाय इस त्यौहार के पीछे छुपे हुए संस्कारों और जीवन मूल्यों को अहमियत दी जाए तभी व्यक्ति, परिवार, समाज और राष्ट्र सभी का कल्याण सम्भव होगा।...Ekdam sahi likha apne.

www.dakbabu.blogspot.com ने कहा…

भारतीय परम्परा में विश्वास का बन्धन ही मूल है और रक्षाबन्धन इसी विश्वास का बन्धन है। यह पर्व मात्र रक्षा-सूत्र के रूप में राखी बाँधकर रक्षा का वचन ही नहीं देता वरन् प्रेम, समर्पण, निष्ठा व संकल्प के जरिए हृदयों को बाँधने का भी वचन देता है। ...Happy Rakshabandhan.

Shyama ने कहा…

Nice & Interesting article...congts.

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

रक्षाबन्धन पर बढ़िया प्रस्तुति है।
बधाई।

Kavi Kulwant ने कहा…

bahut khoobsurat likha hai aapne..
badhayee...

सुशीला पुरी ने कहा…

bahut bahut badhai........aakanchha ji, ye to mujhe pata hi nhi tha ki aapke jiwan sathi K K ji hain....behad achcha laga.

Udan Tashtari ने कहा…

बेहतरीन आलेख!

रक्षा बंधन के पावन पर्व की शुभकामनाऐं.

Akshitaa (Pakhi) ने कहा…

Beautiful Article.

पाखी की दुनिया में देखें-मेरी बोटिंग-ट्रिप

ushma ने कहा…

aapke blog per aaker bahut acha lga!
mere blog per aane ke liye dhnywad !
abhi akhbar me pdha tha...
friendship band se bahut km biki rakhi....aapka lekh pdh ker thoda
mlal dur huaa!!!!!!!!!1

Unknown ने कहा…

Mam! you write very nice..