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रविवार, 6 सितंबर 2009

गुरु-शिष्य की बदलती परम्परा (शिक्षक दिवस पर विशेष)

 
                                                  गुरूब्र्रह्म गुरूर्विष्णुः गुरूर्देवो महेश्वरः
                                                गुरूः साक्षात परब्रह्म, तस्मैं श्री गुरूवे नमः

 
भारत में गुरू-शिष्य की लम्बी परम्परा रही है। प्राचीनकाल में राजकुमार भी गुरूकुल में ही जाकर शिक्षा ग्रहण करते थे और विद्यार्जन के साथ-साथ गुरू की सेवा भी करते थे। राम-वशिष्ठ, कृष्ण-संदीपनि, अर्जुन-द्रोणाचार्य से लेकर चन्द्रगुप्त मौर्य-चाणक्य एवं विवेकानंद-रामकृष्ण परमहंस तक शिष्य-गुरू की एक आदर्श एवं दीर्घ परम्परा रही है। उस एकलव्य को भला कौन भूल सकता है, जिसने द्रोणाचार्य की मूर्ति स्थापित कर धनुर्विद्या सीखी और गुरूदक्षिणा के रूप में द्रोणाचार्य ने उससे उसके हाथ का अंगूठा ही मांग लिया।

आजादी के बाद गुरू-शिष्य की इस दीर्घ परम्परा में तमाम परिवर्तन आये। 1962 में जब डा0 सर्वपल्ली राधाकृष्णन देश के राष्ट्रपति रूप में पदासीन हुए तो उनके चाहने वालों ने उनके जन्मदिन को ‘‘शिक्षक दिवस‘‘ के रूप में मनाने की इच्छा जाहिर की। डा0 राधाकृष्णन ने कहा कि-‘‘मेरे जन्मदिन को शिक्षक दिवस के रूप में मनाने के निश्चय से मैं अपने को काफी गौरवान्वित महसूस करूंगा।‘‘ तब से लेकर हर 5 सितम्बर को ‘‘शिक्षक दिवस‘‘ के रूप में मनाया जाता है। डाॅ0 राधाकृष्णन ने शिक्षा को एक मिशन माना था और उनके मत में शिक्षक होने के हकदार वही हैं, जो लोगों से अधिक बुद्विमान व अधिक विनम्र हों। अच्छे अध्यापन के साथ-साथ शिक्षक का अपने छात्रों से व्यवहार व स्नेह उसे योग्य शिक्षक बनाता है। मात्र शिक्षक होने से कोई योग्य नहीं हो जाता बल्कि यह गुण उसे अर्जित करना होता है। डा0 राधाकृष्णन शिक्षा को जानकारी मात्र नहीं मानते बल्कि इसका उद्देश्य एक जिम्मेदार नागरिक बनाना है। शिक्षा के व्यवसायीकरण के विरोधी डा0 राधाकृष्णन विद्यालयों को ज्ञान के शोध केन्द्र, संस्कृति के तीर्थ एवं स्वतंत्रता के संवाहक मानते हैं। यह राधाकृष्णन का बड़प्पन ही था कि राष्ट्रपति बनने के बाद भी वे वेतन के मात्र चौथाई हिस्से से जीवनयापन कर समाज को राह दिखाते रहे।

वर्तमान परिप्रेक्ष्य में देखें तो गुरू-शिष्य की परंपरा कहीं न कहीं कलंकित हो रही है। आए दिन शिक्षकों द्वारा विद्यार्थियों के साथ एवं विद्यार्थियों द्वारा शिक्षकों के साथ दुव्र्यवहार की खबरें सुनने को मिलती हैं। जातिगत भेदभाव प्राइमरी स्तर के स्कूलों में आम बात है। यही नहीं तमाम शिक्षक अपनी नैतिक मर्यादायें तोड़कर छात्राओं के साथ अश्लील कार्यों में लिप्त पाये गये। आज न तो गुरू-शिष्य की वह परंपरा रही और न ही वे गुरू और शिष्य रहे। व्यवसायीकरण ने शिक्षा को धंधा बना दिया है। संस्कारों की बजाय धन महत्वपूर्ण हो गया है। ऐसे में जरूरत है कि गुरू और शिष्य दोनों ही इस पवित्र संबंध की मर्यादा की रक्षा के लिए आगे आयें ताकि इस सुदीर्घ परंपरा को सांस्कारिक रूप में आगे बढ़ाया जा सके।

-आकांक्षा यादव

19 टिप्‍पणियां:

Ram Shiv Murti Yadav ने कहा…

शिक्षक दिवस पर बेहतरीन विश्लेष्णात्मक पोस्ट.
शिक्षक दिवस की बधाई !!

राज भाटिय़ा ने कहा…

बहुत अच्छा लिखा आप ने इस विष्य पर. आप का धन्यवाद

संगीता पुरी ने कहा…

सचमुच बहुत बदलाव आ गया है अब !!

Bhanwar Singh ने कहा…

गुरु-शिष्य की बदलती परंपरा पर सारगर्भित पोस्ट. शिक्षक-दिवस पर शुभकामनायें.

बेनामी ने कहा…

राधाकृष्णन जी को शत-शत नमन.शिक्षक-दिवस की शुभकामनायें.

Dr. Brajesh Swaroop ने कहा…

आकांक्षा जी , आप तो खुद भी शिक्षक हैं. आपसे बेहतर कौन जान सकता है. शिक्षक-दिवस पर सारगर्भित लेख.

Dr. Brajesh Swaroop ने कहा…

आकांक्षा जी , आप तो खुद भी शिक्षक हैं. आपसे बेहतर कौन जान सकता है. शिक्षक-दिवस पर सारगर्भित लेख.

Shyama ने कहा…

शिक्षक-दिवस पर शुभकामनायें.

हिंदी साहित्य संसार : Hindi Literature World ने कहा…

बहुत सुन्दर लिखा आपने...राधाकृष्णन जी को शत-शत नमन. शिक्षक-दिवस की शुभकामनायें.

हिंदी साहित्य संसार : Hindi Literature World ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
Amit Kumar Yadav ने कहा…

आपकी यह पोस्ट पढ़कर मैं अभिभूत हूँ...वाकई लाजवाब प्रस्तुति !!

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

शिक्षक-दिवस पर सारगर्भित लेख.
शिक्षक-दिवस की शुभकामनायें.

महेन्द्र मिश्र ने कहा…

समस्त गुरुओ को नमन और प्रणाम

मन-मयूर ने कहा…

आज के दिन आपने सही मुद्दे पर बात रखी. माँ के बाद बच्चे की परवरिश शिक्षक के ही हाथों में होती है, अत: जैसी शिक्षा शिक्षक देंगे वैसा ही समाज बनेगा.

S R Bharti ने कहा…

आज का दिन गुरुओं को समर्पित है. नमन करता हूँ. पर आप द्वारा उठाई बातों की इग्नोर भी नहीं किया जा सकता.

शरद कुमार ने कहा…

वक्त के साथ बहुत कुछ बदला. रिश्तों की परिभाषा भी. गुरु-शिष्य सम्बन्ध भी इससे अछूते नहीं हैं. आज के दिन संबंधों पर पुनर्विचार की जरुरत है.

अभि ने कहा…

shikshak divas per isse achcha aur sansleshit post nahi padha.... nisendeh badhai ke patra hai aap.

प्रसन्नवदन चतुर्वेदी 'अनघ' ने कहा…

अच्छी प्रस्तुति....बहुत बहुत बधाई...
मैनें अपने सभी ब्लागों जैसे ‘मेरी ग़ज़ल’,‘मेरे गीत’ और ‘रोमांटिक रचनाएं’ को एक ही ब्लाग "मेरी ग़ज़लें,मेरे गीत/प्रसन्नवदन चतुर्वेदी"में पिरो दिया है।
आप का स्वागत है...

संजय भास्‍कर ने कहा…

बहुत सुन्दर लिखा आपने...