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शनिवार, 26 सितंबर 2009

भ्रूण हत्या बनाम नौ कन्याओं को भोजन ??


नवरात्र मातृ-शक्ति का प्रतीक है। एक तरफ इससे जुड़ी तमाम धार्मिक मान्यतायें हैं, वहीं अष्टमी के दिन नौ कन्याओं को भोजन कराकर इसे व्यवहारिक रूप भी दिया जाता है। लोग नौ कन्याओं को ढूढ़ने के लिए गलियों की खाक छान मारते हैं, पर यह कोई नहीं सोचता कि अन्य दिनों में लड़कियों के प्रति समाज का क्या व्यवहार होता है। आश्चर्य होता है कि यह वही समाज है जहाँ भ्रूण-हत्या, दहेज हत्या, बलात्कार जैसे मामले रोज सुनने को मिलते है पर नवरात्र की बेला पर लोग नौ कन्याओं का पेट भरकर, उनके चरण स्पर्श कर अपनी इतिश्री कर लेना चाहते हैं। आखिर यह दोहरापन क्यों? इसे समाज की संवेदनहीनता माना जाय या कुछ और? आज बेटियां धरा से आसमां तक परचम फहरा रही हैं, पर उनके जन्म के नाम पर ही समाज में लोग नाकभौं सिकोड़ने लगते हैं। यही नहीं लोग यह संवेदना भी जताने लगते हैं कि अगली बार बेटा ही होगा। इनमें महिलाएं भी शामिल होती हैं। वे स्वयं भूल जाती हैं कि वे स्वयं एक महिला हैं। आखिर यह दोहरापन किसके लिए ??

समाज बदल रहा है। अभी तक बेटियों द्वारा पिता की चिता को मुखाग्नि देने के वाकये सुनाई देते थे, हाल ही में पत्नी द्वारा पति की चिता को मुखाग्नि देने और बेटी द्वारा पितृ पक्ष में श्राद्ध कर पिता का पिण्डदान करने जैसे मामले भी प्रकाश में आये हैं। फिर पुरूषों को यह चिन्ता क्यों है कि उनकी मौत के बाद मुखाग्नि कौन देगा। अब तो ऐसा कोई बिन्दु बचता भी नहीं, जहां महिलाएं पुरूषों से पीछे हैं। फिर भी समाज उनकी शक्ति को क्यों नहीं पहचानता? समाज इस शक्ति की आराधना तो करता है पर वास्तविक जीवन में उसे वह दर्जा नहीं देना चाहता। ऐसे में नवरात्र पर नौ कन्याओं को भोजन मात्र कराकर क्या सभी के कर्तव्यों की इतिश्री हो गई ....???

-आकांक्षा यादव

17 टिप्‍पणियां:

Amit Kumar Yadav ने कहा…

नवरात्र पर नौ कन्याओं को भोजन मात्र कराकर क्या सभी के कर्तव्यों की इतिश्री हो गई ....???
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Bat to apne gambhir kahi..??

निर्मला कपिला ने कहा…

बिलकुल सही सवाल किया है आपने। इस पर गम्भीरता से विचार करने की जरूरत है आभार्

MUMBAI TIGER मुम्बई टाईगर ने कहा…

भ्रूणहत्या इस सदी की सबसे बडी त्रासदी है, आकाक्षा जी! इस पर कुछ दिनो पुर्व मैने मुम्बई टाईगर पर एक पोस्ट लिखी थी।

Arshia Ali ने कहा…

यही हमारे समाज का दोगला पन है।
दुर्गापूजा एवं दशहरा की हार्दिक शुभकामनाएं।
( Treasurer-S. T. )

राज भाटिय़ा ने कहा…

भ्रूणहत्या हत्या करवाने वाले ओर करने वाले दोनो ही तरह के लोग राक्षास है, इन से बात तो दुर की रिशता ही ना रखो...
कही तो दिखाबे के लिये पुजते है(श्र्दा से नही ) ओर कहि इन्हे मारने पर उताऊर है, लानत लानत लानत है ऎसे लोगो पर,
आप का धन्यवाद आप ने बहुत सुंदर विषलेशन किया.

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

अष्टमी और नवमी को कन्याओं की याद आती है।
इसके बाद पूरे वर्ष संवेदनाएँ सो जाती हैं।

Bhanwar Singh ने कहा…

समाज के दो-मुंहi चरित्र को आपने सामने रखा....यह जरुरी भी है कि इस पर लोग सोचें.

Bhanwar Singh ने कहा…

समाज के दो-मुंहi चरित्र को आपने सामने रखा....यह जरुरी भी है कि इस पर लोग सोचें.

शरद कुमार ने कहा…

ब्लॉग की दुनिया का यही कमाल है कि वहां सिर्फ साहित्य-संस्कृति नहीं बल्कि समाज को जगाती रचनाएँ भी हैं. आपकी यह पोस्ट वाकई विचार करने पर मजबूर करती है.

Betuke Khyal ने कहा…

male dominance in indian society is so pronounced. It's visible everywhere.. just think of it we have a different set of do's & don'ts for men & women.. so much emphasis is laid on chastity of women & not on men..we have reduced a woman to a mere commodity, a thing to possess..we continue devaluing the works performed by the women, e.g., household chores.. we gotta change our mindsets.. i hope sanity will prevail soon..

Ram Shiv Murti Yadav ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
Ram Shiv Murti Yadav ने कहा…

सही मुद्दा...सार्थक बात...प्रासंगिक सवाल.

Urmi ने कहा…

बिल्कुल सही मुद्दे को लेकर बड़े ही सुंदर रूप से आपने प्रस्तुत किया है!

KK Yadav ने कहा…

समाज इस शक्ति की आराधना तो करता है पर वास्तविक जीवन में उसे वह दर्जा नहीं देना चाहता। ऐसे में नवरात्र पर नौ कन्याओं को भोजन मात्र कराकर क्या सभी के कर्तव्यों की इतिश्री हो गई ....???

...इस उत्सवी माहौल में एक गंभीर सवाल, जिसका जवाब समाज के मठाधीशों को देना ही होगा

हिंदी साहित्य संसार : Hindi Literature World ने कहा…

आकांक्षा जी ! आपकी हर पोस्ट कुछ कहती है. चीजों को तार्किक तौर पर सामने रखकर आपने ब्लोगिंग का सार्थक उपयोग किया है. आपकी इस सोच की कायल हूँ.

Shyama ने कहा…

Very relevant post in today,s life.

संजय भास्‍कर ने कहा…

सही मुद्दा...सार्थक बात..