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सोमवार, 28 दिसंबर 2009

भारत में नव वर्ष के विभिन्न रूप

नव वर्ष धीरे-धीरे अपने मुकाम की ओर बढ़ रहा है. इसी के साथ उल्लास का पर्व भी आरंभ होता जाता है. कोई डांस-पार्टी इंजॉय करता है तो कोई दिन-दुखियों के साथ नव वर्ष सेलिब्रेट करता है. नव वर्ष के उद्भव की भी अपनी रोचक कहानी है. मानव इतिहास की सबसे पुरानी पर्व परम्पराओं में से एक नववर्ष है। नववर्ष के आरम्भ का स्वागत करने की मानव प्रवृत्ति उस आनन्द की अनुभूति से जुड़ी हुई है जो बारिश की पहली फुहार के स्पर्श पर, प्रथम पल्लव के जन्म पर, नव प्रभात के स्वागतार्थ पक्षी के प्रथम गान पर या फिर हिम शैल से जन्मी नन्हीं जलधारा की संगीत तरंगों से प्रस्फुटित होती है।

इतिहास के गर्त में झांकें तो प्राचीन बेबिलोनियन लोग अनुमानतः 4000 वर्ष पूर्व से ही नववर्ष मनाते रहे हैं। लेकिन उस समय नववर्ष का ये त्यौहार 21 मार्च को मनाया जाता था जो कि वसंत के आगमन की तिथि भी मानी जाती थी । रोम के तानाशाह जूलियस सीज़र ने ईसा पूर्व 45वें साल में जब जूलियन कैलेंडर की स्थापना की, उस समय विश्व में पहली बार 1 जनवरी को नववर्ष का उत्सव मनाया गया। ऐसा करने के लिए जूलियस सीजर को पिछला साल, यानि, ईसापूर्व 46 इस्वी को 445 दिनों का करना पड़ा था।

आज विभिन्न विश्व संस्कृतियाँ नववर्ष अपनी-अपनी कैलेण्डर प्रणाली के अनुसार मनाती हैं। हिब्रू मान्यताओं के अनुसार भगवान द्वारा विश्व को बनाने में सात दिन लगे थे । इस सात दिन के संधान के बाद नया वर्ष मनाया जाता है। यह दिन ग्रेगेरियन कैलेंडर के मुताबिक 5 सितम्बर से 5 अक्टूबर के बीच आता है। इसी तरह इस्लामिक कैलेंडर का नया साल मुहर्रम होता है। इस्लामी कैलेंडर एक पूर्णतया चन्द्र आधारित कैलेंडर है जिसके कारण इसके बारह मासों का चक्र 33 वर्षों में सौर कैलेंडर को एक बार घूम लेता है । इसके कारण नव वर्ष प्रचलित ग्रेगरी कैलेंडर में अलग-अलग महीनों में पड़ता है। चीनी कैलेंडर के अनुसार प्रथम मास का प्रथम चन्द्र दिवस नव वर्ष के रूप में मनाया जाता है । यह प्रायः 21 जनवरी से 21 फरवरी के बीच पड़ता है।

***भारत में नव वर्ष के विभिन्न रूप***

भारत के भी विभिन्न हिस्सों में नव वर्ष अलग-अलग तिथियों को मनाया जाता है । प्रायः ये तिथि मार्च और अप्रैल के महीने में पड़ती है । पंजाब में नया साल बैशाखी नाम से 13 अप्रैल को मनाई जाती है। सिख नानकशाही कैलंडर के अनुसार 14 मार्च होला मोहल्ला नया साल होता है। इसी तिथि के आसपास बंगाली तथा तमिल नव वर्ष भी आता है। तेलगु नव वर्ष मार्च-अप्रैल के बीच आता है। आंध्रप्रदेश में इसे उगादी (युगादि=युग+आदि का अपभ्रंश) के रूप में मनाते हैं। यह चैत्र महीने का पहला दिन होता है। तमिल नव वर्ष विशु 13 या 14 अप्रैल को तमिलनाडु और केरल में मनाया जाता है। तमिलनाडु में पोंगल 15 जनवरी को नव वर्ष के रूप में आधिकारिक तौर पर भी मनाया जाता है। कश्मीरी कैलेंडर नवरेह 19 मार्च को होता है। महाराष्ट्र में गुड़ी पड़वा के रूप में मार्च-अप्रैल के महीने में मनाया जाता है, कन्नड़ नव वर्ष उगाडी कर्नाटक के लोग चैत्र माह के पहले दिन को मनाते हैं, सिंधी उत्सव चेटी चंड, उगाड़ी और गुड़ी पड़वा एक ही दिन मनाया जाता है। मदुरै में चित्रैय महीने में चित्रैय तिरूविजा नव वर्ष के रूप में मनाया जाता है। मारवाड़ी नव वर्ष दीपावली के दिन होता है। गुजराती नव वर्ष दीपावली के दिन होता है जो अक्टूबर या नवंबर में आती है। बंगाली नव वर्ष पोहेला बैसाखी 14 या 15 अप्रैल को आता है। पश्चिम बंगाल और बांग्लादेश में इसी दिन नव वर्ष होता है।भारत में विक्रम संवत, शक संवत, बौद्ध और जैन संवत, तेलगु संवत भी प्रचलित हैं.इनमें हर एक का अपना नया साल होता है। देश में सर्वाधिक प्रचलित विक्रम और शक संवत है। विक्रम संवत को सम्राट विक्रमादित्य ने शकों को पराजित करने की खुशी में 57 ईसा पूर्व शुरू किया था। विक्रम संवत चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से शुरू होता है। इस दिन गुड़ी पड़वा और उगादी के रूप में भारत के विभिन्न हिस्सों में नववर्ष मनाया जाता है। वस्तुत: भारत में नववर्ष का शुभारम्भ वर्षा का संदेशा देते मेघ, सूर्य और चंद्र की चाल, पौराणिक गाथाओं और इन सबसे ऊपर खेतों में लहलहाती फसलों के पकने के आधार पर किया जाता है। इसे बदलते मौसमों का रंगमंच कहें या परम्पराओं का इन्द्रधनुष या फिर भाषाओं और परिधानों की रंग-बिरंगी माला, भारतीय संस्कृति ने दुनिया भर की विविधताओं को संजो रखा है।
 
-आकांक्षा यादव

रविवार, 27 दिसंबर 2009

इन्दिरा गाँधी की तमन्ना थी कि उनको बेटी मिले

पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को चाहत थी कि उनकी एक पुत्री भी हो। ज्योति बसु को जवाहर लाल नेहरू ट्रस्ट से अभिभाषण के एवज में एक लाख सुपए सम्मान राशि और अन्य खर्च के लिए 1998 में प्रदान किए गए थे। ऐसे ही कुछ अनछुए पहलुओं का खुलासा पूर्व विदेश मंत्री नटवर सिंह की हाल ही में प्रकाशित अंग्रेजी पुस्तक 'योवर्स सिंसीयरली' में किया गया है। पुस्तक में नटवर सिंह के कई नामी हस्तियों के साथ पत्र व्यवहार संकलित हैं। इनमें इंदिरा गांधी, पीएन हक्सर, एचवाई शारदा प्रसाद, विजय लक्ष्मी पंडित, राजीव गाँधी, ईएम फोस्टर, एम गोर्डीमेर और मुल्कराज आनंद के साथ उनके पत्राचार के विवरण शामिल हैं।

पुस्तक में नटवर सिंह ने कई महत्वपूर्ण और अनछुई जानकारियों का खुलासा किया है। जैसे कि एक पत्र में इंदिरा गांधी ने उन्हें लिख था कि 'चीन क्या सोचता या कहता है, यह महत्वपूर्ण नही है, महत्वपूर्ण यह है कि क्या करता है ? इस दृष्टि से वह उम्मीद के अनुरूप अभी भी है।

1975 में गुजरात विधानसभा भंग करने की मांग पर पूर्व प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई की मांग से क्षुब्ध होकर इंदिरा गाँधी ने नटवर सिंह को कए पत्र लिखा था। उस समय वे लंदन में वे उप उच्चायुक्त थे। इस पत्र में लिखा था, 'हमने मोरारजी की मांग अंशत: मान ली है.. कि कितनी मूर्खतापूर्ण बात थी इस तरह का अनशन और हमें उनकी मांग मानना.. तब भी हम काफी कठिन स्थिति में थे। मोरारजी के देहान्त के बाद के परिदृश्य के बारे में सोचकर चिंतित थे। मैं इस बात से काफी स्तब्ध थी कि कुछ (विपक्षी दल) लोगों के दावे के अनुसार उनके देहान्त के बाद विपक्ष की एकता की राह साफ हो जाएगी।'

आंध्र प्रदेश में तेलंगाना की मांग के चन्द्रशेखर राव के हाल के अनशन के अवसर पर इंदिरा गांध के पत्र का स्मरण होता है। पत्राचार में इंदिरा गांधी के मजाकिया व्यक्तित्व की झलक जनवरी, 1970 में उनके पत्र से मिलती है जब नटवर सिंह रीढ़ की हड्डी में स्लिप डिस्क से परेशान थे। इंदिरा गाँधी ने उन्हें लिखा था कि केपीएस मेनन जब ऐसी ही स्थिति में थे तो अजन्ता की गुफा के चित्रों की मुद्रा में वे कैसे कलात्मक ढंग से खड़े होते थे। नटवर सिंह की पुत्री हुई तो उन्हें बधाई देते हुए इंदिरा गाँधी ने पत्र में लिखा था कि उनकी तमन्ना थी कि उन्हें भी एक लड़की होती। भाकपा नेता हीरेन मुखर्जी का एक पत्र इस संकलन में है, जिसमें उन्होंने लिखा है कि क्या यह सच है ज्योति बसु ने जवाहरलाल नेहरू ट्रस्ट से लेक्चर देने के लिए एक लाख रुपए और अन्य खर्च लिए थे।

शुक्रवार, 25 दिसंबर 2009

अमर उजाला में 'शब्द-शिखर' की चर्चा


'शब्द शिखर' पर 23 दिसंबर 2009 को प्रस्तुत पोस्ट हफ्ते भर बंद रहेंगीं बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ को प्रतिष्ठित हिन्दी दैनिक पत्र 'अमर उजाला' ने 24 दिसंबर 2009 को अपने सम्पादकीय पृष्ठ पर 'ब्लॉग कोना' में स्थान दिया! 'अमर उजाला' के ब्लॉग कोना में आठवीं बार 'शब्द-शिखर' की चर्चा हुई है...आभार!

इससे पहले इस ब्लॉग पर प्रकाशित रचनाओं की चर्चा अमर उजाला, राष्ट्रीय सहारा, गजरौला टाईम्स, दस्तक, आई-नेक्स्ट, IANS द्वारा जारी फीचर में की जा चुकी है. आप सभी का इस समर्थन व सहयोग के लिए आभार!

मंगलवार, 22 दिसंबर 2009

हफ्ते भर बंद रहेंगीं बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ

सुनने में अजीब लगता है पर यह सच है. खर्चो में कटौती की योजना के तहत तमाम कम्पनियाँ एक सप्ताह के लिए अपने दफ्तर बंद कर रही है। इस दौरान इन कार्यालयों में सिर्फ अनिवार्य काम होगा। वस्तुत: बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ अब मंदी के दौर में खर्चों में कटौती के नए उपाय तलाश रही हैं और इसी क्रम में ये कदम उठाये जा रहे हैं. वित्तीय वर्ष का अंत भी मार्च में हो जायेगा, उससे पहले इन नामचीन कंपनियों को अपने को लाभ में दिखने के लिए तमाम पापड़ बेलने पड़ रहे हैं.

इंटरनेट कंपनी याहू के दुनियाभर के कार्यालय क्रिसमस से नव-वर्ष के प्रथम दिन (25 दिसंबर से 1 जनवरी) तक अर्थात एक सप्ताह के लिए बंद रहेंगे। याहू के अलावा एडोब तथा एप्पल जैसी कंपनियों ने भी छुट्टियों के दौरान अपने दफ्तर बंद रखने की घोषणा की है। एडोब और एप्पल के कार्यालय भी 24 दिसंबर से 1जनवरी तक बंद रहेंगे। याहू पूर्व में भी अपने अमेरिकी कर्मचारियों से एक सप्ताह का अवकाश लेने को कह चुकी है पर कंपनी द्वारा दफ्तर बंद रखने का अनिवार्य कदम पहली बार उठाया जा रहा है। इस कदम से कोई गलत सन्देश न जाये, इसके लिए ये आधुनिक कम्पनियाँ, परंपरागत तर्कों का सहारा ले रही हैं. कहा जा रहा है कि परंपरागत रूप से कारोबार की दृष्टि से ठंडे सप्ताह के दौरान दफ्तर बंद रखने से कर्मचारियों को फिर तरोताजा होने का मौका मिलता है और साथ ही इससे कंपनी की परिचालन लागत में कमी आती है। फ़िलहाल याहू के अमेरिकी कर्मचारी इस दौरान अवकाश ले सकते हैं या बिना वेतन की छुट्टियां ले सकते हैं। वहीं अमेरिका के बाहर के कर्मचारियों को इस दौरान स्थानीय कानून के अनुसार भुगतान किया जाएगा। गौरतलब है कि खर्चो में कटौती के उपायों के तहत याहू पहले ही 700 कर्मचारियों की छंटनी कर चुकी है।....अब देखते जाइये, आगे-आगे होता क्या है. फ़िलहाल हम निश्चिन्त हो सकते हैं, सरकारी मुलाजिम जो ठहरे और वो भी भारत में. चिंता तो वो करें जो बड़ी-बड़ी डिग्रियाँ लेकर बड़ी-बड़ी कंपनियों में काम करते हैं और बड़े-बड़े पैकेज उठाते हैं...पर सरकारी नौकरी में जो निश्चिन्तता है, वो बड़ी कंपनियों में नहीं. हमेशा सर पर तलवार लटकी रहती है कि कब बाज़ार के भाव गिरे और इसी के साथ बड़े-बड़े पैकेज भी औंधे मुँह गिरे. इसे कहते हैं नाम बड़े-दर्शन छोटे.

फ़िलहाल क्रिसमस और नव-वर्ष को सेलिब्रेट करने की तैयारियाँ कीजिये !!!

गुरुवार, 17 दिसंबर 2009

एक आरती के क्रांतिकारी रचयिता...ओम् जग जगदीश हरे, स्वामी जय जगदीश हरे

ओम् जग जगदीश हरे, स्वामी जय जगदीश हरे, भक्त जनों के संकट, क्षण में दूर करें....पूजा-आराधना किसी भी देवता की की जा रही हो, ओम जय जगदीश हरे आरती हर अवसर पर गाई जाती है। करीब डेढ़ सौ वर्ष में मंत्र और शास्त्र की तरह लोकप्रिय हो गई इस भावपूर्ण गीत आरती के रचयिता पंडित श्रद्धाराम शर्मा के बारे में कम लोगों को ही पता है। पं0 श्रद्धाराम शर्मा का जन्म 1838 में पंजाब के लुधियाना के पास फुल्लौर में हुआ थां. पिता जयदयालु अच्छे ज्योतिषी और धार्मिक प्रवृत्ति के थे. ऐसे में बालक श्रद्धाराम को बचपन से ही धार्मिक संस्कार विरासत में मिले थे। पंडित श्रद्धाराम शर्मा हिंदी के ही नहीं बल्कि पंजाबी के भी श्रेष्ठ साहित्यकारों में थे, लेकिन उनका मानना था कि हिंदी के माध्यम से इस देश के ज्यादा से ज्यादा लोगों तक अपनी बात पहुंचाई जा सकती है। उन्होंने अपने साहित्य और व्याख्यानों से सामाजिक कुरीतियों और अंधविश्वासों के खिलाफ जबर्दस्त माहौल बनाया।

आज जिस पंजाब में सबसे ज्यादा कन्याओं की भ्रूण-हत्या होती है उसका अहसास पंडित श्रद्धाराम ने सौ साल पहले ही कर लिया था और इस विषय पर उन्होंने ‘भाग्यवती‘ उपन्यास लिखकर समाज को चेता दिया था।32 वर्ष की उम्र में पंडित श्रद्धाराम शर्मा ने 1870 में ''ओम जय जगदीश'' आरती की रचना की। पं0 श्रद्धाराम की विद्वता और भारतीय धार्मिक विषयों पर उनकी वैज्ञानिक दृष्टि के लोग कायल हो गए थे। जगह-जगह पर उनको धार्मिक विषयों पर व्याख्यान देने के लिए आमंत्रित किया जाता था और हजारों की संख्या में लोग उनको सुनने आते थे। वे लोगों के बीच जब भी जाते अपनी लिखी ओम जय जगदीश की आरती गाकर सुनाते। यही नहीं धार्मिक कथाओं और आख्यानों का उद्धरण देते हुए उन्होंने अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ जनजागरण का ऐसा वातावरण तैयार कर दिया कि अंग्रेजी सरकार की नींद उड़ गई।

भारतीय सन्दर्भ में महाभारत का उल्लेख करते हुए वे ब्रिटिश सरकार को उखाड़ फेंकने का संदेश देते थे। पंडित श्रद्धाराम शर्मा की गतिविधियों से तंग आकर 1865 में ब्रिटिश सरकार ने उनको फुल्लौरी से निष्कासित कर दिया और आसपास के गाँवों तक में उनके प्रवेश पर पाबंदी लगा दी गई। जबकि उनकी लिखी किताबें स्कूलों में पढ़ाई जाती रही। पं0 श्रद्धाराम ने पंजाबी (गुरूमुखी) में ‘सिखों दे राज दी विथिया‘ और पंजाबी बातचीत जैसी किताबें लिखकर मानों क्रांति ही कर दी। अपनी पहली ही किताब से वे पंजाबी साहित्य में प्रतिष्ठित हो गए। इस पुस्तक में सिख धर्म की स्थापना और इसकी नीतियों के बारे में बहुत सारगर्भित ढंग से बताया गया था। अंग्रेज सरकार ने तब होने वाली आईसीएस परीक्षा के कोर्स में इस पुस्तक को शामिल किया था।एक ईसाई पादरी फादर न्यूअन जो पं0 श्रद्धाराम के विचारों से बेहद प्रभावित थे, के हस्तक्षेप पर अंग्रेज सरकार को कुछ ही दिनों में उनके निष्कासन का आदेश वापस लेना पड़ा। पंडित श्रद्धाराम ने पादरी के कहने पर बाइबिल के कुछ अंशों का गुरूमुखी में अनुवाद भी किया था। पं0 श्रद्धाराम का निधन 1881 में लाहौर में हुआ था। आज हर घर में "जय जगदीश हरे" आरती गई जाती है, यहाँ तक की युवा भी बड़ी तल्लीनता से इसे गाती है, पर अधिकतर को इसके रचयिता का नाम तक पता नहीं.

शनिवार, 12 दिसंबर 2009

पाँच वर्षों का यह सुखद सफर !!


28 नवम्बर, 2009 को हमारे वैवाहिक जीवन की पाँचवी वर्षगाँठ थी. हम दोनों उस दिन दो भिन्न जगहों पर थे और नेट से भी दूर थे. पर इस सुखद पल की यादों को सँजोने हेतु पतिदेव श्री कृष्ण कुमार यादव जी ने अपने ब्लॉग "शब्द सृजन की ओर" पर कुछ शब्द लिखे हैं, उन्हें यहाँ साधिकार (साभार नहीं) प्रस्तुत कर रही हूँ-



28 नवम्बर का दिन हमारे जीवन में बहुत महत्वपूर्ण है. इस वर्ष इस तिथि को सबसे महत्वपूर्ण बात रही कि हमारी शादी के पाँच साल पूरे हो गए। 28 नवम्बर, 2004 (रविवार) को मैं और आकांक्षा जीवन के इस अनमोल पवित्र बंधन में बंधे थे. वक़्त कितनी तेजी से करवटें बदलता रहा, पता ही नहीं चला. सरकारी भाषा में कहें तो एक पंचवर्षीय योजना मानो पूरी हो गई. सुख-दुःख के बीच सफलता के तमाम आयाम हमने छुए. कभी जिंदगी सरपट दौड़ती तो कई बार ब्रेक लग जाता. पिछले साल का हादसा अभी भी नहीं भूलता. जब शादी की सालगिरह के अगले दिन ही मेरा एक एक्सिडेंट हुआ और बाएं हाथ
का आपरेशन करना पड़ा. एक सप्ताह के लिए मैं हॉस्पिटल में भी रहा. इस बार भी शादी की सालगिरह पर हम साथ नहीं थे, मैं ट्रेनिंग के सिलसिले में बाहर था....पता नहीं यह कैसा संयोग है, पर पाँच साल के इस सफ़र में सालगिरह का दिन हमारे लिए बहुत अजीब रहा. दो बार ट्रेनिंग, एक बार बॉस के साथ एक मीटिंग में काफी रात हो जाना, एक बार सालगिरह के अगले दिन एक्सिडेंट....कुल मिला-जुलाकर अब तक एक ही सालगिरह हम लोग कायदे से उसी दिन सेलिब्रेट कर पाए हैं. हमेशा अपनी सालगिरह सेलिब्रेट करने के लिए हमें किसी अगली तिथि का चुनाव करना पड़ता है, पर वह दिन सिर्फ हमारा होता है. कई बार हम लोग मजाक में कहते भी हैं की विभाग वालों ने हमारी सालगिरह की तारीख नोट कर रखी है, कोई भी ट्रेनिंग और महत्वपूर्ण मीटिंग इसी दिन होगी.


ऐसा ही अजीब संयोग हमारी शादी के बारे में भी है. मैं जहाँ भी पोस्टिंग पर जाता, वहाँ आकांक्षा जी के भ्राता श्री लोगों की भी पोस्टिंग होती. जब मैं पोस्टल स्टाफ कालेज, गाज़ियाबाद में ट्रेनिंग कर रहा था तो इनके बड़े भ्राता श्री नोएडा में एक मल्टीनेशनल कंपनी में थे, पहली पोस्टिंग पर सूरत गया तो इनके भ्राता श्री गुजरात कैडर के IAS अधिकारी थे, वहां से ट्रांसफर होकर लखनऊ में असिस्टेंट पोस्टमास्टर जनरल बना तो इनके एक भ्राता श्री वहां पुलिस उपाधीक्षक थे.....फिर ये रिश्ता होने से कौन रोक सकता था. खैर हम लोगों की शादी 28 नवम्बर, 2004 को धूमधाम के साथ सारनाथ-बनारस में हुई, एक साथ भगवान शंकर जी और भगवान बुद्ध जी का आशीर्वाद मिला। कानपुर में पोस्टिंग के दौरान वर्ष 2006 में प्यारी बिटिया अक्षिता का जन्म हुआ.

एक-दूसरे के साथ बिताये गए ये पाँच साल सिर्फ इसलिए नहीं महत्वपूर्ण हैं कि हमने पति-पत्नी का सम्बन्ध निभाया, बल्कि इसलिए भी कि हमने एक-दूसरे को समझा, सराहा और संबल दिया. अक्सर लोग मुझसे पूछते हैं कि प्रशासनिक व्यस्तताओं के बीच कैसे समय निकल लेते हैं तो इसके पीछे आकांक्षा जी का ही हाथ है. यदि उन्होंने मेरी रचनात्मकता को सपोर्ट नहीं किया होता तो मैं आज एक अदद सिविल सर्वेंट मात्र होता, लेखक-कवि-साहित्यकार के तमगे मेरे साथ नहीं लगे रहते. यह हमारा सौभाग्य है कि हम दोनों साहित्य प्रेमी हैं और कई सामान रुचियों के कारण कई मुद्दों पर खुला संवाद भी कर लेते हैं।

शादी की सालगिरह पर तमाम मित्रजनों-सम्बन्धियों की शुभकामनायें तमाम माध्यमों से प्राप्त हुई...आप सभी का आभार. हिंदी ब्लॉगरों के जन्मदिन ब्लॉग पर भी इस दिन शुभकामनायें दी गईं, आभारी हैं हम दोनों। आप सभी का स्नेह बना रहे ....!!

मंगलवार, 8 दिसंबर 2009

'बाल साहित्य समीक्षा' का आकांक्षा यादव विशेषांक

बच्चों के समग्र विकास में बाल साहित्य की सदैव से प्रमुख भूमिका रही है। बाल साहित्य बच्चों से सीधा संवाद स्थापित करने की विधा है। बाल साहित्य बच्चों की एक भरी-पूरी, जीती-जागती दुनिया की समर्थ प्रस्तुति और बालमन की सूक्ष्म संवेदना की अभिव्यक्ति है। यही कारण है कि बाल साहित्य में वैज्ञानिक दृष्टिकोण व विषय की गम्भीरता के साथ-साथ रोचकता व मनोरंजकता का भी ध्यान रखना होता है। समकालीन बाल साहित्य केवल बच्चों पर ही केन्द्रित नहीं है अपितु उनकी सोच में आये परिवर्तन को भी बखूबी रेखाकित करता है। सोहन लाल द्विवेदी जी ने अपनी कविता ‘बड़ों का संग’ में बाल प्रवृत्ति पर लिखा है कि-''खेलोगे तुम अगर फूल से तो सुगंध फैलाओगे।/खेलोगे तुम अगर धूल से तो गन्दे हो जाओगे/कौवे से यदि साथ करोगे, तो बोलोगे कडुए बोल/कोयल से यदि साथ करोगे, तो दोगे तुम मिश्री घोल/जैसा भी रंग रंगना चाहो, घोलो वैसा ही ले रंग/अगर बडे़ तुम बनना चाहो, तो फिर रहो बड़ों के संग।''

आकांक्षा जी बाल साहित्य में भी उतनी ही सक्रिय हैं, जितनी अन्य विधाओं में। बाल साहित्य बच्चों को उनके परिवेश, सामाजिक-सांस्कृतिक परम्पराओं, संस्कारों, जीवन मूल्य, आचार-विचार और व्यवहार के प्रति सतत् चेतन बनाने में अपनी भूमिका निभाता आया है। बाल साहित्यकार के रूप में आकांक्षा जी की दृष्टि कितनी व्यापक है, इसका अंदाजा उनकी कविताओं में देखने को मिलता है। इसी के मद्देनजर कानपुर से डा0 राष्ट्रबन्धु द्वारा सम्पादित-प्रकाशित ’बाल साहित्य समीक्षा’ ने नवम्बर 2009 अंक आकांक्षा यादव जी पर विशेषांक रूप में केन्द्रित किया है। 30 पृष्ठों की बाल साहित्य को समर्पित इस मासिक पत्रिका के आवरण पृष्ठ पर बाल साहित्य की आशा को दृष्टांकित करता आकांक्षा यादव जी का सुन्दर चित्र सुशोभित है। इस विशेषांक में आकांक्षा जी के व्यक्तित्व-कृतित्व पर कुल 9 रचनाएं संकलित हैं।

’’सांस्कृतिक टाइम्स’’ की विद्वान सम्पादिका निशा वर्मा ने ’’संवेदना के धरातल पर विस्तृत होती रचनाधर्मिता’’ के तहत आकांक्षा जी के जीवन और उनकी रचनाधर्मिता पर विस्तृत प्रकाश डाला है तो उत्तर प्रदेश हिन्दी साहित्य सम्मेलन से जुडे दुर्गाचरण मिश्र ने आकांक्षा जी के जीवन को काव्य पंक्तियों में बखूबी गूंथा है। प्रसि़द्ध बाल साहित्यकार डा0 राष्ट्रबन्धु जी ने आकांक्षा जी के बाल रचना संसार को शब्दों में भरा है तो बाल-मन को विस्तार देती आकांक्षा यादव की कविताओं पर चर्चित समालोचक गोवर्धन यादव जी ने भी कलम चलाई है। डा0 कामना सिंह, आकांक्षा यादव की बाल कविताओं में जीवन-निर्माण का संदेश देखती हैं तो कविवर जवाहर लाल ’जलज’ उनकी कविताओं में प्रेरक तत्वों को परिलक्षित करते हैं।

वरिष्ठ बाल साहित्यकार डा0 शकुन्तला कालरा, आकांक्षा जी की रचनाओं में बच्चों और उनके आस-पास की भाव सम्पदा को चित्रित करती हैं, वहीं चर्चित साहित्यकार प्रो0 उषा यादव भी आकांक्षा यादव के उज्ज्वल साहित्यिक भविष्य के लिए अशेष शुभकामनाएं देती हैं। राष्ट्भाषा प्रचार समिति-उ0प्र0 के संयोजक डा0 बद्री नारायण तिवारी, आकांक्षा यादव के बाल साहित्य पर चर्चा के साथ दूर-दर्शनी संस्कृति से परे बाल साहित्य को समृद्ध करने पर जोर देते हैं, जो कि वर्तमान परिप्रेक्ष्य में बेहद प्रासंगिक भी है। साहित्य साधना में सक्रिय सर्जिका आकांक्षा यादव के बहुआयामी व्यक्तित्व को युवा लेखिका डा0 सुनीता यदुवंशी बखूबी रेखांकित करती हैं। बचपन और बचपन की मनोदशा पर वर्तमान परिप्रेक्ष्य में प्रस्तुत आकांक्षा जी का आलेख ’’खो रहा है बचपन’’ बेहद प्रभावी व समयानुकूल है।

आकांक्षा जी बाल साहित्य में नवोदित रचनाकार हैं, पर उनका सशक्त लेखन भविष्य के प्रति आश्वस्त करता हैं। तभी तो अपने संपादकीय में डा0 राष्ट्रबन्धु लिखते हैं-’’बाल साहित्य की आशा के रूप में आकांक्षा यादव का स्वागत कीजिए, उन जैसी प्रतिभाओं को आगे बढ़ने का रास्ता दीजिए। फूलों की यही नियति है।’’ निश्चिततः ’बाल साहित्य समीक्षा’ द्वारा आकांक्षा यादव पर जारी यह विशेषांक बेहतरीन रूप में प्रस्तुत किया गया है। एक साथ स्थापित व नवोदित रचनाकारों को प्रोत्साहन देना डाॅ0 राष्ट्रबन्धु जी का विलक्षण गुण हैं और इसके लिए डा0 राष्ट्रबन्धु जी साधुवाद के पात्र हैं।

समीक्ष्य पत्रिका-बाल साहित्य समीक्षा (मा0) सम्पादक-डा0 राष्ट्रबन्धु,, मूल्य 15 रू0, पता-109/309, रामकृष्ण नगर, कानपुर-208012
समीक्षक- जवाहर लाल ‘जलज‘, ‘जलज निकुंज‘ शंकर नगर, बांदा (उ0प्र0)