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मंगलवार, 27 जुलाई 2010

मासूम सूरत सहमी-सी

 
वह पैबंद लगी फ्राक पहने
लालीपाप ले जा रही थी,
मासूम सूरत सहमी-सी
बरबस पूछ लिया
बच्ची, क्या नाम है तुम्हारा
कहां रहती हो
जवाब देने के बजाय
उसने मांगने के लिए फैला दिये हाथ।

(कानपुर से अलका गुप्ता जी ने भेजा. उनकी यह कविता कादम्बिनी के नए पत्ते-स्तम्भ में प्रकाशित हो चुकी है.)

19 टिप्‍पणियां:

Udan Tashtari ने कहा…

मार्मिक!

प्रज्ञा पांडेय ने कहा…

aapki samvedana gahari hai

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

परिचय देने का यह अनुभव मार्मिक लगा।

KK Yadav ने कहा…

जवाब देने के बजाय
उसने मांगने के लिए फैला दिये हाथ।

...यही तो बाल-विडंबना है. इस सुन्दर कविता के लिए अलका को बधाई .

KK Yadav ने कहा…

जवाब देने के बजाय
उसने मांगने के लिए फैला दिये हाथ।

...यही तो बाल-विडंबना है. इस सुन्दर कविता के लिए अलका को बधाई .

Unknown ने कहा…

Do,
panktiyon me kitna kuch kagai Alka ji
वह पैबंद लगी फ्राक पहने...
उसने मांगने के लिए फैला दिये हाथ।|
Ek tees si uthti hai en shabdon ki kalpna matra se .......
Bahut hi sanvedanseel kavita hai.
Or haan Akanksha aap ko bhi bahut bahut dhanyabad.

Unknown ने कहा…

कविता छोटी है, पर बड़े सवाल उठाती है.

Unknown ने कहा…

आकांक्षा जी, यह देखकर अच्छा लगा कि आप अपने इस ब्लॉग पर कई उभरते हुए रचनाकारों को प्रकाशित कर उन्हें भी प्रोत्साहन देती हैं. आपको इस नेक कार्य के लिए साधुवाद.

Dr. Brajesh Swaroop ने कहा…

मासूमों की व्यथा को अच्छा उकेरा गया इस कविता में..

Bhanwar Singh ने कहा…

पढ़कर सोचने पर मजबूर...

shikha varshney ने कहा…

एक सच....जो सोचने पर मजबूर करता है .

Shayar Ashok : Assistant manager (Central Bank) ने कहा…

सवेंदनशील रचना.......बहुत खूब ||

PARAM ARYA ने कहा…

बच्चों की पढ़ाई के कारण नगर में बसे परंतु खेती के कारण बारम्बार गांव की ओर भागना पड़ता है। यह देखकर मन प्रसन्न है कि जो काम मैं करना चाहता था वह चल रहा है। भंडाफोड़ कार्यक्रम मूलतः स्वामी दयानंद जी का ही अभियान है। इसमें मेरी ओर से सदैव सहयोग रहेगा। कामदर्शी की पोल मैंने अपने ब्लॉग पर खोल ही दी है। अनवर को मैं आरंभ से ही छकाता थकाता आ रहा हूं। http://rajeev2004.blogspot.com/2010/04/5-headed-snake-found-in-kukke.html

मनोज कुमार ने कहा…

सबके प्रति समान स्‍नेह रखने से आप धैर्य का जीवन जी सकते हैं।

सु-मन (Suman Kapoor) ने कहा…

मार्मिक व सजीव चित्रण..........

JAGDISH BALI ने कहा…

गागर मैं सागर ! बहुत खूब ! आप्के बलोग पर आ कर मन को सकून मिला !

JAGDISH BALI ने कहा…

गागर मैं सागर ! बहुत खूब ! आप्के बलोग पर आ कर मन को सकून मिला !

माधव( Madhav) ने कहा…

कारुणिक रचना , निराला के भिक्षुक की याद दिलाती हुई .

मृत्युंजय कुमार राय

Akanksha Yadav ने कहा…

अलका गुप्ता की यह मासूम कविता 'शब्द-शिखर' पर आप सभी को पसंद आई..आभार.