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शुक्रवार, 6 अगस्त 2010

सावन के मतवाले मौसम में कजरी

सावन और बारिश का अटूट सम्बन्ध है। इनसे ना जाने कितनी लोक-मान्यताएं और लोक-संस्कृति के रंग जुड़े हुए हैं, उन्हीं में से एक है- कजरी. उत्तर भारत में रहने वालों के लिए कजरी बहुत परिचित है. जिन लोगों का लगाव अभी भी ग्राम्य-अंचल से बना हुआ है, सावन आते ही उनका मन कजरी के बोल गुनगुनाने लगता है. शहरी क्षेत्रों में भले ही संस्कृति के नाम पर फ़िल्मी गानों की धुन बजती हो, पर ग्रामीण अंचलों में अभी भी प्रकृति की अनुपम छटा के बीच लोक रंगत की धारायें समवेत फूट पड़ती हैं। विदेशों में बसे भारतीयों को अभी भी कजरी के बोल सुहाने लगते हैं, तभी तो कजरी अमेरिका, ब्रिटेन इत्यादि देशों में भी अपनी अनुगूँज छोड़ चुकी है। सावन के मतवाले मौसम में कजरी के बोलों की गूँज वैसे भी दूर-दूर तक सुनाई देती है -

रिमझिम बरसेले बदरिया,
गुईयाँ गावेले कजरिया
मोर सवरिया भीजै न
वो ही धानियाँ की कियरिया
मोर सविरया भीजै न।

वस्तुतः ‘लोकगीतों की रानी’ कजरी सिर्फ़ गायन भर नहीं है बल्कि यह सावन मौसम की सुन्दरता और उल्लास का उत्सवधर्मी पर्व है। चरक संहिता में तो यौवन की संरक्षा व सुरक्षा हेतु बसन्त के बाद सावन महीने को ही सर्वश्रेष्ठ बताया गया है। सावन में नयी ब्याही बेटियाँ अपने पीहर वापस आती हैं और बगीचों में भाभी और बचपन की सहेलियों संग कजरी गाते हुए झूला झूलती हैं-

घरवा में से निकले ननद-भउजईया
जुलम दोनों जोड़ी साँवरिया।

छेड़छाड़ भरे इस माहौल में जिन महिलाओं के पति बाहर गये होते हैं, वे भी विरह में तड़पकर गुनगुना उठती हैं ताकि कजरी की गूँज उनके प्रीतम तक पहुँचे और शायद वे लौट आयें-

सावन बीत गयो मेरो रामा
नाहीं आयो सजनवा ना।
........................
भादों मास पिया मोर नहीं आये
रतिया देखी सवनवा ना।

यही नहीं जिसके पति सेना में या बाहर परदेश में नौकरी करते हैं, घर लौटने पर उनके साँवले पड़े चेहरे को देखकर पत्नियाँ कजरी के बोलों में गाती हैं -

गौर-गौर गइले पिया
आयो हुईका करिया
नौकरिया पिया छोड़ दे ना।


एक मान्यता के अनुसार पति विरह में पत्नियाँ देवि ‘कजमल’ के चरणों में रोते हुए गाती हैं, वही गान कजरी के रूप में प्रसिद्ध है-

सावन हे सखी सगरो सुहावन
रिमझिम बरसेला मेघ हे
सबके बलमउवा घर अइलन
हमरो बलम परदेस रे।

(क्रमश: अगली पोस्ट में कजरी के रूप.....)

(पतिदेव कृष्ण कुमार जी का यह आलेख सृजनगाथा पर भी पढ़ा जा सकता है)

26 टिप्‍पणियां:

जयकृष्ण राय तुषार ने कहा…

sawan ko aapne yaad kiya hum aa gaye jhoola jhoolne bahut sunder aalekh

शरद कोकास ने कहा…

यह कजरी सुनने मिल जाती तो कितना अच्छा होता

shikha varshney ने कहा…

हम्म अब लग रहा है कि सावन आ गया :)

Ashish (Ashu) ने कहा…

अहा कमाल की जानकारी दी हॆ आपने पर किसे धन्यवाद करू सर जी का या आपका...चलिये पाखी को ही धन्यवाद क्योकि उसके ब्लाग लिंक देखा तभी तो आपका सानिध्य मिला...मॆने तो कजरी को नोट्स के लिये कापी भी कर लिया धन्यवाद

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

बढ़िया प्रस्तुति...

एक बात समझ नहीं आती कि उत्तर प्रदेश में तीज का त्योहार शादीशुदा स्त्रियां मायके में मनाती हैं ...और फिर झूले पर बैठ सावन का आनंद लेते हुए विरह के गीत भी गाती हैं ....ऐसा क्यों ?

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

लोक विधाओं पर सुन्दर आलेख

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

आपने बहुत ही बढ़िया पोस्ट लिखी है!
--
इसकी चर्चा तो चर्चा मंच पर भी है-
http://charchamanch.blogspot.com/2010/08/238.html

Bhanwar Singh ने कहा…

‘लोकगीतों की रानी’ कजरी सिर्फ़ गायन भर नहीं है बल्कि यह सावन मौसम की सुन्दरता और उल्लास का उत्सवधर्मी पर्व है।....बहुत सुन्दर आलेख, पढ़कर मन मस्त हो गया. कृष्ण कुमार जी और आकांक्षा जी को इस प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई.

Bhanwar Singh ने कहा…

‘लोकगीतों की रानी’ कजरी सिर्फ़ गायन भर नहीं है बल्कि यह सावन मौसम की सुन्दरता और उल्लास का उत्सवधर्मी पर्व है।....बहुत सुन्दर आलेख, पढ़कर मन मस्त हो गया. कृष्ण कुमार जी और आकांक्षा जी को इस प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई.

KK Yadav ने कहा…

वाह, मेरी कजरी तो यहाँ भी रंग जमा रही है..चित्र और भी मनमोहक.

KK Yadav ने कहा…

@ मयंक जी,
इस कजरी की चर्चा के लिए आभार.

KK Yadav ने कहा…

@ शरद कोकस जी,
आपकी भावनाओं को समझ सकता हूँ...

KK Yadav ने कहा…

@ तुषार जी,

आप तो जौनपुर और इलाहाबाद में हैं. देखें, यदि कजरी की कोई कैसेट / सी. डी. इत्यादि उपलब्ध हो सके तो अति-उत्तम. फिर यहाँ अंडमान में भी कजरी के बोल गुजेंगें...

KK Yadav ने कहा…

@ Ashu,

अपनी तरफ तो कजरी खूब सुनने को मिलती है...कजरी के कुछ नए बोल यदि उपलब्ध हो सकें, तो जरुर बताना.

Asha Lata Saxena ने कहा…

कजरी चर्चा बहुत अच्छी लगी |भुट्टे की तस्वीर देखते ही मुंह में पानी आ गया |
आशा

सु-मन (Suman Kapoor) ने कहा…

बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति..................

S R Bharti ने कहा…

कजरी के ये बोल पहले तो गांवों में खूब सुनने को मिलते थे, पर अब ना तो वो लोग रहे और न ही सावन की रिम -झिम बारिश . यहाँ कजरी के बोल पढ़कर भाव-विभोर हो गया.

S R Bharti ने कहा…

के.के. सर जी ने तो कजरी पर पूरा शोध ही कर दिया है. इसे मड़ाई या लोक-रंग जैसी पत्रिकाओं में भी भेजें.

Shahroz ने कहा…

कजरी के बारे में पढ़ा था, पर इसकी खूबसूरती को आज महसूस किया..वाकई शोधपरक लेख. के.के.जी और आकांक्षा जी को हार्दिक बधाई.

Unknown ने कहा…

कजरी तो मन मोह गई...बधाई.

Shyama ने कहा…

जिन लोगों का लगाव अभी भी ग्राम्य-अंचल से बना हुआ है, सावन आते ही उनका मन कजरी के बोल गुनगुनाने लगता है...Hamen bhi unhin men se manen.

Shyama ने कहा…

बहुत दिन बाद कजरी के बारे में सुनकर आत्मिक शांति महसूस हुई..नगरों में तो लोग तरस गए हैं इन बोलों को सुनने के लिए. बहुत बधाई.

raghav ने कहा…

बारिश भले न आई, पर कजरी ने इसका अहसास तो दिला दिया. लाजवाब पोस्ट..badhai.

Amit Kumar Yadav ने कहा…

कजरी के बोल अनमोल ....मन को झंकृत कर गई यह खूबसूरत पोस्ट..बधाई.

S R Bharti ने कहा…

नागपंचमी पर्व पर आप सभी को शुभकामनायें !!

दिगम्बर नासवा ने कहा…

कजरी के बारे में सुना तो है .. आज जानकारी भी मिल गयी .... कोई गीत भी साथ लगा देते तो और भी मज़ा आ जाता ...