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शुक्रवार, 31 दिसंबर 2010

'उल्लास'....नव वर्ष का

नव वर्ष की बेला सामने आकर खड़ी है. न जाने कितने विचार आते हैं, जाते हैं. कुछ खोया तो कुछ पाया. नए साल को लेकर तमाम आकांक्षाएं उभरने लगती हैं, उत्साह मानो दूना हो जाता है, प्रेम की सुनहली किरणें चारों तरफ अपनी रश्मियाँ बिखेरने लगती हैं. ऐसे में याद आती है सुभद्रा कुमारी चौहान की इक कविता- उल्लास. सुभद्रा कुमारी चौहान के नाम से भला कौन अपरिचित होगा. झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई पर लिखी उनकी अमर रचना ''बुंदेले हरबोलों के मुंह हमने सुनी कहानी थी..." ने उन्हें जग प्रसिद्ध बना दिया. पर आज उनकी कविता उल्लास बार-बार मन में गूंज रही है. आप भी इसका आनंद लें और नव वर्ष का उल्लास के साथ स्वागत करें-

शैशव के सुन्दर प्रभात का
मैंने नव विकास देखा।
यौवन की मादक लाली में
जीवन का हुलास देखा।

जग-झंझा-झकोर में
आशा-लतिका का विलास देखा।
आकांक्षा, उत्साह, प्रेम का
क्रम-क्रम से प्रकाश देखा

जीवन में न निराशा मुझको
कभी रुलाने को आई।
जग झूठा है यह विरक्ति भी
नहीं सिखाने को आई।

अरिदल की पहिचान कराने
नहीं घृणा आने पाई।
नहीं अशान्ति हृदय तक अपनी
भीषणता लाने पाई !!

शुक्रवार, 24 दिसंबर 2010

क्रिसमस की धूम...

क्रिसमस त्यौहार बड़ा अलबेला है.यहाँ अंडमान में तो इसे खूब धूम धाम के साथ मनाया जा रहा है. पहली बार इस त्यौहार को इतने नजदीक से महसूस कर रही हूँ. पूरी दुनिया में धूमधाम से मनाया जाने वाला क्रिसमस प्रभु ईसा मसीह या यीशु के जन्म की खुशी में हर साल 25 दिसंबर को मनाया जाने वाला पर्व है। यह ईसाइयों के सबसे महत्वपूर्ण त्यौहारों में से एक है। इस दिन को बड़ा दिन भी कहते हैं. दुनिया भर के अधिकतर देशों में यह 25 दिसम्बर को मनाया जाता है, पर नव वर्ष के आगमन तक क्रिसमस उत्सव का माहौल कायम रखता है. उत्सवी परंपरा के अनुसार क्रिसमस से 12 दिन के उत्सव क्रिसमसटाइड की भी शुरुआत होती है। एन्नो डोमिनी काल प्रणाली के आधार पर यीशु का जन्म, 7 से 2 ई.पू. के बीच हुआ था। विभिन्न देश इसे अपनी परम्परानुसार मानते हैं. जर्मनी तथा कुछ अन्य देशों में क्रिसमस की पूर्व संध्या यानि 24 दिसंबर को ही इससे जुड़े समारोह शुरु हो जाते हैं जबकि ब्रिटेन और अन्य राष्ट्रमंडल देशों में क्रिसमस से अगला दिन यानि 26 दिसंबर बॉक्सिंग डे के रूप में मनाया जाता है। कुछ कैथोलिक देशों में इसे सेंट स्टीफेंस डे या फीस्ट ऑफ़ सेंट स्टीफेंस भी कहते हैं। आर्मीनियाई अपोस्टोलिक चर्च 6 जनवरी को क्रिसमस मनाता है, वहीँ पूर्वी परंपरागत गिरिजा जो जुलियन कैलेंडर को मानता है वो जुलियन वेर्सिओं के अनुसार 25 दिसम्बर को क्रिसमस मनाता है, जो ज्यादा काम में आने वाले ग्रेगोरियन कैलेंडर में 7 जनवरी का दिन होता है क्योंकि इन दोनों कैलेंडरों में 13 दिनों का अन्तर होता है।

क्रिसमस शब्द का जन्म क्राईस्टेस माइसे अथवा ‘क्राइस्टस् मास’ शब्द से हुआ है। ऐसी मान्यता है कि पहला क्रिसमस रोम में 336 ई. में मनाया गया था। क्राइस्ट के जन्म के संबंध में नए टेस्टामेंट के अनुसार व्यापक रूप से स्वीकार्य ईसाई पौराणिक कथा है। इस कथा के अनुसार प्रभु ने मैरी नामक एक कुंवारी लड़की के पास गैब्रियल नामक देवदूत भेजा। गैब्रियल ने मैरी को बताया कि वह प्रभु के पुत्र को जन्म देगी तथा बच्चे का नाम जीसस रखा जाएगा। वह बड़ा होकर राजा बनेगा, तथा उसके राज्य की कोई सीमाएं नहीं होंगी। देवदूत गैब्रियल, जोसफ के पास भी गया और उसे बताया कि मैरी एक बच्चे को जन्म देगी, और उसे सलाह दी कि वह मैरी की देखभाल करे व उसका परित्याग न करे। जिस रात को जीसस का जन्म हुआ, उस समय लागू नियमों के अनुसार अपने नाम पंजीकृत कराने के लिए मैरी और जोसफ बेथलेहेम जाने के लिए रास्ते में थे। उन्होंने एक अस्तबल में शरण ली, जहां मैरी ने आधी रात को जीसस को जन्म दिया तथा उसे एक नांद में लिटा दिया। इस प्रकार प्रभु के पुत्र जीसस का जन्म हुआ।

आजकल क्रिसमस पर्व धर्म की बंदिशों से परे पूरी दुनिया में बड़े उल्लास के साथ मनाया जाता है.क्रिसमस के दौरान एक दूसरे को आत्मीयता के साथ उपहार देना, चर्च में समारोह, और विभिन्न सजावट करना शामिल है। सजावट के दौरान क्रिसमस ट्री, रंग बिरंगी रोशनियाँ, बंडा, जन्म के झाँकी और हॉली आदि शामिल हैं। क्रिसमस ट्री तो अपने वैभव के लिए पूरे विश्व में लोकप्रिय है। लोग अपने घरों को पेड़ों से सजाते हैं तथा हर कोने में मिसलटों को टांगते हैं। चर्च मास के बाद, लोग मित्रवत् रूप से एक दूसरे के घर जाते हैं तथा दावत करते हैं और एक दूसरे को शुभकामनाएं व उपहार देते हैं। वे शांति व भाईचारे का संदेश फैलाते हैं।

सेंट बेनेडिक्ट उर्फ सान्ता क्लाज़, क्रिसमस से जुड़ी एक लोकप्रिय पौराणिक परंतु कल्पित शख्सियत है, जिसे अक्सर क्रिसमस पर बच्चों के लिए तोहफे लाने के साथ जोड़ा जाता है. मूलत: यह लाल व सफेद ड्रेस पहने हुए, एक वृद्ध मोटा पौराणिक चरित्र है, जो रेन्डियर पर सवार होता है, तथा समारोहों में, विशेष कर बच्चों के लिए एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। वह बच्चों को प्यार करता है तथा उनके लिए चाकलेट, उपहार व अन्य वांछित वस्तुएं लाता है, जिन्हें वह संभवत: रात के समय उनके जुराबों में रख देता है।

आप सभी लोगों को क्रिसमस पर्व की हार्दिक शुभकामनायें !!

रविवार, 19 दिसंबर 2010

वार्षिक हिंदी ब्लॉग विश्लेषण की अनुपम 'परिकल्पना'

हिंदी ब्लागिंग में नित नए प्रयोग हो रहे हैं. कोई रचनाधर्मिता के स्तर पर तो कहीं विश्लेषण के स्तर पर. इन सबके बीच लखनऊ के ब्लागर रवीन्द्र प्रभात ने ब्लागोत्सव-2010 और परिकल्पना के माध्यम से नई पहचान बनाई है। आजकल परिकल्पना ब्लॉग के माध्यम से रवीन्द्र जी वार्षिक हिंदी ब्लॉग विश्लेषण-2010 पर ध्यान लगाये हुए हैं. बड़ी खूबसूरती से साल-भर चली गतिविधियों, ब्लॉग जगत की हलचलों, नए-पुराने चेहरों को आत्मसात करते हुए रवीन्द्र जी का यह व्यापक विश्लेषण यथासंभव हर सक्रिय हिंदी ब्लागर को सहेजने की कोशिश करता है. यह विश्लेषण नए ब्लागरों के लिए प्राण-वायु का कार्य करता है, तो पुरानों के लिए पीछे मुड़कर देखने का एक मौका देता है. यह हिंदी ब्लाग-जगत को आत्मविश्लेषण की शक्ति देता है तो शोधपरक रूप में प्रस्तुत सभी पोस्ट महत्वपूर्ण पोस्टों को इतिहास के गर्त में जाने से बचाते भी हैं. मुझे लगता है कि हर हिंदी ब्लागर को परिकल्पना पर प्रस्तुत इस वार्षिक हिंदी ब्लॉग विश्लेषण-2010 पर एक चौकन्नी नजर जरुर डालनी चाहिए और इसे प्रोत्साहित करना चाहिए. फ़िलहाल रवीन्द्र प्रभात जी को लगातार दूसरे वर्ष इस अनुपम ब्लॉग-विश्लेषण के लिए बधाइयाँ और साधुवाद !!

वार्षिक हिंदी ब्लॉग विश्लेषण-2010 (भाग-5) की शुरुआत रवीन्द्र प्रभात जी ने हमारे ब्लॉगों के विश्लेषण से ही की है, तो लगता है कि हम भी कुछ ठीक-ठाक कर रहे हैं. अन्यथा हम तो अपने को इस क्षेत्र में घुसपैठिया ही मानते थे. बकौल रवीन्द्र प्रभात- पिछले भाग में जो साहित्य सृजन की बात चली थी उसे आगे बढाते हुए मैं सबसे पहले जिक्र करना चाहूंगा एक ऐसे परिवार का जो पद-प्रतिष्ठा-प्रशंसा और प्रसिद्धि में काफी आगे होते हुए भी हिंदी ब्लोगिंग में सार्थक हस्तक्षेप रखता है । साहित्य को समर्पित व्यक्तिगत ब्लॉग के क्रम में एक महत्वपूर्ण नाम उभरकर सामने आया है वह शब्द सृजन की ओर , जिसके संचालक है इस परिवार के मुखिया के के यादव । ये जून -२००८ से सक्रिय ब्लोगिंग से जुड़े हैं । इनका एक और ब्लॉग है डाकिया डाक लाया । यह ब्लॉग विषय आधारित है तथा डाक विभाग के अनेकानेक सुखद संस्मरणों से जुडा है।

आकांक्षा यादव इनकी धर्मपत्नी है और ये हिंदी के चार प्रमुख क्रमश: शब्द शिखर, उत्सव के रंग, सप्तरंगी प्रेम और बाल दुनिया ब्लॉग की संचालिका हैं औरइनकी एक नन्ही बिटिया है जिसे पूरा ब्लॉग जगत अक्षिता पाखी (ब्लॉग : पाखी की दुनिया) के नाम से जानता है, इस वर्ष के श्रेष्ठ नन्हा ब्लोगर का अलंकरण पा चुकी है , चुलबुली और प्यारी सी इस ब्लोगर को कोटिश: शुभकामनाएं ! इनसे जुड़े हुए दो नाम और है एक राम शिवमूर्ति यादव और दूसरा नाम अमित कुमार यादव , जिन्होनें वर्ष -२०१० में अपनी सार्थक और सकारात्मक गतिविधियों से हिंदी ब्लॉगजगत का ध्यान खींचने में सफल रहे हैं । ये एक सामूहिक ब्लॉग भी संचालित करते हैं जिसका नाम है युवा जगत । यह ब्लॉग दिसंबर-२००८ में शुरू हुआ और इसके प्रमुख सदस्य हैं अमित कुमार यादव, कृष्ण कुमार यादव, आकांक्षा यादव, रश्मि प्रभा, रजनीश परिहार, राज यादव, शरद कुमार, निर्मेश, रत्नेश कुमार मौर्या, सियाराम भारती, राघवेन्द्र बाजपेयी आदि।

इसी प्रकार वार्षिक हिंदी ब्लॉग विश्लेषण-2010 (भाग-2) के आरंभ में लिखे वाक्य कि- वर्ष-२०१० की शुरुआत में जिस ब्लॉग पर मेरी नज़र सबसे पहले ठिठकी वह है शब्द शिखर , जिस पर हरिवंशराय बच्चन का नव-वर्ष बधाई पत्र !! प्रस्तुत किया गया ।

वार्षिक हिंदी ब्लॉग विश्लेषण-2010 (भाग-1) में भी रवीन्द्र जी ने हमारे ब्लॉगों की चर्चा की है. जून-२००८ से हिंदी ब्लॉगजगत में सक्रिय के. के. यादव का वर्ष-२०१० में प्रकाशित एक आलेख अस्तित्व के लिए जूझते अंडमान के आदिवासी ,वर्ष-२००८ से दस ब्लोगरों क्रमश: अमित कुमार यादव, कृष्ण कुमार यादव, आकांक्षा यादव, रश्मि प्रभा, रजनीश परिहार, राज यादव, शरद कुमार, निर्मेश, रत्नेश कुमार मौर्या, सियाराम भारती, राघवेन्द्र बाजपेयी के द्वारा संचालित सामूहिक ब्लॉग युवा जगत पर इस वर्ष प्रकाशित एक आलेख हिंदी ब्लागिंग से लोगों का मोहभंग ,२४ जून २००९ से सक्रीय और लोकसंघर्ष परिकल्पना सम्मान से सम्मानित वर्ष की श्रेष्ठ नन्ही ब्लोगर अक्षिता पाखी के ब्लॉग पर प्रकाशित आलेख डाटर्स-डे पर पाखी की ड्राइंग... १० नवम्बर-२००८ से सक्रीय राम शिव मूर्ति यादव का इस वर्ष प्रकाशित आलेख मानवता को नई राह दिखाती कैंसर सर्जन डॉ. सुनीता यादव, .............................आदि को पाठकों की सर्वाधिक सराहना प्राप्त हुयी है .यहाँ मुझे याद है, जब पिछले वर्ष 21 दिसंबर, 2009 को प्रस्तुत वर्ष 2009 : हिंदी ब्लाग विश्लेषण श्रृंखला (क्रम-21) में भी रवीन्द्र जी ने डाकिया डाक लाया ब्लॉग के माध्यम से हमें भी हिंदी ब्लॉग जगत के 9 उपरत्नों में दूसरे स्थान पर शामिल किया था। यह हमारे लिए बेहद प्रसन्नता का क्षण था.रवीन्द्र प्रभात जी द्वारा प्रस्तुत ब्लॉगों के विश्लेषण से कम से कम हमें भी ब्लागर होने का अहसास हुआ है और लगता है कि हम भी कुछ ठीक-ठाक सा कर रहे हैं. अन्यथा हम तो अपने को इस क्षेत्र में घुसपैठिया ही मानते थे. खैर इसी बहाने सुदूर अंडमान-निकोबार की चर्चा भी ब्लागिंग में हो रही है, जो काफी उपेक्षित माना जाता है. एक बार पुन: रवीन्द्र प्रभात जी को लगातार दूसरे वर्ष इस अनुपम ब्लॉग-विश्लेषण के लिए बधाइयाँ और साधुवाद और रवीन्द्र प्रभात जी व उन सभी स्नेही ब्लोगर्स-पाठकों का आभार जिनकी बदौलत हम आज यहाँ पर हैं !!

...तो आप भी एक बार रवीन्द्र प्रभात जी की परिकल्पना में शामिल हों, और वार्षिक हिंदी ब्लॉग विश्लेषण-2010 की सैर कर अपने विचार वहां जरुर दें। आखिर कोई तो है जो लखनऊ की नज़ाकत, नफ़ासत,तहज़ीव और तमद्दून की जीवंतता को ब्लागिंग में भी बरकरार रखकर अपने-पराये के भेद से परे सबकी सोच रहा है !!

सोमवार, 13 दिसंबर 2010

भारत में फैलता एन0 जी0 ओ0 का बाजार

आजकल भारत में एन0जी0ओ0 खोलना एक व्यवसाय हो गया है। हर व्यक्ति किसी-न-किसी बहाने एन0जी0ओ0 खोलता है और फंडिंग के लिए बड़े-बड़े दावे करता है। हाल के दिनों में देश भर में एन0जी0ओ0 संस्थाओं की संख्या बेतहाशा बढ़ी है। मार्च 2005 की रिपोर्ट के अनुसार इनकी संख्या 15 लाख थी। ये सब मिलकर 30 हजार करोड़ रुपये हैंडल कर रहे थे। यह राशि विभिन्न कार्यक्रमों के लिए संस्थाओं को सरकारी, गैर सरकारी एवं अंतरराष्ट्रीय स्रोतों से मिलती हैं। इस आधार पर देखा जाय तो भारत को एक सुखी एवं समृद्ध राष्ट्र होना चाहिए। पर यदि ऐसा नहीं है तो जरूर दाल में कुछ काला है। गरीबी-उन्मूलन, शिक्षा-प्रसार, स्वास्थ्य-सेवाओं, धार्मिक कार्यों सहित तमाम कल्याणकारी योजनाओं के नाम पर चल रहे इन एन0जी0ओ0 का नेटवर्क सिर्फ देश ही नहीं विदेशों में भी फैला है, जहाँ से उन्हें धमार्थ-कल्याणार्थ-परोपकरार्थ डाॅलरों में सहायता मिलती है। इन संस्थाओं पर आर्थिक कृपा करने वालों में व्यक्तिगत दानियों का नाम सबसे ऊपर है। ब्रिटेन में एक विदेशी एनजीओ की ओर से किए गए एक आंतरिक अध्ययन के मुताबिकए निजी तौर पर दिया दान सबसे बडा़ आर्थिक सा्रेत रहा है। इन दाताओं के बूते सन 2005 में 2,200 करोड़ से 8,100 करोड़ रुपए संस्थाओं पर न्यौछावर किए जाने का अनुमान लगाया गया । फिलहाल जो अनुमान मिल रहे हैं उसके अनुसार एन0जी0ओ0 और गैर-लाभान्वित संस्थाओं ने सालाना 40 हजार करोड़ से 80 हजार करोड़ रुपए इमदाद के जरिए जुटाए हैं। इनके लिए सबसे बडी़ दानदाता सरकार है जिसने ग्या़रहवीं पंचवर्षीय योजना में सामाजिक क्षेत्र के लिए 18 हजार करोड़ रुपए रखे। इसके बाद विदेशी दानदाताओं का नंबर आता है। सन 2007-08 में इन एन0जी0ओ0 ने 9,700 करोड़ दान से जुटाए। तकरीबन 1600-2000 करोड़ रुपए धार्मिक संस्थाएं खोलने के लिए दान में दिए गए। ऐसी संस्थाओं में तिरुमला तिरुपति देवास्थानम का नाम भी लिया जाता है, जिन्हें दान में प्रचुर धन ही नहीं हीरे-जवाहरात भी मिलते हैं।

यह आश्चर्यजनक पर सच है कि दुनिया भर में सबसे ज्यादा सक्रिय गैर-सरकारी, गैर-लाभन्वित संगठन भारत में हैं। पीपुल्स रिसर्च इन एशिया (पी॰आर॰आइ॰ए॰) ने अपने एक अध्ययन के बाद देश भर में 12 लाख एन॰ जी॰ ओ॰ को सूचीबद्ध किया था, जिनके बीच करीब 18 हजार करोड़ रुपये का मोबलाइजेशन हुआ। इन संस्थाओं में से 26.5 फीसदी धार्मिक गतिविधियों में, 21.3 फीसदी सामुदायिक व सामाजिक सेवा कार्यों में, 20.4 फीसदी शिक्षा के क्षेत्र में, 18 फीसदी खेलकूद एवं कला-संस्कृति में तथा 6.6 फीसदी स्वास्थ्य के क्षेत्र में व शेष अन्य क्षेत्रों में कार्यरत थीं। भारत सरकार के योजना आयोग की रिपोर्ट के अनुसार देश भर में केंद्र एवं राज्य सरकार के विभिन्न मंत्रालयों से संबद्ध 30 हजार एन॰जी॰ ओ॰ सूचीबद्ध हैं। सरकार की ओर से कराए गए एक अन्य अध्ययन में बीते साल तक इन संस्थाओं की संख्या 30,30,000 (तीस लाख तीस हजार) तक पहुँच चुकी थी अर्थात 400 से भी कम भारतीयों के पीछे एक एन0जी0ओ0। यह तादाद देश में प्राथमिक विद्यालयों और प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों से कई गुना ज्यादा है। इस अध्ययन के मुताबिक महाराष्ट्र में सबसे ज्यादा 4.8 लाख, आंध्रप्रदेश (4.6 लाख), उत्तर प्रदेश (4.3 लाख), केरल (3.3 लाख), कर्नाटक (1.9 लाख), तमिलनाडु (1.4 लाख), ओडीशा (1.3 लाख) और राजस्थान में 1 लाख एन0जी0ओ0 पंजीकृत हैं। महत्वपूर्ण बात यह है कि अस्सी फीसदी से ज्यादा पंजीकरण दस राज्यों से हैं। इन संगठनों की असली संख्या और भी ज्यादा हो सकती है क्योंकि यह ब्यौरा तो मात्र उन संस्थाओं का है जो सोसाइटीज रजिस्ट्रेशन एक्ट, 1860 या मुंबई पब्लिक ट्रस्ट एक्ट या दूसरे राज्यों में समकक्ष एक्ट के तहत पंजीकृत की जा चुकी हैं। गौरतलब है कि ये संस्थाएं कई कानूनों के तहत पंजीकृत की जा सकती हैं। इनमें से प्रमुख हैं- सोसाइटीज एक्ट 1860, रिलिजियस इनडाउमेंट एक्ट 1863, इंडियन ट्रस्ट एक्ट 1882, द चैरिटेबल एंड रिलिजियस ट्रस्ट एक्ट 1920, द मुसलमान वक्फ एक्ट 1923, पब्लिक ट्रस्ट एक्ट 1950, इंडियन कंपनीज एक्ट 1956 ;दफा 25द्ध इत्यादि।

पिछले दशकों में जिस तरह से गैर-सरकारी संगठनों यानी एन0जी0ओ0 की तादाद बढी़ हैए उसी अनुपात में दानी बढे़ हैं। स्पष्ट है कि भारत में एन0 जी0 ओ0 खोलने और उसके नाम पर वारे-न्यारे करने का बाजार भी बढ़ रहा है। सरकार से पैसे मिलने लगे तो संस्थाएं भी बनने लगीं। एन॰ जी॰ ओ॰ की संख्या बढ़ाने में सेवानिवृत लोगों का बड़ा हाथ है। इनमें ज्यादातर संस्थाएं कागजी हैं, जो न तो काम करने वाली हैं और न ही टिकाऊ। दुर्भाग्यवश सरकार सिर्फ निबंधन करती है, संस्थाएं क्या कर रही है, इससे मतलब नहीं होता। ऐसे में इन एन॰ जी॰ ओ॰ में प्रतिबद्धता की भी कमी झलकती है। आँकडों पर गौर करें तो सन 1970 तक महज 1.44 लाख पंजीकृत संस्थाएँ थीं वहीँ अगले तीन दशकों में बढ़कर क्रमश: 1.79, 5.52 और 11.22 लाख हो गईं । वर्ष 2000 में सबसे ज्यादा संस्थाएँ पंजीकृत हुईं । हालांकि अपने देश भारत में निजी क्षेत्र की कंपनियाँ बडे़ दानियों के रुप में सामने नहीं आई हैं। वे इस तरह के सामाजिक कामों के लिए अपने मुनाफे का एक फीसदी से भी कम दान में देती हैं। जबकि ब्रिटेन और अमेरिका में निजी क्षेत्र की कंपनियाँ मुनाफे का डेढ़ से दो फीसदी तक भलाई और धर्मार्थ काम के लिए दान देती हैं। ऐसे में भारत में निजी क्षेत्र की कंपनियों को जनकल्याण के लिए अभी जागना है। वहीं यह भी जरूरी हो गया है कि इन तमाम एन0जी0ओ0 इत्यादि की सोशल-आडिटिंग भी कायदे से सुनिश्चित किया जाय ताकि जनकल्याण के नाम पर एन0जी0ओ0 खोलकर अपना कल्याण करने की प्रवृति दूर हो सके।

गुरुवार, 9 दिसंबर 2010

जनसत्ता में 'शब्द-शिखर' की तितलियाँ

'शब्द शिखर' पर 21 अक्तूबर, 2010 को प्रस्तुत पोस्ट 'कहाँ गईं वो तितलियाँ' को प्रतिष्ठित दैनिक अख़बार जनसत्ता के नियमित स्तंभ ‘समांतर’ में 7 दिसंबर जून, 2010 को 'गुम होती तितली' शीर्षक से स्थान दिया गया है. जनसत्ता में पहली बार मेरी किसी पोस्ट की चर्चा हुई है और समग्र रूप में प्रिंट-मीडिया में 23वीं बार मेरी किसी पोस्ट की चर्चा हुई है.. आभार !!

इससे पहले शब्द-शिखर और अन्य ब्लॉग पर प्रकाशित मेरी पोस्ट की चर्चा दैनिक जागरण, अमर उजाला,राष्ट्रीय सहारा,राजस्थान पत्रिका, आज समाज, गजरौला टाईम्स, डेली न्यूज़ एक्टिविस्ट, दस्तक, आई-नेक्स्ट, IANS द्वारा जारी फीचर में की जा चुकी है. आप सभी का इस समर्थन व सहयोग के लिए आभार! यूँ ही अपना सहयोग व स्नेह बनाये रखें !!

(चित्र Hindi Blogs In Media से साभार)

बुधवार, 1 दिसंबर 2010

जीवन पुन: अपने रौब में....

आखिरकार एक लम्बे अन्तराल पश्चात् पुन: सपरिवार पोर्टब्लेयर में. इस अन्तराल के दौरान जहाँ एक बार पुन: मत्रितव सुख का सौभाग्य प्राप्त हुआ, वहीँ हमारी शादी की छठवीं सालगिरह भी पूरी हो गई. 27 अक्तूबर, 2010 की रात्रि 11: 10 पर बनारस के हेरिटेज हास्पिटल में बिटिया का जन्म हुआ और 27 नवम्बर को वह एक माह की हो गई. ठीक उसके अगले दिन 28 नवम्बर को हमारी शादी की की सालगिरह थी और अब हमारी शादी के छ: साल पूरे हो गए। 28 नवम्बर को ही हम लोग आजमगढ़ से बनारस पहुंचे और फिर विमान द्वारा सीधे कोलकाता. यह भी एक सौभाग्य रहा की सालगिरह विमान में ही सेलिब्रेट हो गया. खैर अगले दिन, 29 नवम्बर की सुबह हम पोर्टब्लेयर में थे. इक सुखद और खुशनुमा एहसास. ठण्ड का नामलेवा नहीं, तापमान 32 डिग्री सेल्सियस. पर्यटकों के लिए अंडमान का यह समय किसी जन्नत से कम नहीं होता है. इस समय पोर्टब्लेयर में जितनी हलचल दिखती है, वह वाकई देखने लायक होती है. एक लम्बे अन्तराल पश्चात् जीवन पुन: अपने रौब में लौट कर आ गया है. इस बीच बिटिया के जन्म और शादी की सालगिरह पर आप सभी की शुभकामनाओं, बधाई और स्नेह के लिए हार्दिक आभार. अब ब्लॉग पर निरंतरता बनी रहेगी....!!