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मंगलवार, 26 अप्रैल 2011

मानव ही बन गया है खतरा...


अस्तित्व की लड़ाई का सिद्धांत इस जग में बहुत पुराना है. एक तरफ प्रकृति का प्रकोप, वहीँ दूसरी तरफ सभ्यता का प्रकोप. वनमानुष, जिन्हें मानवों का पूर्वज मन जाता है अब मानव के चलते ही भय महसूस कर रहे हैं. एक तरफ मानव बेटियों को गर्भ में ख़त्म कर रहा हैं, वहीँ मानवी लालच के चलते अब पशु-पक्षी भी तंग हो चुके हैं. कोई अपना घोंसला उजड़े जाने से त्रस्त है तो कोई जंगल में सभ्यता की आड में फैलते दोहन से.

मेघालय के गारो हिल्स में हूलाॅक गिब्बन (वनमानुष) तो मन की इन्हीं करतूतों के चलते अपनी ममता का गला तक घोंट दे रहे  हैं। नए सदस्य के जन्म लेते ही पिता दिल पर पत्थर रख उसे जमीन पर पटक देता है। आखिर, दिनों-ब-दिन सिमटते जंगल और घटते भोजन पर नई पीढ़ी कैसे जिंदा रहेगी ? वनमानुषों ने इसी सवाल का यह निर्मम हल निकाला है। याद कीजिये कंस द्वारा कृष्ण की खोज में की गई हत्याएं, पर यहाँ तो अपने अस्तित्व पर ही खतरा महसूस हो रहा है. साल दर साल अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे वनमानुषों की संख्या पिछले 25 वर्ष में 90 फीसदी कम हो गई है। औलाद से अजीज कुछ नहीं, इंसान हो या जानवर संतान सुख का भाव सबमें एक है। परन्तु सभ्यता के नाम पर  मची विकास की अंधी होड़ से विनाश की कगार पर पहुंच चुके वनमानुष शायद जिंदगी की आस ही छोड़ चुके हैं। ऐसे में इस असुरक्षा के भाव ने ही उन्हें अपनी ही संतान की जान का दुश्मन बना दिया है.

देहरादून स्थित प्राणि विज्ञान सर्वेक्षण विभाग की टीम हूलाॅक गिब्बन पर अब तो बाकायदा शोध कर रही है। शोध के नतीजे बताते हैं कि वनमानुषों के व्यवहार में आए इस परिवर्तन का असर उनकी प्रजनन दर पर भी पड़ा है। मेघालय के जंगलों में किए जा रहे अध्ययन के निष्कर्ष से साफ है कि तेजी से कट रहे जंगलों से वनमानुषों का रहन-सहन भी बुरी तरह प्रभावित हो रहा है।हूलाॅक गिब्बन की प्रजनन की रफ्तार घटने से उनके अस्तित्व पर सवाल खड़े हो गए हैं। यहां तक कि वे अपने बच्चों के कातिल बन बैठे हैं। जन्म लेते ही नर नवजात की पटक कर हत्या कर देता है। वर्ष 1990 में असम में इनकी संख्या लगभग 130 थी, जबकी आज यह घटकर 80 हो गई है। पिछले आंकड़ों पर गौर करें तो मेघालय सहित पूर्वोत्तर भारत के अन्य राज्यों में 25 साल पहले करीब 70 हजार के आसपास वनमानुष थे, जो आज सिर्फ तकरीबन 600 रह गए हैं।

ऐसे में जरुरत है कि सभ्यता की  आड में प्रकृति का अन्धादोहन करने से बचा जाय. आंगन की गौरैया, फूलों पर मंडराती तितलियाँ, पशु-लाशों पर इतराते गिद्ध से लेकर राष्ट्रीय पशु बाघ तक खतरे में हैं. हर रोज इनके कम होने या विलुप्त होने की ख़बरें आ रही हैं, पर हम हाथ पर हाथ धरे रहकर बैठे हैं. प्रकृति और पर्यावरण से मानव का अभिन्न नाता है. यदि प्रकृति का विकास चक्र यूँ ही गड़बड़ होता रहा तो न सिर्फ हम अपनी जैव-विविधता खो देंगें, बल्कि सुनामी, कटरीना के झंझावातों से भी रोज लड़ते रहेंगें. कंक्रीट के घरों में बैठकर चाँद को छूने की ख्वाहिश रखने वाला मानव यह क्यों भूल जाता है कि उसे अपने साथ ही पशु-पक्षियों-पेड़-पौधों के लिए भी सोचना चाहिए. इस जहान में प्रकृति ने उनके लिए भी जगह मयस्सर की है, और यदि ऐसे ही हम उनका हक़ छीनकर उन्हें मौत के मुंह में धकेलते रहेंगें तो मानवता को भी मौत में मुंह में जाने से कोई नहीं रोक सकता !! 

23 टिप्‍पणियां:

Yashwant R. B. Mathur ने कहा…

आलेख में व्यक्त आपके विचारों से पूर्णतः सहमत!

सादर

सु-मन (Suman Kapoor) ने कहा…

bilkul sahi kha...

सु-मन (Suman Kapoor) ने कहा…

bilkul sahi kha...

सु-मन (Suman Kapoor) ने कहा…

bilkul sahi kha...

सु-मन (Suman Kapoor) ने कहा…

bilkul sahi kha...

S R Bharti ने कहा…

अपने बहुत सीधे शब्दों में मानवता पर मंडरा रहे संकट को इंगित किया है. आपकी लेखनी को साधुवाद.

S R Bharti ने कहा…

अपने बहुत सीधे शब्दों में मानवता पर मंडरा रहे संकट को इंगित किया है. आपकी लेखनी को साधुवाद.

Bhanwar Singh ने कहा…

नए सदस्य के जन्म लेते ही पिता दिल पर पत्थर रख उसे जमीन पर पटक देता है। आखिर, दिनों-ब-दिन सिमटते जंगल और घटते भोजन पर नई पीढ़ी कैसे जिंदा रहेगी ?
++++++++++++++++++++
यह तो बेहद दुर्भाग्यशाली स्थिति है. अब हम कब चेतेंगें.

Maheshwari kaneri ने कहा…

आप के विचारों से पूर्णत: सहमत हूँ
आप के सारे ब्लांग पढ़ती हूँ, काफी उत्साह वर्धक हैं। मेरे ब्लांग में भी आप आये तो मुझे खुशी होगी धन्यवाद…

udaya veer singh ने कहा…

jagrat aalekh ,udvelit karta hua ,ham sabko paryavaran ki raksha men aage aana hoga . abhar ji

आशुतोष की कलम ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
आशुतोष की कलम ने कहा…

अगर आप पूर्वांचल से जुड़े है तो आयें, पूर्वांचल ब्लोगर्स असोसिएसन: एहसासपर ..आप का सहयोग संबल होगा पूर्वांचल के विकास में..

Akshitaa (Pakhi) ने कहा…

यह तो बहुत गंभीर बात है. सभी को सोचना चाहिए.

Dr. Brajesh Swaroop ने कहा…

कंक्रीट के घरों में बैठकर चाँद को छूने की ख्वाहिश रखने वाला मानव यह क्यों भूल जाता है कि उसे अपने साथ ही पशु-पक्षियों-पेड़-पौधों के लिए भी सोचना चाहिए...Sahi kaha apne.

Dr. Brajesh Swaroop ने कहा…

पाखी बिटिया के ब्लॉग पर देखा. बिटिया तन्वी के आज छ माह पूरे होने पर बधाई.

Shahroz ने कहा…

मानव अंतत: खुद ही प्रलय का कारण बनेगा. आपकी हर पोस्ट लाजवाब होती है..बधाई.

Shahroz ने कहा…

@ पाखी के लिए,
अरे तन्वी इत्ती बड़ी हो गई, पता भी नहीं चला. अब तो पाखी की बल्ले-बल्ले हो गई होगी. खूब मस्ती करो आप दोनों बहनों. प्यार व मुबारकवाद.

KK Yadav ने कहा…

वाकई निर्मम और दर्दनाक. विचारणीय पोस्ट.

उपेन्द्र नाथ ने कहा…

विचारणीय पोस्ट...

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

सदा से मानव ही रहा है खतरा।

Shyama ने कहा…

सटीक शब्दों में सुन्दर विश्लेषण. मानव ही आज सबसे बड़ा खतरा है. अभी जापान में हुआ हादसा इसका उदाहरण भी है.

Shyama ने कहा…

नन्हीं अक्षिता को बेस्ट बेबी ब्लागर अवार्ड प्राप्त होने पर बधाई.इसे कहते हैं पूत के पांव पालने में.
के.के. जी और आकांक्षा जी ने बिटिया पाखी को जो संस्कार और परिवेश दिया है, वाकई अनुकरणीय है. उन्हें श्रद्धावत नमन. .

Ram Shiv Murti Yadav ने कहा…

vakai marmik bhi, dhardar bhi...