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सोमवार, 1 अगस्त 2011

स्लट-वाक और बे-शर्म लोग

कनाडा की तर्ज पर भारत में भी स्लट-वाक निकला. नाम दिया गया बेशर्मी मोर्चा. कनाडा में एक कांस्टेबल ने टिपण्णी की कि महिलाओं के कपड़े उनके प्रति हो रहे अपराध के कारण हैं और तूफान मच गया. फिर तो इसके प्रति दुनिया भर में प्रतिरोध उठा. फिर तो इसके प्रति दुनिया भर में प्रतिरोध उठा की आखिर महिलाओं के कपड़ों में बे-शर्मी देख रहे लोग अपनी आँखों की बेशर्मी से क्यों मुँह चुरा रहे हैं ? आखिर बार-बार ये बे-शर्म निगाहें महिलाओं को सेक्स-आब्जेक्ट के रूप में ही क्यों देखना चाहती हैं ? खैर दिल्ली में निकले बेशर्मी-मोर्चा ने इस ओर लोगों का ध्यान खींचा है, और इसकी सफलता-असफलता और प्रासंगिकता को लेकर सवाल-जवाब खड़े हो सकते हैं.

पर जहाँ तक भारत का सवाल है यहाँ महिलाओं के पहनावों और उसको लेकर कि जा रही टिप्पणियां नई नहीं हैं. लगभग हर लड़की को किसी-न-किसी रूप में इससे एक बार रु-ब-रु हुआ होना होगा. कभी परिवारजनों की टोका-टोकी तो कभी स्कूल में बंदिशें. अभी कुछ महीनों पूर्व जिलाधिकारी, लखनऊ ने राजधानी के छात्र-छात्राओं को स्कूल/कालेज यूनिफार्म में सार्वजनिक स्थानों यथा-सिनेमा घर, मॉल, पार्क, रेस्टोरेन्ट, होटलों में स्कूल/कालेज टाइम में स्कूली ड्रेस में जाने से प्रतिबन्धित कर दिया और यह भी कहा कि स्कूली ड्रेस में इन स्थानों पर पाये जाने पर छात्र-छात्राओं के खिलाफ कड़ी कार्यवाही की जायेगी। उनका कहना था कि छात्र छात्राएं स्कूल यूनिफार्म में स्कूल-कॉलेज छोड़कर घूमते पाए जाते हैं, जिससे अभद्रता छेड़खानी, अपराधी और आत्महत्या की घटनाएं बढ़ रही हैं। यानी फिर से वही सवाल- ईव-टीजिंग और ड्रेस कोड.

कभी जींस पर प्रतिबन्ध तो कभी मॉल व थियेटर में स्कूली ड्रेस में घूमने पर प्रतिबन्ध. दिलोदिमाग में ख्याल उठने लगता है कि क्या यह सब हमारी संस्कृति के विपरीत है। क्या हमारी शिक्षा व्यवस्था इतनी कमजोर है कि वह ऐसी चीजों से प्रभावित होने लगती है? फिर तालिबानी हुक्म और इनमें अंतर क्या ? पहले लोग कहेंगें कि स्कूली यूनिफ़ॉर्म में न जाओ, फिर कहेंगे कि जींस में न जाओ... क्या इन सब फतवों से लड़कियां ईव-टीजिंग की पीड़ा से निजात पा लेंगीं। एक बार तो कानपुर के कई नामी-गिरामी कालेजों ने सत्र प्रारम्भ होने से पहले ही छात्राओं को उनके ड्रेस कोड के बारे में बकायदा प्रास्पेक्टस में ही फरमान जारी कर दिया कि वे जींस और टाप पहन कर कालेज न आयें। इसके पीछे निहितार्थ यह है कि अक्सर लड़कियाँ तंग कपड़ों में कालेज आती हैं और नतीजन ईव-टीजिंग को बढ़ावा मिलता है। स्पष्ट है कि कालेजों में मारल पुलिसिंग की भूमिका निभाते हुए प्रबंधन ईव-टीजिंग का सारा दोष लड़कियों पर मढ़ देता है। और यही कम पुलिस और प्रशासन के लोग भी करते हैं. अतः यह लड़कियों की जिम्मेदारी है कि वे अपने को दरिंदों की निगाहों से बचाएं।

क्या अपने देश में राजधानियों और महानगरों की कानून-व्यवस्था इतनी बिगड़ चुकी है कि लडकियाँ घरों में कैद हो जाएँ. लड़कियों के दिलोदिमाग में उनके पहनावे को लेकर इतनी दहशत भर दी जा रही है कि वे पलटकर पूछती हैं-’’ड्रेस कोड उनके लिए ही क्यों ?'' अभी ज्यादा दिन नहीं बीते होंगे जब मध्यप्रदेश के विदिशा जिले में एक स्कूल शिक्षक ने ड्रेस की नाप लेने के बहाने बच्चियों के कपड़े उतरवा लिए थे. फिर भी सारा दोष लड़कियों पर ही क्यों ? यही नहीं तमाम काॅलेजों ने तो टाइट फिटिंग वाले सलवार सूट एवं अध्यापिकाओं को स्लीवलेस ब्लाउज पहनने पर प्रतिबंध लगा दिया है। शायद यहीं कहीं लड़कियों-महिलाओं को अहसास कराया जाता है कि वे अभी भी पितृसत्तात्मक समाज में रह रही हैं। देश में सत्ता शीर्ष पर भले ही एक महिला विराजमान हो, संसद की स्पीकर एक महिला हो, सरकार के नियंत्रण की चाबी एक महिला के हाथ में हो, लोकसभा में विपक्ष की नेता महिला हो, यहाँ तक कि तीन राज्यों में महिला मुख्यमंत्री है, पर इन सबसे बेपरवाह पितृसत्तात्मक समाज अपनी मानसिकता से नहीं उबर पाता।

सवाल अभी भी अपनी जगह है। क्या महिलाओं या लड़कियों का पहनावा ईव-टीजिंग का कारण हैं ? यदि ऐसा है तो माना जाना चाहिए कि पारंपरिक परिधानों से सुसज्जित महिलाएं ज्यादा सुरक्षित हैं। पर दुर्भाग्यवश ऐसा नहीं है। ग्रामीण अंचलों में छेड़खानी व बलात्कार की घटनाएं तो किसी पहनावे के कारण नहीं होतीं बल्कि अक्सर इनके पीछे पुरुषवादी एवं जातिवादी मानसिकता छुपी होती है। बहुचर्चित भंवरी देवी बलात्कार भला किसे नहीं याद होगा? रोज बाबाओं के किस्से सामने आ रहे हैं कि किस तरह वह लोगों को अपने जाल में फंसकर उनका शोषण कर रहे हैं. घरेलू महिला अधिनियम के लागू होने के बाद भी घरेलू हिंसा में कमी नहीं आई है. बात-बात पर महिलाओं के प्रति अपशब्द, पुरुषों द्वारा सामान्य संवाद में भी उनके अंगों की लानत-मलानत क्या सिर्फ कपड़ों से उपजती है ?

हाल ही में दिल्ली की एक संस्था ’साक्षी’ ने जब ऐसे प्रकरणों की तह में जाने के लिए बलात्कार के दर्ज मुकदमों के पिछले 40 वर्षों का रिकार्ड खंगाला तो पाया कि बलात्कार से शिकार हुई 70 प्रतिशत महिलाएं पारंपरिक पोशाक पहनीं थीं। राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो के आंकड़ों के मुताबिक भारत में प्रति 51वें मिनट में एक महिला यौन शोषण का शिकार, हर 54वें मिनट पर एक बलात्कार और हर 102वें मिनट पर एक दहेज हत्या होती है। देश में बलात्कार के मामले 2005 में 18,349 के मुकाबले बढ़कर 2009 में 22,000 हो गए। महिलाओं के उत्पीड़न के मामले भी इस अवधि में 34,000 से बढ़कर 39,000 हो गए जबकि दहेज हत्याओं के मामले 2005 में 6,000 के मुकाबले 2009 में 9,000 हो गए। यही नहीं विश्व में सर्वाधिक बाल वेश्यावृत्ति भी भारत में है, जहाँ 4 लाख में अधिकतर लड़कियाँ हैं। क्या इन सब अपराधों का कारण महिलाएं या उनका पहनावा हैं ??

स्पष्ट है कि मारल-पुलिसिंग के नाम पर नैतिकता का समस्त ठीकरा लड़कियों-महिलाओं के सिर पर थोप दिया जाता है। समाज उनकी मानसिकता को विचारों से नहीं कपड़ों से तौलता है। कई बार तो सुनने को भी मिलता है कि लड़कियां अपने पहनावे से ईव-टीजिंग को आमंत्रण देती हैं। मानों लड़कियां सेक्स आब्जेक्ट हों। क्या समाज के पहरुये अपनी अंतरात्मा से पूछकर बतायेंगे कि उनकी अपनी बहन-बेटियाँ जींस-टाप य स्कूली स्कर्ट में होती हैं तो उनका नजरिया क्या होता है और जींस-टाप य स्कूली स्कर्ट में चल रही अन्य लड़की को देखकर क्या सोचते हैं। यह नजरिया ही समाज की प्रगतिशीलता को निर्धारित करता है। जरूरत है कि समाज अपना नजरिया बदले न कि तालिबानी फरमानों द्वारा लड़कियों की चेतना को नियंत्रित करने का प्रयास करें। तभी एक स्वस्थ मानसिकता वाले स्वस्थ समाज का निर्माण संभव है।

किसी भी सभ्य समाज में लड़कियों/महिलाओं के प्रति अपशब्द, बात-बात पर उनकी लानत-मलानत, उनको सेक्स आब्जेक्ट मानने की प्रवृत्ति, आपसी संवाद में भी महिलाओं को घसीटना और उनके साथ दुष्कर्म जैसे घटनाएँ न सिर्फ आपत्तिजनक हैं बल्कि अपराध है. जरुरत सच्चाई को स्वीकार कर उसका हल निकालने की है. मात्र शोशेबाजी से कोई हल नहीं निकलने वाला और न ही महिलाओं के कपड़ों को उनके प्रति बढ़ रहे अपराध का कारण माना जा सकता है. समाज और प्रशासन अपनी कमजोरियों को छुपाने के लिए कब तक महिलाओं पर प्रश्नचिन्ह लगता रहेगा ??

26 टिप्‍पणियां:

mukti ने कहा…

अच्चा आलेख! मैं आपकी बात से सहमत हूँ. महिलाओं से छेडछाड के मामलों में उनके पहनावे को ही दोष देने की प्रवृत्ति समाज की पितृसत्तात्मक सोच का परिणाम है. समाज को अपनी मानसिकता बदलनी ही होगी और इसके लिए महिलाओं को आगे आना पड़ेगा.

Madhavi Sharma Guleri ने कहा…

विचारपरक लेख !!

Unknown ने कहा…

पहले तो आपका शीर्षक देखकर ही डर गया...पर स्लाट वाक को लेकर बेबाक पोस्ट...बधाई.

Unknown ने कहा…

पहले तो आपका शीर्षक देखकर ही डर गया...पर स्लाट वाक को लेकर बेबाक पोस्ट...बधाई.

Shahroz ने कहा…

जरूरत है कि समाज अपना नजरिया बदले न कि तालिबानी फरमानों द्वारा लड़कियों की चेतना को नियंत्रित करने का प्रयास करें। तभी एक स्वस्थ मानसिकता वाले स्वस्थ समाज का निर्माण संभव है।
..100% agree.

Shahroz ने कहा…

चैनल्स पर बेशर्मी-मोर्चा की ख़बरें देखीं, पर आपने इसे तो काफी प्रभावी रूप में सामने रखा है..आभार.

जयकृष्ण राय तुषार ने कहा…

सार्थक बहस सुंदर और दमदार आलेख आकांक्षा जी बहुत बहुत बधाई और शुभकामनायें |

जयकृष्ण राय तुषार ने कहा…

सार्थक बहस सुंदर और दमदार आलेख आकांक्षा जी बहुत बहुत बधाई और शुभकामनायें |

Urmi ने कहा…

सही मुद्दे को लेकर बहुत सुन्दर, सार्थक और ज़बरदस्त आलेख !

Amit Kumar Yadav ने कहा…

आपने बहुत खुले नजरिये से बातों को सामने रखा है. यह पोस्ट तो वाकई ऑंखें खोलने के लिए काफी है.

रचना ने कहा…

http://indianwomanhasarrived.blogspot.com/2011/06/slut-slut.html

mae to is par pehlae hi likh chuki thee
aap kaa alekh logo ko samjh aajaye to achchha haen

www.dakbabu.blogspot.com ने कहा…

स्लत वाक को लेकर गंभीर टिप्पणी. नजरिया बदलने की जरुरत है.

डॉ टी एस दराल ने कहा…

यह सही है -- यौन उत्पीडन या महिलाओं से छेड़ छाड़ का पहनावे से कोई सम्बन्ध नहीं है .
यह मनुष्य की मानसिकता पर निर्भर करता है .
हालाँकि समय और स्थान अनुसार उपयुक्त पहनावा सभी के लिए वांछनीय होना चाहिए .

Ram Shiv Murti Yadav ने कहा…

यह पोस्ट पढ़कर तो वाकई सोचने पर मजबूर...

Ram Shiv Murti Yadav ने कहा…

यह पोस्ट पढ़कर तो वाकई सोचने पर मजबूर...

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

गुण प्रधान देश में न जाने कपड़ों को इतना महत्व क्यों दिया जा रहा है।

डॉ. मनोज मिश्र ने कहा…

विचारणीय पोस्ट.

DR. ANWER JAMAL ने कहा…

कश्मीर में नौजवानों ने अपने नेताओं के कहने पर सुरक्षा बलों पर पत्थर बरसाये और बदले में गोली खा कर मर गए , कारण ?
कारण यह था कि उनके नेता दुनिया की तवज्जो कश्मीर समस्या की तरफ खींचना चाहते थे । बाद में नेता जी ने कहा कि हमारा फैसला और हमारा तरीका ग़लत था ।

वैरी गुड , सैकड़ों नौजवान और जवान मर गए और आपको अब पता चला है कि हमारा तरीक़ा ग़लत था ?

कश्मीरी नेताओं की इन्हीं ग़लतियों ने कश्मीरियों की समस्याओं में महज़ इज़ाफ़ा ही किया है ।

ऐसे ही दुनिया की तवज्जो खींचने के लिए किया जाने वाला स्लट वॉक भी महिला नेताओं का एक ग़लत फ़ैसला है जो कि औरतों के मसाएल को सुलझाने की कोई ताक़त नहीं रखता । जहाँ जहाँ यह मार्च किया गया है , वहाँ छेड़छाड़ , रेप और महिलाओं के प्रति अपराधों में कोई कमी आने के बजाय और बढ़ोतरी हो गई है ।
हल कुछ और है , आपको हल तक पहुँचना होगा ।

Yashwant R. B. Mathur ने कहा…

कल 03/08/2011 को आपकी एक पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!

virendra sharma ने कहा…

यह एक कोम्प्लेक्स समस्या है जिसके कई पहलु हैं :
(१)समाज का बाहरी आवरण ,कार्य स्थलों का परिवेश प्रोद्योगिकी से सज्जित और अधुनातन है .चारों तरफ ग्लेमर है चैनलों के शोज़ में ,पहरावे में ,सौन्दर्य तो माहौल को भी सुन्दरता देता है ,पैरहन उसे चार चाँद लगाता है .लेकिन दूसरी तरफ समाज आज भी अन्दर से जड़ और मृत प्राय है ,यौन पीड़ित भी है कुछ अंशों में कुछ आर्थिक बनावट ऐसी बन रही है घर परिवार से दूर साल साल जीवन बीत रहा है .युवक युवतियों का .एक छोर पर लिविंग टुगेदर है और दूसरे पर यौन -आक्रमण निरीह ,बे -कसूर लोगों पर कभी कपड़ों की आड़ में कभी किसी और आड़ में .
(२)कपडे पहले कैसे पहने जाते थे इसकी झलक मंदिरों की दीवारों पर उत्कीर्ण पारदर्शी वस्त्र प्रस्तुत करतें हैं .सवाल आदमी के मन का है .और बलात्कार एक मानसी सृष्टि है ,पहले मन में घटित होता है फिर हमला शरीर परबाद में होता है ,मेंटल कंस -त्रक्त है ,यौन उत्पीडन .और बलात्कार ।

कृपया यहाँ भी पधारें -http://veerubhai1947.blogspot.com/
http://kabirakhadabazarmein।blogspot.com/
http://sb.samwaad.com/

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

विचारोत्तेजक लेख ... अच्छी प्रस्तुति

vidhya ने कहा…

विचारणीय पोस्ट.

सुरेन्द्र सिंह " झंझट " ने कहा…

विचारणीय.चिंतनपरक लेख

Dr Varsha Singh ने कहा…

स्लाट वाक पर बड़ी बेबाकी से लिखा है आपने...
सार्थक आलेख !

वीना श्रीवास्तव ने कहा…

सार्थक आलेख...

वीना श्रीवास्तव ने कहा…

सार्थक आलेख...