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गुरुवार, 1 नवंबर 2012

'तूफान' और 'महिलाएं'


आजकल 'सैंडी' और 'नीलम' की बड़ी चर्चा है. नाम की खूबसूरती पर मत जाइये,  ये वास्तव में तूफान हैं. हाल के अमेरिकी इतिहास के सबसे खतरनाक तूफान (हरिकेन) माने जाने वाले 'सैंडी' ने तबाही मचा रखी है तो भारत में 'नीलम' ने तबाही मचा रखी है. इससे पहले 'कटरीना' और 'इरीन' अमेरिका को भयाक्रांत चुके हैं। वहीं चक्रवाती तूफान 'नीलम' से पहले भारत में 'लैला' और 'आइला' तूफान कहर बरपा चुके हैं।.यहाँ पर एक बात गौर करने लायक है कि इन सभी तूफानों के नाम महिलाओं के नाम पर ही रखे गए हैं. तो क्या वैश्विक समाज नारी-शक्ति से इतना भयाक्रांत है कि तबाही मचाने वाले तूफानों के नाम खूबसूरत महिलाओं के नाम पर रखकर अपनी दमित इच्छा पूर्ति कर रहा है ? आस्ट्रेलियाई मौसम वैज्ञानिक क्लीमेंट वेग्री (1852 -1922 ) ने ट्रापिकल तूफानों को महिलाओं के नाम देने का चलन आरम्भ किया. इसी क्रम में दूसरे विश्व युद्ध के दौरान अमेरिकी नौसेना के जवानों और मौसम विज्ञानियों ने तूफानों को अपनी प्रेमिकाओं और पत्नियों के नाम से पुकारा। 1951 में अन्तराष्ट्रीय फोनेटिक वर्णमाला के अस्तित्व में आने के बाद कुछ समय के लिए इसे तूफानों के नामकरण का आधार बनाया गया, पर 1953 में अमेरिका ने इस नामकरण को अस्वीकार करते हुए फिर से महिलाओं के नाम पर ही तूफानों के नामकरण की परंपरा को आगे बढाया.
70 के दशक में जब पूरे विश्व में महिलाएं नारी-सशक्तिकरण की ओर अग्रसर रही थीं और सत्ता में अपनी भागीदारी सुनिश्चित कर रही थीं, तब कहीं जाकर लोगों का ध्यान इस ओर गया कि मात्र महिलाओं के नाम पर खतरनाक तूफानों का नामकरण गलत है और इससे समाज में गलत सन्देश जाता है. 1978 में यह सुनिश्चित हुआ कि तूफानों के नामकरण हेतु पुरुष और महिला दोनों तरह के नामों का इस्तेमाल किया जायेगा और तदनुसार इस्टर्न नार्थ पैसिफिक स्टॉर्म लिस्ट में दोनों के नाम शामिल किये गए. 1979 में अटलांटिक और मैक्सिको की खाड़ी में उठने वाले तूफानों के नाम भी पुरुष और महिला दोनों के नाम पर रखे गए.भारतीय उपमहाद्वीप में यह चलन वर्ष 2004 से आरंभ हुआ।
1953 से अमेरिका का नेशनल हरिकेन सेंटर, ट्रापिकल तूफानों के नाम की घोषणा करता था पर अब तूफान का नामकरण विश्व मौसम संगठन (डब्ल्यूएमओ) और यूनाइटेड नेशंस इकोनामिक एंड सोशल कमीशन फार एशिया एंड पेसिफिक (ईएससीएपी) द्वारा प्रभाव में लाई गई प्रक्रिया के तहत होता है। वस्तुत : नाम रखे जाने से मौसम विशेषज्ञों की एक ही समय में किसी बेसिन पर एक से अधिक तूफानों के सक्रिय होने पर भ्रम की स्थिति भी दूर हो गई। हर साल विनाशकारी तूफानों के नाम बदल दिए जाते है और पुराने नामों की जगह नए रखे जाते हैं। इससे किसी गड़बड़ी या भ्रम की सम्भावना नहीं रह जाती. विश्व मौसम संगठन द्वारा हर साल छ: वर्षों के लिए नामों की छ: सूची बनाई जाती है. प्रत्येक सूची में २१ नाम होते हैं. ये सूचियाँ रोटेशन और पुनर्चक्रण सिद्धांत पर कार्य करती हैं. अर्थात हर सातवें वर्ष में विशिष्ट सूची दोबारा प्रयोग करने के लिए उपलब्ध होती है, पर इसमें यह ध्यान रखा जाता है की ऐसे तूफानों के नाम फिर से न रखें जाएँ जिनसे लोगों की संवेदना आहत होती हो, क्योंकि कुछेक तूफान काफी तबाही का मंजर ला चुके होते हैं और दुबारा उनका नाम इस्तेमाल करना लोगों की भावनाओं को भड़का सकता है. यही कारण है कि विश्व मौसम संगठन और यूनाइटेड नेशंस इकोनामिक एंड सोशल कमीशन फार एशिया एंड पेसिफिक साल में एक बार बैठक कर चक्रवाती तूफान की आशंका और उसका सामना करने के लिए कार्य योजना पर विचार-विमर्श करते हैं। तूफानों का नाम इनके शुरू होने की जगह के नजदीकी बेसिन की मॉनीटरिंग बॉडी की सीजनल लिस्ट के मुताबिक तय होता है। विश्व मौसम संगठन विभिन्न देशों के मौसम विभागों को तूफानों का नाम रखने की जिम्मेदारी सौंपता है, ताकि तूफानों की आसानी से पहचान की जा सके. इसी क्रम में मौसम वैज्ञानिकों ने आसानी से पहचान करने और तूफान के तंत्र का विश्लेषण करने के लिए उनके नाम रखने की परंपरा शुरु की । अब तूफानों के नाम विश्व मौसम संगठन द्वारा तैयार प्रक्रिया के अनुसार रखे जाते हैं । बंगाल की खाडी़ और अरब सागर के उपर बनने वाले तूफानों के नाम वर्ष 2004 से रखे जा रहे हैं. भारतीय मौसम विभाग (आईएमडी) क्षेत्रीय विशेषीकृत मौसम केद्र होने की वजह से भारत के अलावा सात अन्य देशों बंगलादेश, मालदीव, म्यांमार, पाकिस्तान, थाईलैंड एवं श्रीलंका को मौसम संबंधी परामर्श जारी करता है। आईएमडी ने इन देशों से भी तूफानों के लिए नाम सुझाने को कहा। इन देशों ने अंग्रेजी वर्णमाला के क्रम के अनुसार नामों की सूची दी है । पूर्वानुमान और चेतावनी जारी करने की खातिर विशिष्ट पहचान देने के उद्धेश्य से अब तक कुल 64 नाम सुझाए गए हैं, जिनमें से अब तक 24 का उपयोग किया जा चुका है । मसलन 'लैला' और 'नीलम' नाम नाम पाकिस्तान द्वारा सुझाया गया था ।
 
पर इस सच्चाई से तो नहीं नक्कारा जा सकता कि अब भी अधिकतर बड़े तूफानों के नाम महिलाओं के नाम पर ही पाए जाते हैं. 'सैंडी' नाम को भले ही मौसम विज्ञानी पुरुषवाचक कह रहे हों, पर यह नाम भी महिलाओं के ही करीब है. कई बार तो लगता है कि पुरुषवाचक आधार पर तूफानों के ऐसे नाम रखे जाते हैं, जिनसे महिलावाचक होने का भ्रम हो. नारी के लिए अक्सर कहा जाता है कि वह जब शांत होती है तो 'विनम्र व दयालु' होती है और जब रणचंडी का रूप धारण करती है तो 'तूफान' आते हैं, पर हमारे मौसम विज्ञानी अभी भी प्राय: हर खतरनाक तूफान का नामकरण महिलाओं के नाम पर ही करना चाहते हैं तो यह सोचनीय विषय है !!
-आकांक्षा यादव

12 टिप्‍पणियां:

संगीता पुरी ने कहा…

यदि जानबूझकर ऐसा कर रहे हों तो सचमुच चिंतनीय है

समयचक्र ने कहा…

" हर खतरनाक तूफान का नामकरण महिलाओं के नाम पर ही करना चाहते हैं तो यह सोचनीय विषय है ...." विचारणीय पोस्ट अभिव्यक्ति .....

Vinay ने कहा…

Beautiful

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प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

पता नहीं, तूफान तो कोई भी ला सकता है..

vandana gupta ने कहा…

स्थिति चिंतनीय है

VIJAY KUMAR VERMA ने कहा…

विचारणीय पोस्ट

Anita ने कहा…

बहुत उपयोगी जानकारी देती हुई रोचक पोस्ट !

सु-मन (Suman Kapoor) ने कहा…

अगर ऐसा है तो ..विचारणीय है ..

कविता रावत ने कहा…

विचारणीय पोस्ट ..
अवध सम्मान' के लिए हार्दिक बधाई..

Unknown ने कहा…

सटीक विश्लेषण..कई बार हम भी ऐसा ही सोचते थे .

Shahroz ने कहा…

Yah sab baten to hamen pata hi nahin thin..rochak jankari ke liye abhar.

Shyama ने कहा…

आकांक्षा जी, बेहद धारदार लेखनी है आपकी । आपने तो सोचने पर मजबूर कर दिया सभी को।