आपका समर्थन, हमारी शक्ति

सोमवार, 30 नवंबर 2015

ईश्वर के दरवाजे पर अभी भी महिलाओं से भेदभाव क्यों

21वीं सदी में जब हम लिंग-समता, नारी-सशक्तिकरण, मानवीय सौहार्द और सहिष्णुता की बात करते हैं और दूसरी तरफ कुछेक मन्दिरों में अभी भी महिलाओं के प्रवेश और पूजा-पाठ करने पर तमाम बंदिशें देखते हैं तो सवाल उठना लाजिमी है कि ईश्वर के दरवाजे पर अभी भी भेदभाव और छुआछूत क्यों ? देश के सबसे बड़े शनि मंदिर शिंगणापुर धाम में एक महिला द्वारा शनिदेव को तेल चढाने के बाद शुद्धिकरण किया गया. आखिर यह दोहरापन क्यों ? ऐसा नहीं है कि यह अकेला मंदिर है जो महिलाओं  में प्रवेश और पूजा-पाठ करने पर तमाम बंदिशें लगाता है, बल्कि देश में तमाम ऐसे मंदिर हैं, जहाँ इस प्रकार की रोक है.

वस्तुत: महाराष्ट्र के शनि शिं‍गणापुर मंदिर में एक महिला के शनिदेव को तेल चढ़ाने से विवाद शुरू हो गया है. खबरों के मुताबिक, 400 वर्षों से इस मंदिर के भीतर महिला के पूजा की परंपरा नहीं रही है, ऐसे में महिला द्वारा मंदिर के चबूतरे पर चढ़कर शनि महाराज को तेल चढ़ाने पर पुजारियों ने मूर्ति को अपवित्र घोषि‍त कर दिया. मंदिर प्रशासन ने 6 सेवादारों को निलंबित कर दिया है और मूर्ति का शुद्धि‍करण किया गया है.जानकारी के मुताबिक, महिला द्वारा पूजा करने की तस्वीरें सीसीटीवी में कैद हैं, जिसे देखने के बाद मंदिर में जमकर हंगामा हुआ. बढ़ते विवाद को देखते हुए जहां पूजा करने वाली महिला ने यह कहते हुए प्रशासन से माफी मांगी है कि उसे परंपरा की जानकारी नहीं थी, वहीं मूर्ति को अपवित्र मानते हुए मंदिर प्रशासन ने शनिदेव का दूध से प्रतिमा का अभिषेक किया है. यही नहीं, पवित्रता के लिए पूरे मंदिर को भी धुला गया है.ट्रस्ट का दावा है कि मुंबई हाई कोर्ट ने भी पहले इस परंपरा को सही ठहराया था.गौरतलब है कि 15 साल पहले भी शनि शिंगणापुर मंदिर में महिलाओं के प्रवेश पर पाबंदी का विरोध हुआ था, तब जानेमाने रंगकर्मी डॉ. श्रीराम लागू भी महिलाओं के पक्ष में मुहिम से जुड़े थे. मंदिर प्रशासन के ताजा कदम की तमाम बुद्धिजीवियों ने निंदा की है. अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति की सदस्य रंजना गवांदे ने कहा कि महिला की हिम्मत का हम स्वागत करते हैं. उन्होंने कहा, 'जब देश में महिला-पुरुषों को बराबरी हासिल है तो कई मंदिरों में महिलाओं के प्रवेश पर पाबंदी क्यों है? शनि शिंगणापुर में यह क्रांतिकारी घटना हुई है. इस पर राजनीति न हो और मंदिर को महिलाओं के लिए खोला जाए.'

यह विचारणीय है कि एक तरफ हमारे धर्मग्रन्थ 'यत्र नारी पूजयंते रमंते तत्र देवता' की बात कहते हैं, वहीँ उसी नारी  के प्रवेश से मंदिर और मूर्तियाँ अपवित्र हो जाती हैं, भला ऐसे कैसे सम्भव है. इस प्रकार के दोहरे मानदंडों को ख़त्म  करने की जरूरत है. अन्यथा नारी-समता और  नारी-सशक्तिकरण जैसी बातें पन्नों में ही रह जाएँगी।

-आकांक्षा यादव @ शब्द-शिखर 

शनिवार, 28 नवंबर 2015

पहला प्यार

पहली बार
इन आँखों ने महसूस किया
हसरत भरी निगाहों को

ऐसा लगा
जैसे किसी ने देखा हो
इस नाजुक दिल को
प्यार भरी आँखों से

न जाने कितनी
कोमल और अनकही भावनायें
उमड़ने लगीं दिल में

एक अनछुये अहसास के
आगोश में समाते हुए
महसूस किया प्यार को

कितना अनमोल था
वह अहसास
मेरा पहला प्यार !!









वक्त बदला, तारीखें बदली
ना बदला वो एहसास व प्यार !!
...... बस 11 साल ही तो हुए उस दिन को, जब हम बँधे थे इक बंधन में।  




फेसबुक पर रत्नेश कुमार मौर्य जी ने कुछ इस तरह से दुआएँ दीं -

इस सफर में आप दोनों के लिए बस एक ही दुआ। 
आगे के सफर में भी यूँ ही प्रीति बनाये रहना सदा। 
...... खूबसूरत जोड़ी को किसी की नजर न लगे !!



आप सभी की शुभकामनाओं और स्नेह के लिए आभार !!


मंगलवार, 10 नवंबर 2015

पावन पर्व दीवाली का



पावन पर्व दीवाली का,
दीपों की बारात लाए।
तारों सी टिमटिमाती रोशनी,  
खुशियों की सौगात लाए।

तोरण द्वार पर सजे अल्पना,
ज्योति का पुंज-हार लाए।
खील-लड्डू का चढ़े प्रसाद,
दिलों में सबके प्यार लाए।

है शुभ मंगलकारी पर्व यह,
इस दिन अयोध्या राम आए।
जल उठी दीपों की बाती,
पुलकित मन पैगाम लाए।

अमावस्या का तिमिर चीरकर,
रोशनी का उपहार लाए।
चारों तरफ सजे रंगोली,
लक्ष्मी-गणेश भी द्वार आए।



दीपावली पर एक सन्देश बिटिया पाखी की तरफ से भी -
ऐसे मनाएं दीवाली : गरीबी और अशिक्षा का अँधियारा मिटायें 

दीपावली रोशनी का त्यौहार है, न कि पटाखों का। इस मौके पर हम खूब दीये जलाएंगे और परिवार के साथ इसका आनंद उठाएंगे। पटाखों से तो बिलकुल दूर रहूँगी। पटाखों से निकली चिंगारी से तो कई बार लोगों की आँखों की रोशनी भी चली जाती है। इससे प्रदूषण भी बहुत फैलता है। ऐसे में मैंने संकल्प लिया है कि इस दीपावली पर पटाखों से दूर रहूँगी। जो पैसे हम पटाखों पर खर्च करते हैं, उनसे किसी गरीब या जरूरतमंद की सहायता कर उनके जीवन में रोशनी फैलाएंगे। 

- अक्षिता (पाखी)
(राष्ट्रीय बाल पुरस्कार विजेता)

प्रकाश का पर्व दीपावली आप सभी के जीवन में ढेर सारी खुशियाँ लाये। 
अँधेरे से अँधेरे माहौल में भी दिल में आशा की एक लौ जलती रहे।
 दीपोत्सव पर्व की सपरिवार हार्दिक शुभकामनाएं !!

गुरुवार, 5 नवंबर 2015

अब भगवान भी दौरे पर

अब भगवान जी भी दौरे करने लगे हैं।  विश्वास नहीं हो रहा न, पर यह सच है। 50 हजार करोड़ से ज्यादा की संपत्ति के साथ देश के सबसे अमीर भगवान तिरुपति बालाजी इन दिनों दिल्ली दौरे पर हैं। ये पहला मौका है जब वे अपने पूरे दलबल के साथ आंध्रप्रदेश से बाहर किसी दूसरे राज्य में पहुंचे हैं। दरअसल, दिल्ली के नेहरू स्टेडियम में 8 नवंबर तक ‘वैभवोत्सम’का आयोजन किया जा रहा है। यहां भगवान बालाजी की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा की गई है। यद्यपि मुख्य कार्यक्रम 7 नवंबर को है। लेकिन हर दिन यहां उसी तरह पूजा पाठ हो रहा है, जैसी तिरुपति बालाजी में होता है। मंदिर और दर्शन को विश्वसनीय बनाने के लिए तिरुमला तिरुपति देवस्थानम (टीटीडी) कोई कमी नहीं छोड़ रहा है। टीटीडी ही श्री वेंकटेश्वर स्वामी मंदिर के प्रबंधन की जिम्मेदारी उठाता है।

 पूजा पाठ का सामान 25 ट्रकों में भरकर दिल्ली लाया गया है। पूजा-अनुष्ठानों के लिए 35 पुजारियों सहित 250 मंदिर स्टाफ भी भगवान बालाजी के साथ आए हैं। मंदिर को सजाने वाले कारीगर भी तिरुमला से ही आए हैं। भगवान की मूर्तियों के अलावा, पर्दे भी तिरुमला मंदिर से लाए गए हैं। तिरुपति भोग का मशहूर लड्डू और प्रसाद तैयार करने की सामग्री भी तिरुमला से ही मंगवाई जा रही है। यहाँ तक कि भगवान की मूर्तियों के लिए फूल भी तिरुमला और बेंगलुरु से मंगवाए गए हैं। ‘वैभवोत्सम’को इस तरह मंदिर परिसर से बाहर आयोजित करने की योजना स्वर्ण भारत ट्रस्ट की मैनेजिंग ट्रस्टी और भाजपा नेता वेंकैया नायडू की बेटी दीपा वैंकट की है। दिल्ली दौरे के दौरान न केवल सर्वदर्शन मुफ्त हैं बल्कि सभी दैनिक सेवाएं व सोमवार की विशेष पूजा से लेकर पूराभिषेकम तक सभी वारोत्सव नेहरू स्टेडियम में खुले में आयोजित किए जा रहे हैं। यहां कुर्सी से लेकर जमीन में बैठने की व्यवस्था की गई है। किसी भी दर्शन के लिए कोई फीस नहीं है। यहां तक कि यदि पुरुष धोती और महिलाएं साड़ी या सलवार सूट पहने हैं तो उन्हें बालाजी के बिल्कुल करीब जाने का मौका भी मिल रहा है। हर शाम को प्रांगण में ही निकलने वाली शोभायात्रा में भी सब शामिल हो सकते हैं और पालकी को श्रद्धा से छू भी सकते हैं। ऐसा तिरुपति में कतई संभव नहीं हो पाता है।

उत्सव के लिए तिरुपति बालाजी की मूर्ति को तिरुपति बालाजी से विशेष गरुड़ वाहन से लाया गया है। मूल प्रतिमा वहीं विराजमान है। टीडीडी की योजना है कि सभी राज्यों की राजधानियों में एक-एक देवस्थानम स्थापित किया जाए। ताकि जो लोग तिरुपति नहीं जा सकते, उन तक बालाजी पहुंच जाएं। इसकी योजना बनाई जा रही है।