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सोमवार, 10 जुलाई 2023

भोजपुरी के शेक्सपीयर - भिखारी ठाकुर

भोजपुरी के समर्थ लोक कलाकार, रंगकर्मी, लोक जागरण के संदेश वाहक, लोक गीत तथा भजन कीर्तन के अनन्य साधक भिखारी ठाकुर बहुआयामी प्रतिभा के व्यक्तित्व थे। अपनी रचनात्मकता में अपनी माटी को प्रतिबिंबित करने वाले संस्कृति-पुत्र, प्रखर कवि, नाटककार व ‘बिहार के शेक्सपियर’ कहे जाने वाले भिखारी ठाकुर जी ने कला-साहित्य के क्षेत्र में भोजपुरी भाषा को एक नई ऊँचाई दी। 

भिखारी ठाकुर (18 दिसम्बर,1887-10 जुलाई,1971) का जन्म बिहार के सारन जिले के कुतुबपुर (दियारा) गाँव में एक नाई परिवार में हुआ था। उनके पिताजी का नाम दल सिंगार ठाकुर व माताजी का नाम शिवकली देवी था। भोजपुरी गीतों एवं नाटकों की रचना के साथ अपने सामाजिक कार्यों के लिये भी प्रसिद्ध रहे। राहुल सांकृत्यायन ने उनको अनगढ़ हीरा कहा है और जगदीशचंद्र माथुर ने 'भरत मुनि की परंपरा का कलाकार'। 

वे एक ही साथ कवि, गीतकार, नाटककार, नाट्य निर्देशक, लोक संगीतकार और अभिनेता थे। भिखारी ठाकुर की मातृभाषा भोजपुरी थी और उन्होंने भोजपुरी को ही अपने काव्य और नाटक की भाषा बनाया। आज भी बिहार की शादियों में भिखारी ठाकुर की मूल रचना के आधार पर रचित कई गीतों का वही स्थान है जो पूजा में मंत्रों का होता है-

चलनी के चालल दुलहा सूप के फटकारल हे, 

दिअका के लागल बर दुआरे बाजा बाजल हे।

आंवा के पाकल दुलहा झांवा के झारल हे

कलछुल के दागल, बकलोलपुर के भागल हे।

'भोजपुरी के शेक्सपीयर' कहे जाने वाले भिखारी ठाकुर की पुण्य तिथि पर कोटिश: नमन।🙏


बुधवार, 3 मई 2023

विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस : लोकतंत्र के चौथे स्तंभ के रूप में बदलती भूमिका

मीडिया लोकतंत्र में जनहित के प्रहरी के रूप में कार्य करता है। यह एक लोकतंत्र में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है और लोगों को राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय महत्व की घटनाओं की सूचना देने का काम करता है। मीडिया को लोकतांत्रिक देशों में विधानमंडल, कार्यकारी और न्यायपालिका के साथ "चौथा स्तंभ" माना जाता है। पाठकों को प्रभावित करने में इसकी अहमियत का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि इसने स्वतंत्रता संग्राम के दौरान जो भूमिका निभाई थी, वह राजनीतिक रूप से उन लाखों भारतीयों को शिक्षित कर रही थी, जो ब्रिटिश साम्राज्यवाद के खिलाफ अपनी लड़ाई में शामिल हुए थे।

पत्रकारिता एक पेशा है जो सेवा तो करता ही है, यह दूसरों से प्रश्न का विशेषाधिकार भी प्राप्त करता है। पत्रकारिता का मूल उद्देश्य निष्पक्ष, सटीक, निष्पक्ष: और सभ्य तरीके और भाषा में जनहित के मामलों पर समाचारों, विचारों, टिप्पणियों और सूचनाओं के साथ लोगों की सेवा करना है। प्रेस लोकतंत्र का एक अनिवार्य स्तंभ है। यह सार्वजनिक राय को शुद्ध करता है और इसे आकार देता है। संसदीय लोकतंत्र मीडिया की चौकस निगाहों के नीचे ही पनप सकता है। मीडिया न केवल रिपोर्ट करता है बल्कि राज्य और जनता के बीच एक सेतु का काम करता है।

निजी टीवी चैनलों के आगमन के साथ, मीडिया ने जीवन के हर क्षेत्र में मानव जीवन और समाज की बागडोर संभाली है। मीडिया आज चौथे एस्टेट के रूप में संतुष्ट नहीं है, इसने समाज और शासन में सबसे महत्वपूर्ण महत्व ग्रहण किया है। मुखबिर की भूमिका निभाते हुए, मीडिया एक प्रेरक और एक नेता का रूप भी लेता है। मीडिया का ऐसा प्रभाव है कि यह किसी व्यक्ति, संस्था या किसी विचार को बना या बिगाड़ सकता है। इसलिए सभी व्यापक और सर्व-शक्तिशाली आज समाज पर इसका प्रभाव है। इतनी शक्ति और शक्ति के साथ, मीडिया अपने विशेषाधिकारों, कर्तव्यों और दायित्वों की दृष्टि नहीं खो सकता है।

आज पेड न्यूज, मीडिया ट्रायल, गैर-मुद्दों को वास्तविक समाचार के रूप में प्रस्तुत किया जा रहा है, जबकि वास्तविक मुद्दों को दरकिनार किया जा रहा है, वास्तविक और समाज हित के  समाचार को नजरअंदाज किया जा रहा है और मुनाफे और राजनीतिक पक्ष के लिए तथ्य विरूपण, फर्जी समाचार, पीत पत्रकारिता की जा रही है  पेड न्यूज़ के मामलों में वृद्धि के पीछे भारत में अधिकतर मीडिया समूह कॉरपोरेट के बड़े घरानों वाले हैं जो मात्रा लाभ के लिये इस क्षेत्र में है और लाभ के लिए ही कार्य करते हैं। पत्रकारों की कम सैलरी तथा जल्दी मशहूर होने की चाहत भी पीत पत्रकारिता के पीछे एक कारण है।

आँकड़े ये राज भी खोलते है कि अधिकतर राजनीतिक दलों के कुल बजट का लगभग 40 प्रतिशत मीडिया संबंधी खर्चों में जाया होता है । चुनावों में प्रयुक्त होने वाला धन बल, शराब तथा पेड न्यूज़ की अधिकता आज बेहद गंभीर चिंता का विषय है। भारतीय प्रेस परिषद  के अनुसार, ऐसी खबरें जो प्रिंट या इलेक्ट्रॅानिक मीडिया में नकद या अन्य लाभ के बदले में प्रसारित किये जा रहे हों पेड न्यूज़ कहलाते हैं।  मगर सांठ-गाँठ कि गुच्छी को खोलकर ये साबित करना अत्यंत कठिन कार्य है कि किसी चैनल पर दिखाई गई विशेष खबर या समाचारपत्र में छपी न्यूज़, पेड न्यूज़ ही है।

वस्तुनिष्ठ पत्रकारिता की अनुपस्थिति एक ऐसे समाज में सत्य की झूठी प्रस्तुति को जन्म देती है जो लोगों की धारणा और विचारों को प्रभावित करती है। जैसा कि कैंब्रिज एनालिटिका मामले में देखा गया था, सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर पक्षपातपूर्ण समाचार कवरेज ने अमेरिकी चुनावों को प्रभावित किया। सनसनीखेज वाले और उच्च टीआरपी दरों का पीछा करने के लिए जैसा कि भारत में 26/11 के आतंकवादी हमलों के कवरेज में देखा गया था, ने राष्ट्र की आंतरिक सुरक्षा को जोखिम में डाल दिया था। सनसनीखेज चालित रिपोर्टिंग ने न्यायालय के  दिशानिर्देशों के बावजूद बलात्कार पीड़ितों और बचे लोगों की पहचान से समझौता किया।

पेड न्यूज और फर्जी खबरें जनता की धारणा में हेरफेर कर सकती हैं और समाज के भीतर विभिन्न समुदाय के बीच नफरत, हिंसा, और असहमति पैदा कर सकती हैं। सोशल मीडिया, तकनीकी परिवर्तनों के आगमन के साथ, मीडिया की पहुंच गहराई से बढ़ी है। जनमत को प्रभावित करने में इसकी पहुंच और भूमिका ने पत्रकारिता नैतिकता के प्रवर्तन के लिए अपनी निष्पक्षता, गैर-पक्षपातपूर्ण कॉल को सुनिश्चित करने के लिए इसे और भी महत्वपूर्ण बना दिया है।इसलिए यह महत्वपूर्ण है कि मीडिया अपनी महत्वपूर्ण भूमिका को प्रभावी ढंग से और कुशलता से निभाने के लिए, मीडिया को अपनी स्वतंत्रता और संपादकीय स्वतंत्रता को बनाए रखते हुए एक अच्छी तरह से परिभाषित आचार संहिता के भीतर काम करना चाहिए। चूंकि गैर-जिम्मेदार पत्रकारिता प्रतिबंध को आमंत्रित करती है, मीडिया को अपनी स्वतंत्रता को लूटना, पेशेवर आचरण और नैतिक अभ्यास मीडिया की स्वतंत्रता की सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण हैं और यह सुनिश्चित करते हैं कि मीडिया में निवेशित जनता का विश्वास कायम है।

बदलते दौर में मीडिया संबंधित शिक्षण संस्थानों में ‘नैतिकता’ को बढ़ावा दिया जाना चाहिये। एक ‘स्वतंत्र जांच दल’ का गठन किया जाना चाहिए जो पत्रकारिता के निष्पक्ष प्रसारण एवं संवेदनशील सूचनाओं के प्रसारण संबंधी कार्यों पर निगरानी रखे। नियमित अंतराल पर समाजविदों तथा मीडियाकर्मियों की बैठक होनी चाहिये जिससे सब मिलकर सामाजिक समस्याओं से संबंधित समाधान खोज सकें एवं रणनीति बना सकें। मीडिया को राजनीतिक दबाव से मुक्त किया जाना चाहिए साथ ही  ‘पत्रकारिता से संबंधित आचार-संहिता’ का पालन सुनिश्चित किया जाना चाहिये।

वर्तमान दौर में खेमों में बंटी पत्रकारिता समाज को गलत दिशा में ले जा रहे है, चौथा खम्भा गिर चुका है।   कुछ लोग पत्रकारिता/साहित्य में है क्यूंकि उनको इसकी अपनी स्वार्थ सीधी के लिए जरूरत है। जबकि कुछ लोग इसलिए है कि पत्रकारिता और साहित्य को उनकी जरूरत है, तभी आज समाज बचा हुआ है। ऐसे बहुत से है जो सच और संतुलित लिखने की बजाय सालों से घिस रहे है बस; उनको अपनी प्राथमिक इच्छा के साथ तो न्याय करना चाहिए। बाकी देखा जायेगा, आने वाली पत्रकार पीढ़ी को संतुलित फैसला करके आगे बढ़ना होगा तभी ते स्तम्भ मजबूती से खड़ा होकर तीन अन्यों की बराबरी कर सकता है।

मीडिया ने एक-तरफ जहाँ लोगों की  जागरूकता का सशक्त माध्यम है, वहीं दूसरी तरफ सरकार को देश की समस्याओं से रूबरू भी करवाती है।  मीडिया को लोकतंत्र का चौथा स्तंभ माने जाने के कारण उससे अपेक्षा रहती  है की वह देशहित में अपना सकारात्मक योगदान दे। आज बदलते समय में मीडिया की भूमिका के साथ-साथ  उसके रिपोर्टिंग करने का तरीका भी बदल चुका है । समय को देखते हुए मीडिया को अपने स्वार्थपूर्ति के गीत गाने की बजाय तटस्थ वाचडॉग की भूमिका निभानी चाहिये।

 -डॉ. प्रियंका सौरभ, रिसर्च स्कॉलर इन पोलिटिकल साइंस, उब्बा भवन, आर्यनगर, हिसार (हरियाणा)-127045 (मो.) 7015375570

शुक्रवार, 28 अप्रैल 2023

विश्व पशु चिकित्सा दिवस : पोषण का रामबाण है भारत का पशुधन

विश्व पशु चिकित्सा दिवस का आयोजन हर साल अप्रैल के अंतिम शनिवार को पशु चिकित्सा व्यवसाय को सम्मान स्वरुप मनाया जाता है। इस साल इस दिवस का विषय पशु चिकित्सा क्षेत्र में विविधता, समानता और समावेश को बढ़ावा देना है। पशुपालन का अभ्यास अब एक विकल्प नहीं है, बल्कि समकालीन परिदृश्य में एक आवश्यकता है। इसके सफल, टिकाऊ और कुशल कार्यान्वयन से हमारे समाज के निचले तबके की सामाजिक-आर्थिक स्थिति में सुधार होगा। पशुपालन को खाद्य प्रसंस्करण उद्योग, कृषि, शोध और पेटेंट से जोड़ने से भारत को दुनिया का पोषण शक्ति केंद्र बनाने की हर संभव क्षमता है। पशुपालन भारत के साथ-साथ विश्व के लिए अनिवार्य आशा, निश्चित इच्छा और अत्यावश्यक रामबाण है।

पशुपालन का तात्पर्य पशुधन पालने और चयनात्मक प्रजनन से है। यह जानवरों का प्रबंधन और देखभाल है जिसमें लाभ के लिए जानवरों के अनुवांशिक गुणों और व्यवहार को और विकसित किया जाता है। भारत का पशुधन क्षेत्र दुनिया में सबसे बड़ा है। लगभग 20.5 मिलियन लोग अपनी आजीविका के लिए पशुधन पर निर्भर हैं। सभी ग्रामीण परिवारों के औसत 14% की तुलना में छोटे कृषि परिवारों की आय में पशुधन का योगदान 16% है। पशुधन दो-तिहाई ग्रामीण समुदाय को आजीविका प्रदान करता है। यह भारत में लगभग 8.8% आबादी को रोजगार भी प्रदान करता है। भारत में विशाल पशुधन संसाधन हैं। पशुधन क्षेत्र 4.11% सकल घरेलू उत्पाद और कुल कृषि सकल घरेलू उत्पाद का 25.6% योगदान देता है। पशुधन आय ग्रामीण परिवारों के लिए आय का एक महत्वपूर्ण माध्यमिक स्रोत बन गया है और किसानों की आय को दोगुना करने के लक्ष्य को प्राप्त करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

पशुधन किसानों की अर्थव्यवस्था में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। भारत में किसान मिश्रित कृषि प्रणाली को बनाए रखते हैं यानी फसल और पशुधन का संयोजन जहां एक उद्यम का उत्पादन दूसरे उद्यम का इनपुट बन जाता है जिससे संसाधन दक्षता का एहसास होता है। पशुधन विभिन्न तरीकों से किसानों की सेवा करता है। पशुधन भारत में कई परिवारों के लिए सहायक आय का एक स्रोत है, विशेष रूप से संसाधन गरीब जो जानवरों के कुछ सिर रखते हैं। दूध की बिक्री के माध्यम से गायों और भैंसों को दूध देने से पशुपालकों को नियमित आय प्राप्त होगी। भेड़ और बकरी जैसे जानवर आपात स्थितियों जैसे विवाह, बीमार व्यक्तियों के इलाज, बच्चों की शिक्षा, घरों की मरम्मत आदि को पूरा करने के लिए आय के स्रोत के रूप में काम करते हैं। जानवर चलती बैंकों और संपत्ति के रूप में भी काम करते हैं जो मालिकों को आर्थिक सुरक्षा प्रदान करते हैं।

भारत में कम साक्षर और अकुशल होने के कारण बड़ी संख्या में लोग अपनी आजीविका के लिए कृषि पर निर्भर हैं। लेकिन कृषि प्रकृति में मौसमी होने के कारण एक वर्ष में अधिकतम 180 दिनों के लिए रोजगार प्रदान कर सकती है। कम भूमि वाले लोग कम कृषि मौसम के दौरान अपने श्रम का उपयोग करने के लिए पशुओं पर निर्भर करते हैं। पशु उत्पाद जैसे दूध, मांस और अंडे पशुपालकों के सदस्यों के लिए पशु प्रोटीन का एक महत्वपूर्ण स्रोत हैं। दूध की प्रति व्यक्ति उपलब्धता लगभग 355 ग्राम/दिन है; अंडे 69/वर्ष है। 

जानवर समाज में अपनी स्थिति के संदर्भ में मालिकों को सामाजिक सुरक्षा प्रदान करते हैं। परिवार विशेष रूप से भूमिहीन जिनके पास जानवर हैं, उनकी स्थिति उन लोगों की तुलना में बेहतर है जिनके पास पशु नहीं हैं। देश के विभिन्न हिस्सों में शादियों के दौरान जानवरों को उपहार में देना एक बहुत ही सामान्य घटना है। पशुपालन भारतीय संस्कृति का अंग है। जानवरों का उपयोग विभिन्न सामाजिक धार्मिक कार्यों के लिए किया जाता है। गृह प्रवेश समारोहों के लिए गायें; उत्सव के मौसम में बलिदान के लिए मेढ़े, हिरन और चिकन; विभिन्न धार्मिक कार्यों के दौरान बैल और गायों की पूजा की जाती है। कई मालिक अपने जानवरों से लगाव विकसित करते हैं।

पशुपालन लैंगिक समानता को बढ़ावा देता है। पशुधन उत्पादन में श्रम की तीन-चौथाई से अधिक मांग महिलाओं द्वारा पूरी की जाती है। पशुधन क्षेत्र में महिलाओं के रोजगार की हिस्सेदारी पंजाब और हरियाणा में लगभग 90% है जहां डेयरी एक प्रमुख गतिविधि है और जानवरों को स्टाल-फेड किया जाता है। बैल भारतीय कृषि की रीढ़ की हड्डी हैं। भारतीय कृषि कार्यों में यांत्रिक शक्ति के उपयोग में बहुत प्रगति के बावजूद, भारतीय किसान विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में अभी भी विभिन्न कृषि कार्यों के लिए बैलों पर निर्भर हैं।

बैल ईंधन पर काफी बचत कर रहे हैं जो यांत्रिक शक्ति जैसे ट्रैक्टर, कंबाइन हार्वेस्टर आदि का उपयोग करने के लिए एक आवश्यक इनपुट है। बैलों के अलावा देश के विभिन्न भागों में सामान ढोने के लिए ऊंट, घोड़े, गधे, खच्चर आदि जैसे पैक जानवरों का बड़े पैमाने पर उपयोग किया जा रहा है। पहाड़ी इलाकों जैसी स्थितियों में माल परिवहन के लिए खच्चर और टट्टू ही एकमात्र विकल्प के रूप में काम करते हैं। इसी तरह, ऊंचाई वाले क्षेत्रों में विभिन्न वस्तुओं के परिवहन के लिए सेना को इन जानवरों पर निर्भर रहना पड़ता है। ग्रामीण क्षेत्रों में गोबर का उपयोग कई उद्देश्यों के लिए किया जाता है जिसमें ईंधन (गोबर के उपले), उर्वरक (खेत यार्ड खाद), और प्लास्टरिंग सामग्री (गरीब आदमी की सीमेंट) शामिल हैं।

कृषि पशुओं की उत्पादकता में सुधार करना प्रमुख चुनौतियों में से एक है। भारतीय मवेशियों की औसत वार्षिक दुग्ध उपज 1172 किलोग्राम है जो वैश्विक औसत का लगभग 50 प्रतिशत है। खुरपका और मुंहपका रोग, ब्लैक क्वार्टर संक्रमण जैसी बीमारियों का लगातार प्रकोप; इन्फ्लुएंजा, आदि पशुधन स्वास्थ्य को प्रभावित करते हैं और उत्पादकता को कम करते हैं। भारत में जुगाली करने वालों की विशाल आबादी ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में योगदान करती है। शमन और अनुकूलन रणनीतियों के माध्यम से ग्रीनहाउस गैसों को कम करना एक बड़ी चुनौती होगी।

विभिन्न प्रजातियों की आनुवंशिक क्षमता को बढ़ाने के लिए विदेशी स्टॉक के साथ स्वदेशी प्रजातियों का क्रॉसब्रीडिंग केवल एक सीमित सीमा तक ही सफल रहा है। कृत्रिम गर्भाधान के बाद खराब गर्भाधान दर के साथ मिलकर गुणवत्ता वाले जर्मप्लाज्म, बुनियादी ढांचे और तकनीकी जनशक्ति में कमी के कारण सीमित कृत्रिम गर्भाधान सेवाएं प्रमुख बाधाएँ रही हैं। इस क्षेत्र को कृषि और संबद्ध क्षेत्रों पर कुल सार्वजनिक व्यय का लगभग 12 प्रतिशत प्राप्त हुआ, जो कि कृषि सकल घरेलू उत्पाद में इसके योगदान की तुलना में अनुपातहीन रूप से कम है। वित्तीय संस्थानों द्वारा इस क्षेत्र की उपेक्षा की गई है।

मांस उत्पादन और बाजार: इसी तरह, वध सुविधाएं अपर्याप्त हैं। कुल मांस उत्पादन का लगभग आधा अपंजीकृत, अस्थायी बूचड़खानों से आता है। पशुधन उत्पादों के विपणन और लेनदेन की लागत बिक्री मूल्य का 15-20 प्रतिशत अधिक है। बढ़ती आबादी के साथ, खाद्य मुद्रास्फीति में लगातार वृद्धि, किसानों की आत्महत्या में दुर्भाग्यपूर्ण वृद्धि के बीच भारत की अधिकांश आबादी का प्राथमिक व्यवसाय कृषि है, पशुपालन का अभ्यास अब एक विकल्प नहीं है, बल्कि समकालीन परिदृश्य में एक आवश्यकता है। इसके सफल, टिकाऊ और कुशल कार्यान्वयन से हमारे समाज के निचले तबके की सामाजिक-आर्थिक स्थिति में सुधार होगा। पशुपालन को खाद्य प्रसंस्करण उद्योग, कृषि, शोध और पेटेंट से जोड़ने से भारत को दुनिया का पोषण शक्ति केंद्र बनाने की हर संभव क्षमता है। पशुपालन भारत के साथ-साथ विश्व के लिए अनिवार्य आशा, निश्चित इच्छा और अत्यावश्यक रामबाण है।

-प्रियंका सौरभ 

रिसर्च स्कॉलर इन पोलिटिकल साइंस,

उब्बा भवन, आर्यनगर, हिसार (हरियाणा)-127045

(मो.) 7015375570 (वार्ता+वाट्स एप) 

World Day for Safety and Health at Work : कार्यस्थल पर सुरक्षा और स्वास्थ्य के लिए विश्व दिवस

भूमण्डलीकरण और कार्पोरेट गवर्नेंस के बदलते आयामों के बीच वैश्विक स्तर पर व्यावसायिक दुनिया में गहरा परिवर्तन हो रहा है। सरकारों, नियोक्ताओं और श्रमिकों और अन्य हितधारकों के लिए यह महत्वपूर्ण है कि वे सभी के लिए एक सुरक्षित और स्वस्थ भविष्य का कार्यस्थल बनाने के अवसरों का लाभ उठाएं। काम पर सुरक्षा और स्वास्थ्य में सुधार के उनके दिन-प्रतिदिन के प्रयास भारत के ठोस सामाजिक आर्थिक विकास में सीधे योगदान कर सकते हैं। विश्व स्तर पर व्यावसायिक दुर्घटनाओं और बीमारियों की रोकथाम को बढ़ावा देने के लिए हर साल 28 अप्रैल को कार्यस्थल पर सुरक्षा और स्वास्थ्य के लिए विश्व दिवस (World Day for Safety and Health at Work) मनाया जाता है।

क्या आप व्यावसायिक सुरक्षा और स्वास्थ्य को समझने के इच्छुक हैं? यदि हाँ, तो व्यावसायिक स्वास्थ्य और सुरक्षा सार्वजनिक स्वास्थ्य की एक शाखा है जो कार्यस्थल की बीमारियों और चोटों के रुझानों की जांच करती है और रोकथाम के तरीकों और कानूनों की सिफारिश करती है और उन्हें लागू करती है। व्यावसायिक खतरों के सबसे प्रचलित प्रकारों में ऊँचाई, बिजली के खतरे, सुरक्षात्मक गियर की कमी, गति की चोटें, टक्कर, जैविक खतरे, रासायनिक खतरे, एर्गोनोमिक खतरे और मनोवैज्ञानिक खतरे शामिल हैं।

व्यावसायिक सुरक्षा और स्वास्थ्य विभाग का उद्देश्य विभिन्न कार्यस्थलों में जोखिम को कम करना और समस्याओं की जांच करना है। व्यावसायिक स्वास्थ्य और सुरक्षा का क्षेत्र कार्यस्थल के खतरों के उन्मूलन, कमी या प्रतिस्थापन की मांग के लिए नियम बनाता है। ओएचएस कार्यक्रमों में कार्यस्थल की घटनाओं के परिणामों को कम करने के लिए प्रक्रियाएं और कार्यविधियां भी शामिल हैं। यह प्राथमिक चिकित्सा और भारी मशीनरी के सुरक्षित संचालन और संक्रमण की रोकथाम, एर्गोनोमिक सर्वोत्तम प्रथाओं और कार्यस्थल हिंसा प्रतिक्रिया रणनीति को कवर करता है। व्यावसायिक स्वास्थ्य और सुरक्षा (ओएचएस) सार्वजनिक स्वास्थ्य का एक उपसमुच्चय है जो कार्यस्थल के स्वास्थ्य और सुरक्षा में सुधार करता है। यह कर्मचारी की चोट और बीमारी के पैटर्न की जांच करता है और काम पर आने वाले जोखिमों और खतरों को कम करने के लिए सिफारिशें करता है।

प्रत्येक व्यवसाय में स्वास्थ्य और सुरक्षा जोखिम होते हैं, और यह गारंटी देना प्रत्येक नियोक्ता का उत्तरदायित्व है कि उनके कर्मचारी यथासंभव सुरक्षित रूप से अपना काम कर सकते हैं। व्यावसायिक खतरों के परिणामस्वरूप कर्मचारियों के लिए विभिन्न प्रकार की स्वास्थ्य समस्याएं हो सकती हैं। भौतिक जोखिम, रासायनिक खतरे, जैविक खतरे, एर्गोनोमिक खतरे और व्यवहार संबंधी खतरे छह प्राथमिक खतरे श्रेणियां हैं। व्यावसायिक खतरे वे बीमारियाँ या दुर्घटनाएँ हैं जो काम के दौरान हो सकती हैं। दूसरे शब्दों में, कर्मचारियों को अपने कार्यस्थल पर जिन जोखिमों का सामना करना पड़ता है। एक व्यावसायिक खतरा एक नकारात्मक अनुभव या परिणाम है जो किसी व्यक्ति को उनके काम के परिणामस्वरूप होता है। कुछ शब्दकोशों के अनुसार, यह शब्द उन जोखिमों को भी संदर्भित करता है जिनका लोग अपने शौक पर काम करते समय सामना करते हैं। खतरा एक संभावित हानिकारक या अप्रिय घटना है।

व्यावसायिक खतरे विभिन्न रूपों में आते हैं। खतरों का यह संग्रह काम पर हर समय मौजूद रहता है और उच्च रक्तचाप, तनाव और कैंसर सहित व्यावसायिक बीमारियों की एक विस्तृत श्रृंखला के लिए जिम्मेदार है। ऐसे कारक, एजेंट या घटनाएँ जो स्पर्श के बिना या स्पर्श किए बिना नुकसान पहुँचा सकते हैं, शारीरिक खतरों के रूप में जाने जाते हैं। उन्हें या तो पर्यावरणीय या व्यावसायिक खतरों के रूप में वर्गीकृत किया गया है। रेडिएशन, हीट, कोल्ड स्ट्रेस, कंपकंपी और शोर इसके कुछ उदाहरण हैं। जैविक जोखिम-जैविक खतरे, जिन्हें अक्सर जैव खतरों के रूप में जाना जाता है, जैविक यौगिक हैं जो मनुष्यों और अन्य जीवित प्रजातियों के लिए स्वास्थ्य जोखिम पैदा करते हैं। एक जैविक स्रोत से एक विष के नमूने, एक वायरस इस प्रकार के खतरे के उदाहरण हैं। विशेष रूप से, नमूने जो लोगों के स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हैं।

एर्गोनोमिक खतरा गलत मुद्रा, ऊब, दोहराव, काम की पाली और तनावपूर्ण स्थितियों की आवश्यकता को संदर्भित करता है। एनेस्थेसियोलॉजिस्ट के कार्यस्थल की पर्याप्तता में एर्गोनॉमिक रूप से OR को अपनाना शामिल है। एनेस्थेटिक मशीन, ऑपरेटिंग टेबल, साइड टेबल और मॉनिटर सभी को एनेस्थेसियोलॉजिस्ट की ऊंचाई पर सेट किया जाना चाहिए। रासायनिक खतरे ऐसे जोखिम हैं जो कार्यस्थल में रसायनों के संपर्क में आने से उत्पन्न हो सकते हैं। पीड़ितों को तत्काल या दीर्घकालिक स्वास्थ्य परिणामों का अनुभव हो सकता है। सैकड़ों खतरनाक पदार्थों में प्रतिरक्षा एजेंट, त्वचाविज्ञान एजेंट, कैंसरजन, न्यूरोटॉक्सिन और प्रजनन जहर शामिल हैं। खतरनाक यौगिकों में अस्थमा, सेंसिटाइज़र और प्रणालीगत ज़हर शामिल हैं।

जोखिम की मनोसामाजिक प्रकृति-मनोसामाजिक खतरे कार्यस्थल के जोखिम हैं जिनका कर्मचारियों के मानसिक स्वास्थ्य पर प्रभाव पड़ता है। ये खतरे अन्य लोगों के साथ टीम की स्थिति में कार्य करने की उनकी क्षमता को सीमित करते हैं। जिस तरह से काम बनाया गया, संरचित और प्रबंधित किया गया वह मनोसामाजिक खतरों से जुड़ा हुआ है। रोगियों में मनोवैज्ञानिक या मानसिक हानि या बीमारी होती है। कुछ लोग शारीरिक रूप से चोटिल या बीमार भी होते हैं। कानूनी विनियम, प्रमाणन और पंजीकरण, निगरानी और निगरानी, दुर्घटना की सूचना देना, और कार्य चोट क्षतिपूर्ति सभी कार्यस्थल सुरक्षा और स्वास्थ्य का हिस्सा हैं। कार्यस्थल सुरक्षा में सुधार के लिए अपनी जिम्मेदारियों को समझें।

लोगों को उनके स्वास्थ्य और सुरक्षा के लिए कॉर्पोरेट गतिविधि के जोखिमों से बचाएं; स्रोत पर कार्यस्थल जोखिमों को समाप्त करना; और स्वास्थ्य, सुरक्षा और कल्याण मानकों के निर्माण और कार्यान्वयन में उनका प्रतिनिधित्व करने वाले नियोक्ताओं, कर्मचारियों और संगठनों को शामिल करें। काम की दुनिया में गहरा परिवर्तन हो रहा है। सरकारों, नियोक्ताओं और श्रमिकों और अन्य हितधारकों के लिए यह महत्वपूर्ण है कि वे सभी के लिए एक सुरक्षित और स्वस्थ भविष्य का कार्यस्थल बनाने के अवसरों का लाभ उठाएं। काम पर सुरक्षा और स्वास्थ्य में सुधार के उनके दिन-प्रतिदिन के प्रयास भारत के ठोस सामाजिक आर्थिक विकास में सीधे योगदान कर सकते हैं।

- डॉo सत्यवान सौरभ, कवि,स्वतंत्र पत्रकार एवं स्तंभकार, आकाशवाणी एवं टीवी पेनालिस्ट,

333, परी वाटिका, कौशल्या भवन, बड़वा (सिवानी) भिवानी, हरियाणा – 127045, 

मोबाइल :9466526148,01255281381

शुक्रवार, 24 मार्च 2023

विश्व क्षय रोग दिवस : टीबी मुक्त भारत का लक्ष्य और चुनौतियां

हर साल, हम 24 मार्च को विश्व क्षय रोग दिवस मनाते हैं। यह कार्यक्रम 24 मार्च 1882 की तारीख को याद करने का दिन है जब जर्मन फिजिशियन डॉ. रॉबर्ट कोच ने माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरकुलोसिस नामक जीवाणु की खोज की थी, यह जीवाणु तपेदिक/क्षय रोग (टीबी) का कारण बनता है। माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरकुलोसिस की खोज हो जाने से टीबी के निदान और इलाज में बहुत आसानी हुई। जर्मन फिजिशियन रोबर्ट कोच की इस खोज के लिए उन्हें 1905 में नोबेल पुरस्कार दिया गया। यही कारण है कि हर वर्ष विश्व स्वास्थ्य संगठन टीबी के सामाजिक, आर्थिक और सेहत के लिए हानिकारक नतीजों पर दुनिया में जन-जागरुकता फैलाने और दुनिया से टीबी के खात्मे की कोशिशों में तेजी लाने के लिए विष्व क्षय रोग दिवस मनाता आ रहा है। माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरकुलोसिस की खोज के सौ साल बाद विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने पहली बार 24 मार्च 1982 को विश्व क्षय रोग दिवस शुरू मनाने की शुरुआत की, तभी से हर साल 24 मार्च को विश्व क्षय रोग दिवस पूरे विश्व में मनाया जाता है।

टीबी (क्षय रोग) एक घातक संक्रामक रोग है जो कि माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरक्लोसिस जीवाणु की वजह से होती है। टीबी (क्षय रोग) आमतौर पर ज्यादातर फेफड़ों पर हमला करता है, लेकिन यह फेफड़ों के अलावा शरीर के अन्य भागों को भी प्रभावित कर सकता हैं। यह रोग हवा के माध्यम से फैलता है। जब क्षय रोग से ग्रसित व्यक्ति खांसता, छींकता या बोलता है तो उसके साथ संक्रामक ड्रॉपलेट न्यूक्लिआई उत्पन्न होता है जो कि हवा के माध्यम से किसी अन्य व्यक्ति को संक्रमित कर सकता है। ये ड्रॉपलेट न्यूक्लिआई कई घंटों तक वातावरण में सक्रिय रहते हैं। जब एक स्वस्थ्य व्यक्ति हवा में घुले हुए इन माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरक्लोसिस ड्रॉपलेट न्यूक्लिआई के संपर्क में आता है तो वह इससे संक्रमित हो सकता है। क्षय रोग सुप्त और सक्रिय अवस्था में होता है। सुप्त अवस्था में संक्रमण तो होता है लेकिन टीबी का जीवाणु निष्क्रिय अवस्था में रहता है और कोई लक्षण दिखाई नहीं देते हैं। अगर सुप्त टीबी का मरीज अपना इलाज नहीं कराता है तो सुप्त टीबी सक्रिय टीबी में बदल सकती है। लेकिन सुप्त टीबी ज्यादा संक्रामक और घातक नहीं है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के एक अनुमान के अनुसार विश्व में 2 अरब से ज्यादा लोगों को लेटेंट (सुप्त) टीबी संक्रमण है। सक्रिय टीबी की बात की जाए तो इस अवस्था में टीबी का जीवाणु शरीर में सक्रिय अवस्था में रहता है, यह स्थिति व्यक्ति को बीमार बनाती है। सक्रिय टीबी का मरीज दूसरे स्वस्थ्य व्यक्तियों को भी संक्रमित कर सकता है, इसलिए सक्रिय टीबी के मरीज को अपने मुँह पर मास्क या कपडा लगाकर बात करनी चाहिए और मुँह पर हाथ रखकर खाँसना और छींकना चाहिए।  अगर टीबी का जीवाणु फेफड़ों को संक्रमित करता है तो वह पल्मोनरी टीबी (फुफ्फुसीय यक्ष्मा) कहलाता है। टीबी का बैक्टीरिया 90 प्रतिशत से ज्यादा मामलों में फेंफड़ों को प्रभावित करता है। लक्षणों की बात की जाए तो आमतौर पर लंबे समय तक खांसी, सीने में दर्द, बलगम, वजन कम होना, बुखार आना और रात में पसीना आना शामिल हो सकते हैं। कभी-कभी पल्मोनरी टीबी से संक्रमित लोगों की खांसी के साथ थोड़ी मात्रा में खून भी आ जाता है। लगभग 25 प्रतिशत ज्यादा मामलों में किसी भी तरह के लक्षण नहीं दिखाई देते हैं।

अगर टीबी का जीवाणु फेंफड़ों की जगह शरीर के अन्य अंगों को प्रभावित करता है तो इस प्रकार की टीबी एक्स्ट्रा पल्मोनरी टीबी (इतर फुफ्फुसीय यक्ष्मा) कहलाती है। एक्स्ट्रा पल्मोनरी टीबी पल्मोनरी टीबी के साथ भी हो सकती है। अधिकतर मामलों में संक्रमण फेंफड़ों से बाहर भी फैल जाता है और शरीर के दूसरे अंगों को प्रभावित करता है। जिसके कारण फेंफड़ों के अलावा अन्य प्रकार के टीबी हो जाते हैं। फेंफड़ों के अलावा दूसरे अंगों में होने वाली टीबी को सामूहिक रूप से एक्स्ट्रा पल्मोनरी टीबी (इतर फुफ्फुसीय यक्ष्मा) के रूप में चिह्नित किया जाता है। एक्स्ट्रा पल्मोनरी टीबी (इतर फुफ्फुसीय यक्ष्मा) अधिकतर कमजोर प्रतिरोधक क्षमता वाले लोगों और छोटे बच्चों में अधिक आम होता है। एचआईवी से पीड़ित लोगों में, एक्स्ट्रा पल्मोनरी टीबी (इतर फुफ्फुसीय यक्ष्मा) 50 प्रतिशत से अधिक मामलों में पाया जाता है।

आज के समय पर सामान्य टीबी का इलाज कोई चुनौती नहीं है। अगर कोई भी व्यक्ति टीबी का मरीज है तो वह 6-8 महीने टीबी का उपचार लेकर स्वस्थ्य हो सकता है। आज के समय पर सबसे बड़ी चुनौती है ड्रग रेजिस्टेंट टीबी के इलाज की, जो कि दो प्रकार की होती है मल्टी ड्रग रेजिस्टेंट टीबी और एक्सटेनसिवली ड्रग रेजिस्टेंट टीबी। मल्टी ड्रग रेजिस्टेंट टीबी में फर्स्ट लाइन ड्रग्स का टीबी के जीवाणु  (माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरक्लोसिस) पर कोई असर नहीं होता है। अगर टीबी का मरीज नियमित रूप से टीबी की दवाई नहीं लेता है या मरीज द्वारा जब गलत तरीके से टीबी की दवा ली जाती है या मरीज को गलत तरीके से दवा दी जाती है और या फिर टीबी का रोगी बीच में ही टीबी के कोर्स को छोड़ देता है (टीबी के मामले में अगर एक दिन भी दवा खानी छूट जाती है तब भी खतरा होता है) तो रोगी को मल्टी ड्रग रेजिस्टेंट टीबी हो सकती है। इसलिए टीबी के रोगी को डॉक्टर के दिशा निर्देश अनुसार नियमित टीबी की दवाओं का सेवन करना चाहिए। मल्टी ड्रग रेजिस्टेंट टीबी में फर्स्ट लाइन ड्रग्स आइसोनियाजिड और रिफाम्पिसिन जैसे दवाओं का मरीज पर कोई असर नहीं होता है क्योंकि आइसोनियाजिड और रिफाम्पिसिन का टीबी का जीवाणु (माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरक्लोसिस) प्रतिरोध करता है।

एक्सटेनसिवली ड्रग रेजिस्टेंट टीबी मल्टी ड्रग रेजिस्टेंस टीबी से ज्यादा घातक होती है। एक्सटेनसिवली ड्रग रेजीस्टेंट टीबी में मल्टी ड्रग रेजिस्टेंट टीबी के उपचार के लिए प्रयोग होने वाली सेकंड लाइन ड्रग्स का टीबी का जीवाणु प्रतिरोध करता है। एक्सटेनसिवली ड्रग रेजिस्टेंस टीबी में फर्स्ट लाइन ड्रग्स आइसोनियाजिड और रिफाम्पिसिन के साथ-साथ टीबी का जीवाणु सेकंड लाइन ड्रग्स में कोई फ्लोरोक्विनोलोन ड्रग (लीवोफ्लॉक्सासिन और मोक्सीफ्लोक्सासिन) और बेडाक्वीलाइन/लीनाजोलिड ड्रग का प्रतिरोध करता है। मल्टी ड्रग रेजिस्टेंस टीबी का रोगी द्वारा अगर सेकंड लाइन ड्रग्स को भी ठीक तरह और समय से नहीं खाया जाता या लिया जाता है तो एक्सटेनसिवली ड्रग रेजिस्टेंट टीबी की सम्भावना बढ़ जाती है। इस प्रकार की टीबी में एक्सटेंसिव थर्ड लाइन ड्रग्स द्वारा 2 वर्ष से अधिक तक उपचार किया जाता है। लेकिन एक्सटेनसिवली ड्रग रेजिस्टेंट टीबी का उपचार सबसे ज्यादा चुनौतीपूर्ण है। आज के समय पर ड्रग रेजिस्टेंट टीबी के उपचार के लिए तीन प्रकार की रेजीमेन- एचमोनो पोली रेजीमेन (6 या 09 माह),  शॉर्टर रेजिमेन (9-11 माह) और आॅल ओरल लोंगर रेजीमेन (18-20 माह) का उपयोग किया जा रहा है। नयी टीबी ड्रग बेडाक्वीलाइन का उपयोग भी ड्रग रेजिस्टेंट टीबी (एमडीआर और एक्सडीआर) के उपचार में किया जा रहा है, बेडाक्वीलाइन दवा टीबी की अन्य दवाओं के साथ छः माह तक एक अतिरिक्त दवा के तौर पर दी जाती है।  जिन भी मरीजों को देश में बेडाक्वीलाइन दवा दी जा रही है वह सरकार द्वारा मुफ्त में उपलब्ध कराई जा रही हैं। शोध में पता चला है कि बेडाक्वीलाइन ड्रग रेसिस्टेंट टीबी की इलाज की दर को बढ़ा रही है। लेकिन बेडाक्वीलाइन ड्रग भी हर मरीज को नहीं दी जा सकती है इसके भी अपने दायरे हैं। डेलामानिड दवा भी दवा प्रतिरोधक टीबी के इलाज के लिए नयी दवा है। हमारे भारत देश में पूरे विश्व की तुलना में सबसे ज्यादा टीबी मरीजों की संख्या है। भारत देश का लगभग 27 प्रतिशत टीबी बीमारी के मामले में पूरे विश्व में योगदान है। सबसे ज्यादा दवा प्रतिरोधक टीबी मरीज भी भारत देश में है। अगर टीबी मरीज को सही समय पर इलाज नहीं मिलता है तो एक सक्रिय टीबी मरीज साल में कम से कम 15 नए मरीज पैदा करता है। एमडीआर और एक्सडीआर टीबी मरीज से होने वाला सक्रमण भी एमडीआर और एक्सडीआर ही होता है जो कि एक चुनौतीपूर्ण स्थिति होती है। इसलिए जरूरी है कि खासकर एमडीआर और एक्सडीआर टीबी मरीजों कि विशेष निगरानी की जानी चाहिए और उनके संपर्क में रहने वाले लोगों की भी जांच करायी जानी चाहिये, जिससे कि एमडीआर और एक्सडीआर टीबी मरीज दूसरे एमडीआर और एक्सडीआर मरीज पैदा नहीं कर सकें।

आज सरकार द्वारा राष्ट्रीय क्षय रोग उन्मूलन कार्यक्रम (एनटीईपी) के तहत टीबी कि रोकथाम के लिए विभिन्न स्तरों पर तमाम प्रयास किये जा रहे है और सरकार टीबी की रोकथाम में बडी तेजी से आगे बढ रही है। आज जरुरत है कि जमीनी स्तर पर काम करने की जिससे कि सरकार के प्रयासों को सफलता में बदला जा सके। अगर उत्तर प्रदेश की बात की जाए तो उत्तर प्रदेश, भारत देश में टीबी बीमारी के मामले में सबसे ज्यादा योगदान करता है। उत्तर प्रदेश में टीबी की रोकथाम के लिए आगरा में राज्य क्षय रोग प्रशिक्षण और प्रदर्शन केंद्र काम कर रहा है इसके साथ ही पूरे उत्तर प्रदेश में 75 जिला टीबी केंद्र हैं। लगभग 1000 के आसपास टीबी यूनिट्स हैं। लगभग 2000 से ज्यादा डेसिग्नेटेड माइक्रोस्कोपी केंद्र हैं। इसके अलावा (नेशनल रेफरेन्सेस लेबोरेटरी) एनआरएल नेशनल जालमा इंस्टिट्यूट फॉर लेप्रोसी एंड अदर मायकोबैक्टीरियल डिसीसेस, आगरा भी टीबी उन्मूलन के लिए काम कर रहा है। इसके अलावा उत्तर प्रदेश में दो आईआरएल (इंटरमीडिएट रिफरेन्स लेबोरेटरी) आगरा और लखनऊ हैं। ये आईआरएल कल्चर डीएसटी लैब के साथ-साथ पूरे प्रदेश में निरीक्षण (सुपरविजन और ऑन साइट मूल्यांकन) का काम भी करती हैं। दोनों आगरा और लखनऊ आईआरएल के साथ-साथ अन्य कल्चर डीएसटी लैब (एएमयू अलीगढ, बीएचयू बनारस, मेरठ और गोरखपुर) भी काम कर रही हैं। इसके अलावा कई डीएसटी लैब्स विकासशील अवस्था में है। इसी प्रकार की व्यवस्था देश के हर राज्य में है। यह सब व्यवस्था देश को टीबी मुक्त बनाने में लगी हुई है। सरकार विभिन्न जगहों पर काफी पैसा खर्च करती है उसी प्रकार राष्ट्रीय क्षय रोग उन्मूलन कार्यक्रम (एनटीईपी) को सफल बनाने के लिए कर रही है, लेकिन आज भी निचले क्रम के एनटीईपी, एनएचएम और आउटसोर्सिंग के अंतर्गत काम कर रहे कर्मचारियों को काफी कम वेतन मिलता है। यह वेतन विसंगति देष के हर राज्य में है। इस वेतन विसंगति को दूर करने के लिये केन्द्र सरकार और राज्य सरकारों को प्रयास करने की जरुरत है।

राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के तहत चल रहे राष्ट्रीय क्षय रोग उन्मूलन कार्यक्रम (एनटीईपी) में सम्पूर्ण देश में हजारों लैब टैक्नीशियन और अन्य कर्मचारी संविदात्मक सेवा के तहत काम कर रहे हैं। ये सभी लैब टेक्नीशियन राष्ट्रीय क्षय रोग उन्मूलन कार्यक्रम (एनटीईपी) के तहत चल रहीं नेशनल रेफरेन्स लेबोरेटरी, इंटरमीडिएट रेफरेन्स लेबोरेटरी, डिजाइनेटेड माइक्रोस्कोपी सेंटर्स, विभिन्न कल्चर एंड डीएसटी लैब्स और हजारों प्राथमिक और सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्रों  में काम कर रहे हैं। इन लैब्स में सभी लैब टेक्नीशियनों को मायकोबैक्टीरियम ट्यूबरक्लोसिस के एक्सटेंसीवेली ड्रग रेजिस्टेंस स्ट्रेन को भी डील करना पड़ता है, जो कि अत्यंत खतरनाक है। सम्पूर्ण देश में हजारों लैब टैक्नीशियन अपनी जान का जोखिम उठाकर देश को 2025 तक टीबी मुक्त भारत करने कि दिशा में अपना अमूल्य योगदान दे रहे हैं। इस जोखिम भरे काम के बदले में संविदात्मक सेवा के तहत काम कर रहे लैब तकनीशियन को काफी कम मासिक वेतन मिलता है। जिससे उनके पारिवारिक खर्चे भी पूरे नहीं होते। साथ-साथ लैब टैक्नीशियन को लैब में काम करते समय और मरीज के संपर्क में आते समय टीबी से संक्रमण का खतरा रहता है। इसलिये समस्त कर्मचारियों का सरकार द्वारा स्वास्थ्य और दुर्घटना बीमा कराया जाना चाहिये। राष्ट्रीय क्षय रोग उन्मूलन कार्यक्रम (एनटीईपी) के तहत काम कर रहे संविदात्मक लैब टेक्नीशियन या अन्य संविदा कर्मचारियों के लिए सरकार को एक ऐसी नीति बनानी चाहिए जिससे कि उन्हें भी नियमित कर्मचारियों की भांति टीबी की चपेट में आने पर या मृत्यु हो जाने पर पीड़ित परिवार को आर्थिक मदद मुहैया कराने और परिवार में से किसी एक परिजन को सरकारी नौकरी देने का प्रावधान हो। जिससे कि संविदात्मक लैब टेक्नीशियन और अन्य संविदा कर्मचारियों या उनके परिवार का भविष्य अंधकारमय न हो। सरकार को इन तथ्यों को ध्यान में रखते हुए संविदात्मक लैब टेक्नीशियन या अन्य संविदा कर्मचारियों के हित में एक ऐसी नीति बनानी चाहिये, जिससे राष्ट्रीय क्षय रोग उन्मूलन कार्यक्रम (एनटीईपी) के तहत काम कर रहे सभी संविदा कर्मचारियों के मानवाधिकारों की रक्षा हो।

आज सरकार निक्षय पोषण योजना के जरिए टीबी के मरीजों को हर महीने 500 रुपये पोषण के लिए दे रही है, इसके साथ ही टीबी मरीजों को पहचान करने वालों को भी सरकार इनाम राशि दे रही है यह भी सरकार का टीबी मुक्त भारत कि दिशा में एक बहुत बड़ा कदम है। इसके साथ ही सरकार ने प्राइवेट डॉक्टर्स और मेडिकल स्टोर्स कि लिए टीबी मरीजों से सम्बंधित जो दिशा निर्देश जारी किये है ये कदम भी राष्ट्रीय क्षय रोग उन्मूलन कार्यक्रम (एनटीईपी) को मजबूती प्रदान करते हैं, इन दिशा निर्देशों के अंतर्गत हर प्राइवेट डॉक्टर्स को टीबी के मरीजों की जानकारी सरकार को देनी होगी। साथ ही साथ मेडिकल स्टोर वालों को टीबी मरीजों की दवाई से सम्बंधित लेखा-जोखा सरकार को देना होना। अगर इन दिशा निर्देशों का उल्लंघन होता है तो दोषियों पर जुर्माना और सजा की कार्यवाही हो सकती है। इसके अलावा सरकार प्रधानमंत्री टीबी मुक्त भारत अभियान के तहत लोगों और सामजिक संस्थाओं को निक्षय मित्र बनाकर टीबी मरीजों को गोद लेने के लिए प्रेरित कर रही है, जिससे कि टीबी के मरीजों को सही से पोषण और उनका सही से ख्याल रखा जा सके। 

इसके साथ ही सरकार को विभिन्न टीमों के माध्यम से साल के 365 दिन सक्रिय क्षय रोग खोज अभियान चलाकर इसे जन-आन्दोलन बनाना चाहिये। इस सक्रिय क्षय रोग खोज अभियान में स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं, विभिन्न एनजीओ और सामजिक संस्थाओं या संगठनों को शामिल किया जाना चाहिए। जिससे कि देश के कौने-कौने से टीबी के मरीजों का पता लगाया जा सके और उसे सही समय पर उपचार दिया जा सके। तभी देश 2025 तक टीबी मुक्त भारत के लक्ष्य को प्राप्त कर सकता है। कहा जाये तो भारत देश के लिये 2025 तक टीबी मुक्त भारत का लक्ष्य एक बहुत बडी चुनौती है। लेकिन कहा जाता है कि सकारात्मकता और कड़ी मेहनत से हर लक्ष्य को प्राप्त किया जा सकता है। इसके साथ ही विश्व को टीबी मुक्त करने के लक्ष्य 2030 से 5 साल पहले 2025 तक टीबी मुक्त भारत का लक्ष्य प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा तय किया गया लक्ष्य है। अगर देश का प्रधानमंत्री देश को 2025 तक टीबी मुक्त करने के लिए प्रतिबध्दता व्यक्त करता है तो निश्चित रूप से आने वाले सालों में सरकार टीबी मुक्त भारत बनाने की दिशा में और कड़े कदम उठाएगी और ये कदम 2025 तक टीबी मुक्त भारत बनाने कि दिशा में मील का पत्थर साबित होंगे। इसके साथ ही राष्ट्रीय क्षय रोग उन्मूलन कार्यक्रम (एनटीईपी) की समय-समय पर समीक्षा की जानी चाहिए। सरकार को टीबी मुक्त भारत की दिशा में राष्ट्रीय क्षय रोग उन्मूलन कार्यक्रम की समय-समय पर कमियों का विश्लेषण और मूल्यांकन करना चाहिए, जिससे कि इन कमियों को मजबूती में बदला जा सके और भारत देश में टीबी के अंतिम मरीज तक पहुंचा जा सके और समय अनुसार 2025 तक टीबी मुक्त भारत के लक्ष्य को प्राप्त किया जा सके।

- ब्रह्मानंद राजपूत, आगरा

brhama_rajput@rediffmail.com

सोमवार, 17 जनवरी 2022

विश्व हिंदी दिवस : तीन पीढ़ियों संग हिंदी के विकास में जुटा एक परिवार

हिंदी के प्रचार-प्रसार के लिये जागरूकता पैदा करने और हिन्दी को अंतर्राष्ट्रीय भाषा के रूप में पेश करने हेतु प्रति वर्ष 'विश्व हिन्दी दिवस' 10 जनवरी को मनाया जाता है। हिंदी को लेकर तमाम संस्थाएँ, सरकारी विभाग व विद्वान अपने स्तर पर कार्य कर रहे हैं। इन सबके बीच उत्तर प्रदेश में वाराणसी परिक्षेत्र के पोस्टमास्टर जनरल श्री कृष्ण कुमार यादव का अनूठा परिवार ऐसा भी है, जिसकी तीन पीढ़ियाँ हिंदी की अभिवृद्धि के लिए  न सिर्फ प्रयासरत हैं, बल्कि वैश्विक स्तर पर भी कई देशों में सम्मानित हैं।

वाराणसी परिक्षेत्र के पोस्टमास्टर जनरल श्री कृष्ण कुमार यादव के परिवार में उनके पिता श्री राम शिव मूर्ति यादव के साथ-साथ पत्नी सुश्री आकांक्षा यादव और दोनों बेटियाँ अक्षिता व अपूर्वा भी हिंदी को अपने लेखन से लगातार नए आयाम दे रही हैं। देश-दुनिया की तमाम पत्रिकाओं में प्रकाशन के साथ श्री कृष्ण कुमार यादव की 7 और पत्नी आकांक्षा की 3 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। हिंदी ब्लॉगिंग के क्षेत्र में इस परिवार का नाम अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी अग्रणी है।

'दशक के श्रेष्ठ ब्लॉगर दम्पति' सम्मान से विभूषित यादव दम्पति को नेपाल, भूटान और श्रीलंका में आयोजित 'अंतर्राष्ट्रीय हिंदी ब्लॉगर सम्मेलन' में 'परिकल्पना ब्लॉगिंग सार्क शिखर सम्मान' सहित अन्य सम्मानों से नवाजा जा चुका है। जर्मनी के बॉन शहर में ग्लोबल मीडिया फोरम (2015) के दौरान 'पीपुल्स चॉइस अवॉर्ड' श्रेणी में सुश्री आकांक्षा यादव के ब्लॉग 'शब्द-शिखर' को हिंदी के सबसे लोकप्रिय ब्लॉग के रूप में भी सम्मानित किया जा चुका है।

सनबीम स्कूल, वरुणा, वाराणसी में अध्ययनरत इनकी दोनों बेटियाँ अक्षिता (पाखी) और अपूर्वा भी इसी राह पर चलते हुए अंग्रेजी माध्यम की पढ़ाई के बावजूद हिंदी में सृजनरत हैं। अपने ब्लॉग 'पाखी की दुनिया' हेतु अक्षिता को भारत सरकार द्वारा सबसे कम उम्र में 'राष्ट्रीय बाल पुरस्कार' से सम्मानित किया जा चुका है, वहीं अंतर्राष्ट्रीय हिंदी ब्लॉगर सम्मेलन, श्रीलंका (2015) में भी अक्षिता को “परिकल्पना कनिष्ठ सार्क ब्लॉगर सम्मान” से सम्मानित किया गया। अपूर्वा ने भी कोरोना महामारी के दौर में अपनी कविताओं से लोगों को सचेत किया।

पोस्टमास्टर जनरल श्री कृष्ण कुमार यादव का कहना है कि, सृजन एवं अभिव्यक्ति की दृष्टि से हिंदी दुनिया की अग्रणी भाषाओं में से एक है। डिजिटल क्रान्ति के इस युग में हिन्दी में विश्व भाषा बनने की क्षमता है। वहीं, सुश्री आकांक्षा यादव का मानना है कि हिन्दी भाषा भारतीय संस्कृति की अभिव्यक्ति का माध्यम होने के साथ-साथ भारत की भावनात्मक एकता को मजबूत करने का सशक्त माध्यम है। आप विश्व में कहीं भी हिन्दी बोलेगें तो आप एक भारतीय के रूप में ही पहचाने जायेंगे।  









Live Vns : विश्व हिंदी दिवस : तीन पीढ़ियों से हिंदी के विकास में लगा है पोस्टमास्टर जनरल कृष्ण कुमार यादव का परिवार

पत्रिका : विश्व हिंदी दिवस : तीन पीढ़ियों संग हिंदी के विकास में जुटा है पोस्टमास्टर जनरल का परिवार

हिंदुस्तान : आदर्श हिंदी सेवक है पोस्टमास्टर जनरल का परिवार

गुरुवार, 16 दिसंबर 2021

भारत की सबसे लंबे बालों वाली महिला आकांक्षा यादव

बाल किसी महिला की खूबसूरती में चार चांद लगाने का काम करते हैं। जितने लंबे, घने बाल महिला उतनी ज्यादा खूबसूरत दिखती है, लेकिन ये तोहफा हर किसी को नहीं मिलता। दोस्तों, भारत ही नहीं दुनिया में ऐसी लाखों, करोड़ों महिलाएं हैं जो अपने बाल न बढ़ने की समस्या से परेशान हैं। महंगे तेल और अन्य तरह के प्रोडक्ट्स इस्तेमाल करने पर भी उनकी यह समस्या जस की तस रहती है। लेकिन मुंबई  की रहने वाली आकांक्षा यादव के साथ ऐसा नहीं है। आकांक्षा के बाल 1,2,3...5 नहीं पूरे 9 फीट और 10.5 इंच लंबे हैं। मीटर में बात करें तो उनके बालों की लंबाई 3.01 मीटर है। जी हां दोस्तों। इतना ही नहीं अकांक्षा को भारत में सबसे लंबे बालों वाली महिला के रूप में चुना गया है। उनकी इस उपलब्धि के लिए उनका नाम लिम्का बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में शामिल किया गया है।

2019 से कोई नहीं तोड़ पाया आकांक्षा का रिकॉर्ड 

मुंबई की आकांक्षा यादव को यह खिताब ऐसे ही नहीं मिला, इसके पीछे उनकी वर्षों की मेहनत है। लिम्का बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्डस के 30वें संस्करण में उनका नाम भारत के सबसे लंबे बाल वाली महिला के रूप में दर्ज किया गया है। आकांक्षा अपनी इस उपलब्धि के लिए फूली नहीं समा रही हैं। लिम्का बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स 2020-2022 के आधिकारिक पत्र के मुताबिक साल 2019 से आकांक्षा का सबसे लंबे बालों वाली महिला होने का रिकॉर्ड कोई नहीं तोड़ पाया है।

लिम्का बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में भी दर्ज है नाम 

आकांक्षा यादव ने लिम्का बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में नाम दर्ज होने पर खुशी जाहिर करते हुए  कहा कि इस राष्ट्रीय खिताब को पाना ही अपने आप में बड़ी बात है। यह खिताब हासिल कर में बहुत खुश हूं।

क्या है आकांक्षा के लंबे बालों का राज 

बता दें कि आकांक्षा यादव एक फार्मास्युटिकल और मैनेजमेंट प्रोफेसनल है। सबसे लंबे बालों के लिए उनका नाम इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में भी दर्ज है। जब उनसे उनके लंबे बालों का राज पूछा गया तो उन्होंने कहा कि यह ईश्वर का आशीर्वाद है। आकांक्षा से जब पूछा गया कि वह इतने लंबे बालों की देखरेख कैसे करती हैं। तो आकांक्षा ने हैरानी भरा जबाव दिया। उन्होंने कहा कि वह पूरे दिन में अपने बालों को धोने से लेकर उन्हें कंघी करने तक केवल 20 मिनट का समय खर्च करती हैं।


(यूँ  ही गूगल पर सर्च करते हुए अपने नाम पर जाकर अटक गई, अपने हमनाम आकांक्षा यादव की उपलब्धि के बारे में जानकर अच्छा लगा....हार्दिक बधाई !! )

शुक्रवार, 3 दिसंबर 2021

साहित्यकार एवं ब्लॉगर आकांक्षा यादव ‘वृक्ष रत्न’ सम्मान से सम्मानित

स्वदेशी समाज सेवा समिति के 11वें स्थापना दिवस पर अग्रणी महिला ब्लॉगर, लेखिका एवं साहित्यकार आकांक्षा यादव को 'वृक्ष रत्न' सम्मान से अलंकृत किया गया। संस्था के कार्यकारी अध्यक्ष एवं उच्चतर शिक्षा सेवा आयोग, उत्तर प्रदेश के पूर्व सदस्य प्रो.अजब सिंह यादव और रुद्राक्ष मैन विवेक यादव के संयोजकत्व में फिरोजाबाद में आयोजित कार्यक्रम में उन्हें यह सम्मान पर्यावरण संबंधी लेखन और पर्यावरण संरक्षण व वृक्षारोपण को बढ़ावा देने के लिए दिया गया। कॉलेज में प्रवक्ता रहीं आकांक्षा यादव को इससे पूर्व भी देश के विभिन्न प्रांतों के अलावा जर्मनी, श्रीलंका, नेपाल तक में सम्मानित किया जा चुका है। आकांक्षा यादव वाराणसी परिक्षेत्र के पोस्टमास्टर जनरल कृष्ण कुमार यादव की पत्नी हैं, जो स्वयं साहित्य और ब्लॉगिंग के क्षेत्र में चर्चित नाम हैं।

गौरतलब है कि कालेज में प्रवक्ता रहीं आकांक्षा यादव फ़िलहाल साहित्यिक और सामाजिक सरोकारों से जुड़ी हुई हैं। देश-विदेश की शताधिक प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित आकांक्षा यादव की आधी आबादी के सरोकार, चाँद पर पानी, क्रांति-यज्ञ: 1857-1947 की गाथा इत्यादि पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। देश के साथ-साथ विदेशों में भी सम्मानित आकांक्षा यादव को उ.प्र. के मुख्यमंत्री द्वारा ’’अवध सम्मान’’, परिकल्पना समूह द्वारा ’’दशक के श्रेष्ठ हिन्दी ब्लॉगर दम्पति’’ सम्मान, अन्तर्राष्ट्रीय हिंदी ब्लॉगर सम्मेलन, काठमांडू में ’’परिकल्पना ब्लाग विभूषण’’ सम्मान, अंतर्राष्ट्रीय ब्लॉगर सम्मेलन, श्री लंका में ’’परिकल्पना सार्क शिखर सम्मान’’, विक्रमशिला हिन्दी विद्यापीठ, भागलपुर, बिहार द्वारा डॉक्टरेट (विद्यावाचस्पति) की मानद उपाधि, भारतीय दलित साहित्य अकादमी द्वारा ’’ डॉ. अम्बेडकर फेलोशिप राष्ट्रीय सम्मान’’, ‘‘वीरांगना सावित्रीबाई फुले फेलोशिप सम्मान‘‘ व ’’भगवान बुद्ध राष्ट्रीय फेलोशिप अवार्ड’’, राष्ट्रीय राजभाषा पीठ इलाहाबाद द्वारा ’’भारती ज्योति’’, साहित्य मंडल, श्रीनाथद्वारा, राजस्थान  द्वारा ”हिंदी भाषा भूषण”,  निराला स्मृति संस्थान, रायबरेली द्वारा ‘‘मनोहरा देवी सम्मान‘‘, साहित्य भूषण सम्मान, भाषा भारती रत्न, राष्ट्रीय भाषा रत्न सम्मान, साहित्य गौरव सहित विभिन्न प्रतिष्ठित सामाजिक-साहित्यिक संस्थाओं द्वारा विशिष्ट कृतित्व, रचनाधर्मिता और सतत् साहित्य सृजनशीलता हेतु 50 से ज्यादा सम्मान और मानद उपाधियाँ प्राप्त हैं । जर्मनी के बॉन शहर में ग्लोबल मीडिया फोरम (2015) के दौरान 'पीपुल्स चॉइस अवॉर्ड' श्रेणी में  आकांक्षा यादव के ब्लॉग 'शब्द-शिखर'  को हिंदी के सबसे लोकप्रिय ब्लॉग के रूप में भी सम्मानित किया जा चुका है।

11 पत्रकारों, समाजसेवी, साहित्यकार, पर्यावरणविदों को किया गया सम्मानित 

संत जानू बाबा डिग्री कॉलेज, फिरोजाबाद  में आयोजित  कार्यक्रम में आकांक्षा यादव के अलावा  संत जयकृष्ण दास, राष्ट्रीय अध्यक्ष यमुना रक्षक दल वृंदावन, उमाशंकर यादव, संस्थापक अहमदाबाद इंटरनेशनल लिटरेचर फेस्टिवल अहमदाबाद, डॉ आरएन सिंह, समाजसेवी फरीदाबाद, मुकेश नादान, संस्थापक प्रकृति फाउंडेशन मेरठ, ममता नोगरैया, अध्यक्षा महिला साहित्य मंच बदायूं, रमेश गोयल, राष्ट्रीय अध्यक्ष पर्यावरण प्रेरणा सिरसा, हरियाणा प्रताप सिंह पोखरियाल, पर्यावरण प्रेमी उत्तरकाशी उत्तराखंड, नंदकिशोर वर्मा, अध्यक्ष नीला जहान फाउंडेशन लखनऊ, प्रदीप सारंग, बाराबंकी, हरे कृष्ण शर्मा आजाद, अध्यक्ष वसुंधरा श्रृंगार युवा मंडल भिंड मध्यप्रदेश सहित कुल 11 लोगों को 'वृक्ष रत्न' से सम्मानित किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता स्वामी हरिदास,  मुख्य अतिथि वरिष्ठ पत्रकार व लेखक डॉक्टर अरुण प्रकाश, संचालन डॉ मुकेश उपाध्याय और आभार ज्ञापन समिति के सचिव रुद्राक्ष मैन विवेक यादव ने किया।







सोमवार, 6 अप्रैल 2020

Fight against Corona : प्रधानमंत्री के आह्वान पर जगमगाया दीप

भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी की अपील पर हमने भी सपरिवार 5 अप्रैल, 2020 को अपने आवास की बालकनी में खड़े होकर शाम को 9 बजे, 9 मिनट तक मोमबत्ती जलाकर रोशनी की। वैश्विक आपदा की इस घड़ी में कोरोना महामारी को  खत्म करने हेतु ईश्वर से प्रार्थना भी की।
(चित्र में : मैं आकांक्षा यादव, बेटियां अक्षिता व अपूर्वा, जीवन साथी कृष्ण कुमार यादव जी ( निदेशक डाक सेवाएँ, लखनऊ (मुख्यालय) परिक्षेत्र)





सोमवार, 23 मार्च 2020

कोरोना के कर्मवीरों को किया सलाम

कोरोना वायरस की इस आपदा में आज सारे राष्ट्र ने एक साथ उन कर्मवीरों को सलाम किया, जो अपनी जान की परवाह किये बने लोगों की सेवा में लगे हैं। इसी क्रम में हमने भी सपरिवार उन कर्मवीरों के जज्बे को नमन किया। अलीगंज, लखनऊ स्थित पोस्ट एंड टेलीग्राफ़स ऑफिसर्स संचार कॉलोनी में हमने अपने परिवार संग शाम 5 बजे बॉलकनी में खड़े होकर ताली, थाली और घंटी बजाकर आपात और आवश्यक सेवाओं में लगे लोगों के जज्बे को सलाम किया। देश के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने 22 मार्च को जनता कर्फ्यू की अपील के साथ ही, कोरोना वायरस से लड़ने के इस मुश्किल वक़्त में मुस्तैदी से जुटे कर्मियों के जज्बे को सलाम करने की अपील की थी।






(चित्र में : मैं आकांक्षा यादव, बेटियां अक्षिता व अपूर्वा, जीवन साथी कृष्ण कुमार यादव जी ( निदेशक डाक सेवाएँ, लखनऊ (मुख्यालय) परिक्षेत्र)

मंगलवार, 16 अप्रैल 2019

साहित्यकार व ब्लॉगर आकांक्षा यादव "स्त्री अस्मिता सम्मान-2019" से सम्मानित

हिंदी साहित्य और लेखन के क्षेत्र में उत्कृष्ट सेवाओं के लिए युवा साहित्यकार व ब्लॉगर आकांक्षा यादव को "रेयान स्त्री अस्मिता सम्मान-2019" से  सम्मानित किया गया। कैफ़ी आज़मी एकेडमी, लखनऊ में रेयान मंच एवं देव एक्सेल फाउंडेशन द्वारा आयोजित कार्यक्रम में आकांक्षा यादव को उक्त सम्मान आई.ए. एस. डॉ. हरिओम, लखनऊ परिक्षेत्र के निदेशक डाक सेवाएं कृष्ण कुमार यादव, डॉ. मालविका हरिओम, कार्यक्रम की संयोजिका डॉ. अनीता श्रीवास्तव एवं अनीता राज ने 12 अप्रैल, 2019 को प्रदान किया। 
सामाजिक और साहित्यिक विषयों के साथ-साथ नारी-सशक्तिकरण पर प्रभावी लेखन करने वाली आकांक्षा यादव  की  तीन पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं।  प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में लेखन के साथ वे ब्लॉग और सोशल मीडिया के माध्यम से भी अपनी रचनाधर्मिता को प्रस्फुटित करते हुये व्यापक पहचान बना चुकी  हैं। भारत के अलावा जर्मनी, श्रीलंका और नेपाल इत्यादि देशों में भी सम्मानित हो चुकी हैं। आकांक्षा यादव लखनऊ मुख्यालय परिक्षेत्र के निदेशक डाक सेवाएँ  कृष्ण कुमार यादव की पत्नी हैं, जो कि स्वयं चर्चित साहित्यकार और ब्लॉगर हैं।
कार्यक्रम के आरम्भ में अतिथियों ने दीप-प्रज्वलन कर कार्यक्रम का शुभारम्भ किया। इस अवसर पर सांस्कृतिक कार्यक्रमों की प्रस्तुति भी की गई, जिसने सबका मन मोह लिया। 




मंचासीन अतिथियों आई.ए. एस. डॉ. हरिओम, लखनऊ परिक्षेत्र के निदेशक डाक सेवाएं कृष्ण कुमार यादव और गायिका  डॉ. मालविका हरिओम को स्मृति चिन्ह देकर और शाल ओढ़ाकर कार्यक्रम की संयोजिका डॉ. अनीता श्रीवास्तव एवं अनीता राज ने सम्मानित  किया। 
दूसरे सत्र में बारह महिलाओं को रेयान स्त्री अस्मिता सम्मान-2019 सम्मान दिया गया। अलग-अलग क्षेत्रों से आने वाली महिलाओं में आकांक्षा यादव के अलावा  सरोज सिंह, माला चौबे, सीमा अग्रवाल, शशि सिंह, मधु सुभाष, विजय पुण्यम, ओम सिंह, वर्षा श्रीवास्तव, रूबी राज सिंह, अंतरा श्रीवास्तव, रोली शंकर और गृहिणी सम्मान कीर्ति अवस्थी को दिया गया। डॉ. अनीता श्रीवास्तव ने बताया कि समाज में अपने दम पर अलग मुकाम बनाने वाली व दूसरों के लिए प्रेरणास्रोत बनने वाली 12 महिलाओं को प्रतिवर्ष सम्मानित किया जाता है। 




इससे पूर्व भी उत्कृष्ट साहित्य लेखन हेतु आकांक्षा  यादव को राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पचास से अधिक सम्मानों से विभूषित किया जा चुका है। इनमें उ.प्र. के मुख्यमंत्री  द्वारा ’’अवध सम्मान’’,  विक्रमशिला हिन्दी विद्यापीठ, भागलपुर, बिहार द्वारा डाक्टरेट (विद्यावाचस्पति) की मानद उपाधि, भारतीय दलित साहित्य अकादमी द्वारा ‘’डॉ. अम्बेडकर फेलोशिप राष्ट्रीय सम्मान‘‘, साहित्य मंडल, श्रीनाथद्वारा, राजस्थान द्वारा ”हिंदी भाषा भूषण”, राष्ट्रीय राजभाषा पीठ इलाहाबाद द्वारा ‘‘भारती ज्योति‘‘, ’’दशक के श्रेष्ठ हिन्दी ब्लॉगर दम्पति’’ सम्मान, अन्तर्राष्ट्रीय हिंदी ब्लॉगर सम्मेलन, काठमांडू में ’’परिकल्पना ब्लाग विभूषण’’ सम्मान,  अंतर्राष्ट्रीय ब्लॉगर सम्मेलन, श्री लंका में ’’परिकल्पना सार्क शिखर सम्मान’’,  ‘‘एस.एम.एस.‘‘ कविता पर प्रभात प्रकाशन, नई दिल्ली द्वारा पुरस्कार, निराला स्मृति संस्थान, रायबरेली द्वारा ‘‘मनोहरा देवी सम्मान‘‘, साहित्य भूषण सम्मान, भाषा भारती रत्न, राष्ट्रीय भाषा रत्न सम्मान, साहित्य गौरव इत्यादि शामिल हैं।